तपस्वी सुरजमल दुगड़ के लगातार 62 दिन निराहार रहने के बाद संथारा तप संपन्न

किशनगंज : लगातार 62 दिनों से निराहार चल रहे सुरजमल दुगड़ की संथारा की साधना बुधवार को संपन्न हो गयी. उनके देवलोकगमन के समाचार के बाद उनके निवास स्थान पर किशनगंज और आसपास के क्षेत्र के लोगों का अंतिम दर्शन के लिए तांता लगा रहा. आज विधिवत रूप से बैंकुठि के द्वारा शहर के मुख्य […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 11, 2019 10:00 PM

किशनगंज : लगातार 62 दिनों से निराहार चल रहे सुरजमल दुगड़ की संथारा की साधना बुधवार को संपन्न हो गयी. उनके देवलोकगमन के समाचार के बाद उनके निवास स्थान पर किशनगंज और आसपास के क्षेत्र के लोगों का अंतिम दर्शन के लिए तांता लगा रहा. आज विधिवत रूप से बैंकुठि के द्वारा शहर के मुख्य मार्गों से होती हुई अंतिम यात्रा निकलेगी. जिसमें देशभर से सैकड़ों तेरापंथ समाज के लोगों के शामिल होने की संभावना है.

49 दिनों तक निराहार रहने के बाद सुरजमल दुगड़ ने पानी पीने का भी त्याग कर दिया था. नेपाल-बिहार तेरापंथ सभाध्यक्ष डॉ राजकरण दफ्तरी लगातार उनकी सेवा में रत है. उन्होंने बताया कि अर्धशतक और चौविहार त्याग के बाद धीरे-धीरे उनकी शारीरिक शक्ति क्षीण होने लगी, पर मनोबल वैसा ही दृढ़ रहा. डॉ दफ्तरी ने कहा कि परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमणजी का समय समय पर प्राप्त मंगल संदेश उनका और समाज के मनोबल को बढ़ाने वाला बना और अंततः आज दिन के 11:40 पर उन्होंने समाधि पूर्वक पंडित मरण कर आत्मा की धवलता और कर्म निर्जरा की यात्रा में एक लंबी छलांग लगा दी. देश भर से पिछले दिनों जैन साधु संतों और साध्वियों के साथ साथ समाज के लोगो के मंगल कामना संदेश सुरजमल दुगड़ के लिए लगातार आ रहे थे.

सुरजमल दुगड़ के निराहार रहने और "संथारा" साधना के परिसंपन्न होने के पूर्व ही अपने अंदर के कषायों को, मोह, ममता, भय, शौक, परिग्रह, विषय वासनाओं की पकड़ को मन की बहुत तरह की ग्रंथियों को विसर्जित करने की प्रक्रिया पूरी कर, परिवार की आसक्ति, अधिकार की आसक्ति, जमीन जायदाद की आसक्ति छोड़ने की क्रिया सुरजमल दुगड़ कर चुके थे. इस दौरान सुरजमल दुगड़ ने अपने अंदर की आशक्तियों का लेखा जोखा और चीजों के अपने से अलग होने की भावना को प्रबल कर देवलोकगमन का मार्ग अपनाया.

जैन धर्म मे सदियों से समाधि पूर्वक मृत्यु प्राप्त करने की परंपरा रही है. जिसकी "संथारा’ के रूप में पहचान है. ऐसी मान्यता है कि सजगता से अपनी मृत्यु को देख पाना मनुष्य के लिए असंभव है. अपने शरीर से आत्मा को छूटते हुए देख पाना, जीवन की लालसा न होना, मृत्यु का डर न होना, न कोई कामना, न कोई लालसा, व्यक्ति, वस्तुस्थिति, अधिकार के भावों को पीछे छोड़ कर मृत्यु को सजगता से जीने की कला है. ऐसा सिर्फ "संथारे" की साधना से हासिल किया जा सकता है.

नेपाल बिहार तेरापंथ सभाध्यक्ष डॉ राजकरण दफ्तरी के अनुसार सुरजमल दुगड़ के परिवार में कई सदस्यों ने पूर्व में भी इसी तरह आत्म कल्याण का मार्ग अपनाया था. देश भर में सुरजमल दुगड़ की इस अभूतपूर्व साधुत्व की चर्चा हो रही है. डॉ दफ्तरी ने बताया सुदूर क्षेत्र और जिले के आसपास के क्षेत्रों से रोजाना सैकड़ों की संख्या में लोग सुरजमल दुगड़ के दर्शन और आशीर्वाद लेने पहुंच रहे थे.

आचार्य श्री महाश्रमणजी ने सुरजमल दुगड़ की इस तपस्या के दौरान संदेश में कहा कि अनशन करना जीवन की एक बड़ी उपलब्धि है. वह आत्मकल्याण का मार्ग है. सुरजमल दुगड़ ने अनशन स्वीकार किया है. वे खूब मनोबल के साथ परिणामों की उज्ज्वलता वर्धमान रखें. जप, स्वाध्याय आदि का प्रयोग चलता रहे. ध्यान केवल आत्मा में रहे|सभी परिवारजन व संबंधीजन उनके परिणामों की निर्मलता में सहयोगी बने रहे.

जैन धर्म मे मृत्यु को नजदीक जानने पर लोग इस साधना को अपनाते रहे है. इस साधना को अपनाना हर किसी के लिए संभव नहीं, इंद्रियों को वश में कर मोह माया और निराहार रहकर साधना पूर्ण करने का अवसर चंद तपस्वी ही हासिल कर पाते हैं. बताते चले कि जैन धर्म मे जब मनुष्य असाध्य रोगों से ग्रसित होता है या जब अंत समय नजदीक प्रतीत होता है तब मोहमाया और अन्न जल खाद्द त्याग कर मनुष्य संथारा या संलेखना की साधना करता है. संसार की सभी इच्छाओं का त्याग करना ही संथारा कहलाता है. जैन धर्म के लोगों का मानना है कि सुरजमल दुगड़ ने अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है. अपने चाचा और अपने पूर्वजों की राह को अपनाते हुए सुरजमल दुगड़ ने इस अभूतपूर्व उपलब्धि को हासिल करने की प्रक्रिया 30 वर्ष पूर्व ही शुरू कर दी थी.

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