जूट प्रशिक्षण सह उत्पाद केंद्र बना खलिहान

उपेक्षा . कन्हैयाबाड़ी में 14 लाख की लागत से बना था भवन जूट का उचित समर्थन मूल्य नहीं िमलने के कारण जूट उत्पादक किसान जूट की खेती से विमुख हो रहे हैं, जिस कारण क्षेत्र में जूट की खेती का क्षेत्रफल घट रहा है. कोचाधामन : ग्रामीण क्षेत्र के जूट उत्पादकों को खुशहाल बनाने तथा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 23, 2017 5:48 AM

उपेक्षा . कन्हैयाबाड़ी में 14 लाख की लागत से बना था भवन

जूट का उचित समर्थन मूल्य नहीं िमलने के कारण जूट उत्पादक किसान जूट की खेती से विमुख हो रहे हैं, जिस कारण क्षेत्र में जूट की खेती का क्षेत्रफल घट रहा है.
कोचाधामन : ग्रामीण क्षेत्र के जूट उत्पादकों को खुशहाल बनाने तथा क्षेत्र के बेरोजगारों को जूट से बनने वाले सामान के निर्माण का प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से वर्ष 2002 में प्रखंड के हजरत नगर कन्हैयाबाड़ी में ट्राइसम कॉम प्रोडक्शन योजना के तहत 14 लाख की राशि से बना प्रशिक्षण सह उत्पाद केन्द्र भवन अब मात्र शोभा की वस्तु बन कर रह गया है. इस योजना से किसानों व बेरोजगारों को लाभ नहीं मिल सका, लेकिन निर्माण के नाम पर सरकारी राशि अवश्य खर्च की गयी. इतना ही नहीं इन दिनों यह प्रशिक्षण भवन अतिक्रमण का शिकार हो गया है. आस-पास के लोग इस भवन के परिसर को खलिहान तथा भवन को अपना जलावन घर व मवेशियों का आशियाना बना रखा है. क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि जब प्रोडक्शन सेंटर भवन का निर्माण हुआ था, तो बेरोजगारों में उम्मीद जगी थी, लेकिन अब यह उम्मीद भी खत्म हो गयी है.
पूर्व प्रमुख सादिक अंजुम, पंसस जबादुल हक का कहना है कि जिला में सबसे ज्यादा जूट की खेती कोचाधामन प्रखंड में होती है. लेकिन किसी ने भी अब तक जूट किसानों के प्रति नहीं सोचा. आस-पास में जूट मील नहीं होने के कारण क्षेत्र के किसानों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है, जिससे किसान धीरे-धीरे जूट की खेती से विमुख होते चले गये.
कम होती जा रही है जूट की खेती
वर्तमान समय में प्रखंड में जूट की खेती 500 हेक्टर में सीमित हो गयी है, जबकि आज से दो दशक पूर्व एक हजार से अधिक हेक्टर में हो रही थी. किसान शाहनबाज आलम, नदीम सरवर समदानी, मतिउर्रहमान का कहना है कि लागत से कम समर्थन मूल्य मिलने के कारण किसान जूट की खेती छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं.
क्या कहते हैं किसान
स्थानीय किसान मास्टर महमूद आलम, अब्दुल सकूर खजांची का कहना है कि यदि सरकार की ओर से जूट किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि नहीं की गयी, तो यहां के किसान जूट की खेती को पूर्णरूप से छोड़ने को मजबूर होंगे. वहीं कुछ जूट किसानों का मानना है जूट नगदी फसल है. इसे बेच कर किसान खरीफ फसल की खेती के साथ शादी-विवाह में खर्च करते हैं.

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