-जिले में एनपीसीडीसीएस कार्यक्रम के अंतर्गत एचडब्ल्यूसी में निःशुल्क जांच की सुविधा-डायबिटीज से पीड़ित लोगों में खांसी, बुखार ,वजन में कमी हो तो तुरंत कराएं जांच प्रतिनिधि, किशनगंज
अगर मधुमेह यानी डायबिटीज से पीड़ित हैं और तमाम इलाज के बावजूद शुगर कंट्रोल नहीं हो रहा तो टीबी की जांच करवानी चाहिए. क्योंकि मधुमेह से पीड़ित मरीजों में टीबी का खतरा बना रहता है. टीबी और डायबिटीज के कांबिनेशन को देखते हुए सदर अस्पताल सहित सभी पीएचसी व हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर टीबी या मधुमेह से पीड़ित मरीजों में दोनों ही बीमारियों की जांच सुनिश्चित की गई है. सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया ””डायबिटीज एक इम्यून डिसऑर्डर है. इसमें शरीर की रोग से लड़ने की क्षमता घट जाने के कारण टीबी, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों की आशंका कई गुनी हो जाती है. खासकर 30 की उम्र के मरीज, अगर डायबिटिक हैं तो उनमें टीबी की जांच सबसे पहले करानी चाहिए. जिले में एनपीसीडीसीएस (कैंसर, मधुमेह, हृदय रोगों और स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम”) कार्यक्रम के अंतर्गत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में एएनएम के माध्यम से लोगों की टीबी स्पूटम संग्रह व डायबिटीज की जांच एवं उपचार निःशुल्क प्रदान की जाती है. डायबिटीज से पीड़ित रोगियों में टीबी के लक्षण जैसे खांसी,बुखार,वजन में कमी , रात में पसीना आना आदि की पहचान पर तुरंत जांच एवं उपचार की व्यवस्था की गई है. उन्होंने ने बताया दुनियाभर में हर तीन में से एक व्यक्ति के शरीर के भीतर टीबी ””लेटेंट”” यानी अप्रकट रहता है. इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाए तो ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं. एचआईवी पॉजिटिव और डायबिटीज के मरीजों में इसकी आशंका सबसे ज्यादा होती है. इसके अलावा कुपोषण, अल्कोहल एवं स्मोकिंग से भी टीबी का खतरा बढ़ जाता है.ठीक से इलाज न होने पर खतरा ज्यादा – डा मंजर
सीडीओ डॉ मंजर आलम ने बताया कि डायबिटीज में शरीर की रोग-प्रतिरोधी क्षमता घट जाने से मरीजों में टीबी की आशंका चौगुनी हो जाती है. खासकर तब यह आशंका बढ़ जाती है जब डायबिटीज मरीज का ठीक ढंग से इलाज नहीं हो पाता है. लिहाजा अस्पतालों में टीबी के लक्षणों की शिकायत लेकर आए मरीजों में ब्लड-शुगर की भी जांच की जा रही है. अस्पतालों में आ रहे मरीजों में कई मामले ऐसे हैं, जिनमें मरीज टीबी के साथ डायबिटीज से भी पीड़ित हैं.
क्या है टीबी(ट्यूबरक्यूलोसिस)
सीडीओ डॉ मंजर आलम ने बताया कि टीबी यानी ट्यूबरक्यूलोसिस बैक्टीरियल संक्रमण है, जो फेफड़े को प्रभावित करता है. यह शरीर के भीतर वर्षो तक छिपा रहता और किसी बीमारी के कारण इम्यून सिस्टम के कमजोर पड़ते ही सक्रिय हो जाता है. स्मोकिंग, अल्कोहल, ड्रग्स, संक्रमित व्यक्ति के साथ निकट संपर्क और कई तरह की बीमारियां जैसे डायबिटीज, एचआई वी और कैंसर, टीबी के लिए रिस्क फैक्टर का काम करती हैं. टीबी पूरी तरह से ठीक हो सकती है अगर सही समय पर जांच हो और इलाज पूरा लिया जाए.
क्या है डायबिटीज
गैर संचारी रोग पदाधिकारी डॉ उर्मिला कुमारी ने बताया कि डायबिटीज दो तरह का होता है- टाइप वन एवं टाइप टू. टाइप वन डायबिटीज ऑटो-इम्यून बीमारी है जो किसी भी उम्र में हो सकती है. वहीं, टाइप टू जेनेटिक बीमारी है जो मुख्यत: बड़ी उम्र में देखी जाती है.इसके लक्षण
बहुत प्यास एवं भूख लगना, थकान, दृष्टि में धुंधलापन, पैरों में सिहरन, वजन एकाएक कम होना एवं जल्दी-जल्दी पेशाब लगना, लो एवं हाई ब्लड-शुगर में लक्षण अलग-अलग होते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है