“छोटा परिवार सुखी परिवार” के लिए पुरुष वर्ग को आगे बढ़ने की जरूरत

जिले में 11 से 31 जुलाई तक परिवार नियोजन सेवा पखवाडा का आयोजन किया जा रहा है

By Prabhat Khabar News Desk | July 25, 2024 8:01 PM

किशनगंज.जिले में जनसंख्या वृद्धि दर राज्य और राष्ट्रीय औसत से अधिक है जिले में जनसंख्या वृद्धि एक गंभीर समस्या है, जिसके प्रभाव दूरगामी हैं शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, आर्थिक सशक्तिकरण, और जागरूकता के माध्यम से हम जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित कर सकते हैं और किशनगंज जिले को एक समृद्ध और स्थायी भविष्य की ओर अग्रसर कर सकते हैं.

सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया परिवार नियोजन सेवाओं को सुलभ बनाकर अनचाहे गर्भ के मामले में 70 फीसदी, मातृत्व मृत्यु दर में 67 फीसदी नवजात मृत्यु दर में 77 फीसदी व प्रसव संबंधी जटिलता के मामलों में दो तिहाई तक कमी लाई जा सकती है सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोगों तक परिवार नियोजन संबंधी सेवाओं की आसान पहुंच से ही असुरक्षित गर्भपात के मामलों में कमी आयेगी. परिवार नियोजन के महत्व लैंगिक, समानता, गरीबी, मातृ स्वास्थ्य और मानव अधिकारों जैसे विभिन्न जनसंख्या संबंधी मुद्दों पर लोगों की जागरूकता बढ़ाना है. इसका लक्ष्य जनसंख्या के मुद्दों तथा यह कैसे समग्र विकास योजनाओं और कार्यक्रमों को प्रभावित करता है इस पर लोगों का ध्यान केंद्रित करना है. विदित हो की जिले में 11 से 31 जुलाई तक परिवार नियोजन सेवा पखवाडा का आयोजन किया जा रहा है

पोठिया में 27 एवं बहादुरगंज में 16 महिलाओं ने कराया बंध्याकरण

सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया कि सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पोठिया की 27 एवं बहादुरगंज में 16 महिलाओं ने जनसंख्या स्थिरीकरण पखवाड़े के तहत बंध्याकरण कराया है. सभी प्रखंडों में बढ़ती जनसंख्या के बारे में जागरूक करते हुए जनसंख्या स्थिरीकरण पखवाड़ा मनाया जा रहा है पख़वाड़े के दौरान सभी प्रखंड क्षेत्र में महिलाओं को बंध्याकरण व पुरुषों को नसबन्दी कराने के लिए आशा व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के द्वारा प्रेरित किया जा रहा है सारथी रथ निकालकर माइकिंग कर गाँव-कस्बों में जागरूकता फैलाया जा रहा है ,

जन जागरूकता के फलस्वरूप 02 पुरुषों का हुआ है बंध्याकरण

डीपिसी विस्वजित कुमार ने बताया की पोठिया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 01 एवं बहादुरगंज में 01 05 पुरुषो का बंध्याकरण किया गया स्थायी साधनों में पुरुष नसबंदी भी कराया जा सकता है जो महिला बंध्याकरण की तुलना में बहुत आसान और सुलभ है महिला बंध्याकरण के लिए संबंधित महिला को अस्पताल में ऑपरेशन के बाद कम से कम चौबीस घंटे चिकित्सक की निगरानी में रहना पड़ता है जबकि पुरूष नसबंदी कराने से संबंधित पुरूष को एक घंटे में अस्पताल से छुट्टी मिल सकता है महिला बंध्याकरण सुविधा प्रसव के बाद 07 दिनों के अंदर या 06 सप्ताह बाद अपनाया जा सकता है जबकि पुरूष नसबंदी कभी भी अपनायी जा सकती है अस्पताल में समान्य दिनों में महिला बंध्याकरण कराने पर लाभार्थी को 2000 रुपया जबकि प्रसव के पश्चात बंध्याकरण करवाने पर लाभार्थी को 3000 रुपए सहयोगी राशि के रूप में उपलब्ध कराई जाती है किसी भी सरकारी अस्पताल में पुरूष नसबंदी करवाने पर लाभार्थी को 3000 रुपया सहयोग राशि के रूप में उपलब्ध कराई जाती है इसके साथ साथ अस्पताल से परिवार नियोजन का लाभ उपलब्ध कराने वाले आशा, आंगनवाड़ी सेविका या विकास मित्र को भी स्वास्थ्य विभाग द्वाराजागरूकता अभियान के लिए सहयोग राशि प्रदान किया जाता हैजनसंख्या वृद्धि गरीबी और बेरोजगारी के साथ पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालती

विकसित भारत की नई पहचान: परिवार नियोजन हर दंपति की शान

सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया कि केवल विकसित भारत की नई पहचान, परिवार नियोजन हर दंपति की शान एक नारा नहीं है, बल्कि यह एक दृष्टिकोण है जो एक सशक्त और समृद्ध भारत की दिशा में हमारे सामूहिक प्रयासों को प्रतिबिंबित करता है परिवार नियोजन के माध्यम से हम न केवल अपने परिवारों को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि राष्ट्र के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं परिवार नियोजन महिलाओं को यह अधिकार देता है कि उनके कब और कितने बच्चे हों परिवार नियोजन के कई लाभ हैं, जिनमें माता और बच्चों का बेहतर स्वास्थ्य, गरीबी में कमी और बेहतर शिक्षित आबादी शामिल है गर्भनिरोधक का उपयोग महिलाओं के लिए विशेष रूप से युवा, कम बच्चों वाली महिलाओं, और लड़कियों में गर्भावस्था से संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों को रोकता है यह स्वास्थ्य के अलावा कई अन्य लाभ प्रदान करता है जिसमें उच्च शिक्षा के अवसर, महिलाओं का सशक्तिकरण, सतत जनसंख्या वृद्धि, व्यक्तियों और समुदाय के लिए आर्थिक विकास इत्यादि शामिल है। पहला गर्भधारण 20 वर्ष की उम्र मे तथा दो बच्चों मे 3 साल का अंतराल होने से मां और बच्चों के स्वास्थ्य को भी लाभ मिलता है एवं गर्भनिरोधक के उपयोग से मातृ मृत्यु की संख्या में लगभग 20 से 30 प्रतिशत की कमी हो सकती है.

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