किशनगंज
आचार्य विराग सागर के प्रभावक शिष्य मुनि विशल्य सागर जी ने उत्तम सत्य के दिन संदेश देते हुए कहा कि वास्तव में अगर सत्य हमारे हृदय में अवतरित हो जाए तो संसार की कोई भी शक्ति हमें शिवपुर पहुंचने से नहीं रोक सकती है. सत्य के बिना तो सारा जगत शमशान के समान शून्य है. हम दान, दया, परोपकार, सेवा, तपस्या, ब्रह्मचर्य आदि के माध्यम से पृथ्वी को स्वर्ग बना सकते हैं पर सत्य के माध्यम से स्वयं को ही स्वर्गवत बना सकते है. इसीलिए सत्य के प्रति अग्रसर बने. आज का आदमी इतना निकृष्ट हो चुका है कि सत्य को जानकर भी असत्य को दामन में संजोये हुए है उसी के सहारे जीवन चल रहा है अपनी अहं की पुष्टि के लिए भी सत्य को असत्य की पोशाक पहना रहा है. सत्य को जानकर भी अनजान बन रहा है. पूर्ण असत्य में जिंदगी गुजार कर भी अपने को सत्य निष्ठ घोषित कर रहा है. अपने को सत्यान्वेषी सिद्ध कर रहा है. आज व्यक्ति सत्य को समझे बिना सत्य को पाने दौड़ रहा है, पर सत्य बाहर नहीं भीतर है.
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