अंचल कार्यालय अभिलेखागार से निर्गत पत्र की कर रहा अनदेखी, तीन वर्षों से लंबित है मामले
जिला अभिलेखागार से पत्र निर्गत होने के बावजूद संबंधित अंचलाधिकारी मौजूद खतियान की कॉपी जिला नहीं भेजते जिस कारण महीनो से लोगो के जरुरी काम रुके पड़े है.
किशनगंज. जिला अभिलेखागार से पत्र निर्गत होने के बावजूद संबंधित अंचलाधिकारी मौजूद खतियान की कॉपी जिला नहीं भेजते जिस कारण महीनो से लोगो के जरुरी काम रुके पड़े है.
बताते चले जिला अभिलेखाकार में जो रिकोर्ड मौजूद नहीं है उसके लिए वहां से अंचल कार्यालय को पत्र लिखा जाता है जिसके बाद बावजूद कागजात को समय सीमा के अंदर जिला अभिलेखाकार को मुहैया करवाया जाता है.लेकिन होता यह है कि एक तो जिला अभिलेखाकार से ही मनमाने तरीके से पत्र निर्गत होता है उसके बाद अंचल कार्यालयों में वह पत्र रद्दी की टोकरी में चला जाता है. जिला अभिलेखाकार अपने किसी भी पत्र का अपडेट संंबंधित अंचल कार्यालय से नहीं लेता है जिस कारण ऐसे ऐसे आवेदन जिला अभिलेखाकार में लंबित है जो केवल महीना नहीं वर्षो से लंबित है.अभिलेखागार पदाधिकारी के आदेश की कर रहा अंचल कार्यालय उपेक्षा
बताते चले जिला अभिलेखाकार के प्रभारी पदाधिकारी ने 16 मई 24 को अपने पत्रांक 32 के जरिये जिले के सातो अंचल को एक पत्र लिखकर आवेदकों के द्वारा मांगे गए वांछित खतियान की सत्यापित प्रति उपलब्ध करवाने को कहा था. इस पत्र के जरिये किशनगंज अंचल से संबंधित नागरिकों के द्वारा आवेदित 16 खतियान, कोचाधामन अंचल से संबंधित 11 खतियान वही ठाकुरगंज अंचल से संबंधित 11 खतियान दिघलबैंक अंचल से संबंधित 7 खतियान. वही पोठिया अंचल से संबंधित 15 खतियान तो टेढ़ागाछ अंचल से संबंधित 8 वही सबसे ज्यादा बहादुरगंज अंचल से संबंधित 19 खतियान की कॉपी किशनगंज जिला अभिलेखागार को उपलब्ध करवाने को कहा था , लेकिन सूत्रों की माने तो इस पत्र को निर्गत हुए 10 दिन हो गए लेकिन एक दो खतियान उपलब्ध करवाने के अलावे किसी भी अंचल ने इस मामले में रूचि नहीं ली. जिन लोगो के खतियान उपलब्ध हुए भी उन आवेदकों ने निजी रूचि लेकर अंचल स्तर पर यह काम करवाया तब यह संभव हुआ होगा.
तीन वर्षों से लंबित हैं आवेदन
उक्त पत्र को देखने से जिला अभिलेखागार की कार्य के मामले में अरुचि ही सामने आती है. आवेदकों की सूची में एक नाम मो जासिम का है जिन्होंने 26 मार्च 21 को नवनदी मौजा के 180 नंबर खाता के लिए आवेदन दिया था लेकिन अब तक उन्हें उनका खतियान का नक़ल नहीं मिल पाया है. उसी तरह बहादुरगंज अंचल कके बदिउज्जमा नमक व्यक्ति ने 20 सितम्बर 22 को गुवाबाड़ी मोजा के खाता नंबर 251 , 252 , 257 के लिए आवेदन दिया था लेकिन उन्हें भी कागजात नहीं मिले उसी तरह वर्ष 2023 के तो आधे दर्जन मामले है .क्यों जरुरी है खतियान
भू- सम्पत्ति के स्वामी को परिभाषित और प्रमाणित करने के उद्देश्य से खतियान एक बहुत जरूरी दस्तावेज है. इसमें भू स्वामी का नाम, पिता का नाम,आवासीय पता के साथ भू-खंड का खाता सं खेसरा , रकवा के अतिरिक्त भूमि की प्रकृति जैसे आवासीय, कृषि योग्य, बाग, तालाब आदि ,भू खंड का लगान तथा उक्त भू खंड पर किसी अन्य व्यक्ति का दखल-कब्जा [ यदि हो ] तो दर्ज रहता है. लेकिन प्रखंड स्तर पर अभिलेखागार की समुचित व्यवस्था के अभाव में दूर-दराज के क्षेत्रों से लोग जिला मुख्यालय दस्तावेज(अभिलेख) के लिए आते हैं. जिले के सुदूरवर्ती क्षेत्रों से यहां आने वाले आवेदकों में मजदूर, किसान, व्यवसायी, सिविल व सशस्त्र बल के जवान, महिलाएं होती हैं. इनमें से अधिकतर भूमि विवाद के पक्षकार के तौर पर या अपनी भूमि के दस्तावेज(खतियान) की नकल की प्राप्ति के लिए आवेदन करते हैं. बताते चले सरकार भूमि विवाद को बिहार की प्रगति में एक बड़ी बाधा मानती है और इसके लिए अनेक स्तर पर नेक नीयत के साथ काम कर रही है.खतियान प्राप्ति के क्या है नियम
वांछित अभिलेखों की प्राप्ति के लिए नियमावली 276 के तहत आवेदकों को प्रपत्र 28 में अपने पहचान-पत्र के साथ आवेदन करना पड़ता है. वांछित अभिलेखों की मांग के लिए अभिलेखागार से सशुल्क प्रपत्र संख्या 28 मुहैया कराने की कोई व्यवस्था नहीं है. बाहर से 10 रुपए की कोर्ट फीस वाले टिकट सहित आवेदन-प्रपत्र की खरीद के लिए आवेदकों को कुल 20 रुपए अदा करना पड़ता है. आवेदन प्राप्ति के बाद किसी दस्तावेज़ को उपलब्ध कराने में जिला अभिलेखागार बिना कोई ठोस कारण बताए महीनों का समय लगा देते हैं. आवेदकों को वांछित अभिलेख-प्राप्ति की निश्चित समय-सीमा कभी नहीं बताई जाती. जबकि अभिलेखागार के बाहर सूचना पट्ट टांग कर या ऑनलाइन व्यवस्था उपलब्ध करवाकर लोगो को इस मामले में जानकारी उपलब्ध करवाना चाहिए , जिसके जरिये आवेदक अपने आवेदन की अद्यतन स्थित की जानकारी प्राप्त कर सकें. इसके अभाव में आवेदकों को अपने आवेदन और वांछित अभिलेख की उपलब्धता की स्थिति जानने के लिए अभिलेखागार के कर्मचारियों की खुशामद और दया पर निर्भर रहना पड़ता है.
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