ठाकुरगंज-अररिया नए रेलखंड पर लोगों को ट्रेन के परिचालन का इंतजार
ठाकुरगंज-अररिया नए रेलखंड पर लोगों को ट्रेन के परिचालन का इंतजार
ठाकुरगंज. चिकेननेक के नाम से मशहूर सीमांचल की हजारों की आबादी आज भी रेल नेटवर्क को तरस रही है. ठाकुरगंज-अररिया रेललाइन बनने के बाद सीआरएस से हरी झंडी मिले महीनों गुजरने के बाबजूद ट्रेन का परिचालन शुरू नहीं हो सका है. जबकि इसके लिए महीनों पूर्व ट्रायल का कार्य भी पूरा हो गया है. आजादी के तकरीबन 8 दशक बाद भी यहां के लोग रेल सेवा से वंचित है. नई रेललाइन में मुख्य रेल संरक्षा आयुक्त द्वारा 29 और 30 अप्रेल को निरिक्षण किया गया था. जिसके बाद 12 जून को पुन: हुए सीआरएस जांच के बाद इस रेलखंड पर ट्रेन परिचालन के लिए हरी झंडी दी गई थी. लेकिन छह माह बाद भी रेलवे द्वारा इस रूट पर रेल परिचालन की घोषणा नहीं होने से लोगों में निराशा व्यापत है. यह परियोजना पूर्वोत्तर सीमा रेलवे के कटिहार मंडल के अधीन है. यह नवनिर्मित बड़ी लाईन को चिकेननेक हिस्से में मौजूदा रेलवे नेटवर्क को और अधिक मजबूत करने तथा उस हिस्से में पूरे रेलवे परिचालन की दक्षता में सुधार करने के प्राथमिक उद्देश्य से चालू किया गया है. यह नई रेललाइन से पूर्वोत्तर क्षेत्र की ओर और अधिक माल एवं यात्री परिवहन ले जाने में सहायक होगी. सीमांचल के लिए गेम चेंजर साबित होगी यह योजना अररिया-गलगलिया नई लाइन परियोजना 110.75 किमी की है, जिसमें 23.242 किमी रेलवेलाईन पोवाखाली स्टेशन से भाया कादोगांव हॉल्ट, भोगडाबर हॉल्ट होकर ठाकुरगंज स्टेशन तक है. नई रेललाइन बिहार के पूर्वी हिस्से को कवर करेगी. यह परियोजना सेक्शनों की भीड़ कम करने में मदद करेगी और इस प्रकार पौआखाली-ठाकुरगंज सेक्शन में ट्रेन सेवाओं की सुचारू आवाजाही होगी. इस परियोजना से आस-पास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन होगा. इससे उक्त क्षेत्र में अधिक संख्या में ट्रेनों की आवाजाही शुरू करने में भी मदद मिलेगी, जिससे इस अंचल के लोगों के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा. ईंधन की बचत और यात्रा समय में कमी के अलावा परिवहन लागत कम होने से आसपास क्षेत्रों के आर्थिक परिदृश्य में भी काफी सुधार होगा. माल परिवहन भी सस्ता हो जाएगा. 18 साल बाद पूर्ण हुआ प्रोजेक्ट का एक हिस्सा पूर्वोत्तर भारत को सीमांचल-मिथिलांचल के रास्ते दिल्ली और अन्य राज्यों से जोड़ने वाली इस परियोजना को तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने वित्त वर्ष 2006-07 के बजट में स्वीकृति दी थी. 24 वर्ष पूर्व घोषित इस प्रोजेक्ट का काम इतना धीमा रहा कि 18 साल में भी संतोषजनक काम नहीं किया जा सका. इस प्रोजेक्ट को मार्च 2011 तक इसे पूरा कर लिया जाना था. जानकारी अनुसार इस प्रोजेक्ट की लागत पूर्व में 530 करोड़ रुपये थी, जो अब बढ़कर 2145 करोड़ रुपये हो गई है. क्या फायदा होगा इस रेल लाइन का किसी आपदा के समय यदि बरोनी-कटिहार-एनजीपी रेल रूट बंद रहता है तो देश के शेष भाग से पूर्वोतर का संपर्क बना रहे इसके लिए अररिया-गलगलिया रेललाइन का निर्माण काफी महत्व पूर्ण है. हाल के दिनों में अब तक दर्जनों बार विभिन्न कारणों से बाधित हुई रेल सेवा के दौरान लोगों के जेहन में तो यह सवाल गूंजता है कि सरकार क्यों नहीं विकल्प के रूप में गलगलिया-अररिया नई रेल लाइनको प्राथमिकता देते हुए पूरा करती है. परन्तु रेल अधिकारियों और विभिन्न सम्बंधित अधिकारियों के जेहन में क्यों नहीं यह बात आती है. बताते चले लगभग 101 किमी लंब इस परियोजना के पूर्ण होने के बाद यह मार्ग सिलीगुड़ी-ठाकुरगंज होते हुए अररिया – फारबिसगंज – मुज्जफरपुर, दरभंगा, लखनऊ , मुरादाबाद होते हुए दिल्ली से जुड़ जाएगा. और तो और यह मार्ग वर्तमान के एनजीपी – कटिहार-बरौनी-पटना-मुगलसराय-लखनऊ-मुरादाबाद के बनिस्पत 50 किमी तक कम हो जाएगी. और तो और देश को पूर्वोतर से जुड़ने का एक वैकल्पिक रास्ता भी मिलेगा. शिलान्यास के दस साल बीतने के बाबजूद अब तक इस परियोजना के लिए जमीन तक रेलवे अधिग्रहण नहीं कर सका. अब जब लगातार सीमा पर हालात तनावपूर्ण हो और पूर्वोतर का रेल संपर्क हमेशा बाधित हो जाता हो तब इस परियोजना का महत्व रेलवे को समझना चाहिए.
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