पूरे विधि-विधान से हुई आदि शक्ति माता दुर्गा के कालरात्रि रूप की पूजा
शारदीय नवरात्र की सातवीं तिथि बुधवार की सुबह मां मन्दिरों के पट खुले.श्रद्धालुओं ने पूजा पंडालों में मां भगवती के दर्शन किये.सप्तमी तिथि के साथ रात्रि में अष्टमी तिथि होने से महानिशा पूजा रात में में प्रारंभ हुई.
नवरात्रि का सातवां दिन
आज होगी माता के महागौरी रूप की पूजामाता के दरबार मे लगा भक्तों का तांताकालरात्रि(निशा पूजा) में भाड़ी संख्या में शामिल हुए श्रद्धालूसज गया माता का दरबार
किशनगंज.ऊं जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी.दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाह स्वधा नमोस्तु ते.
शारदीय नवरात्र की सातवीं तिथि बुधवार की सुबह मां मन्दिरों के पट खुले.श्रद्धालुओं ने पूजा पंडालों में मां भगवती के दर्शन किये.सप्तमी तिथि के साथ रात्रि में अष्टमी तिथि होने से महानिशा पूजा रात में में प्रारंभ हुई.नवरात्र के सातवें दिन मां के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की आराधना की गई.पंडित गोपाल ठाकुर ने बताया कि ग्रंथों के अनुसार, मां कालरात्रि अमोघ फलदायिनी हैं. नवरात्र के सातवें दिन आदिशक्ति मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा की जाती है..मां की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष इन चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति हो जाती है. वह इस लोक में रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है.आदि शक्ति जगदंबा का विकराल स्वरूप हैं मां कालरात्रि़
जिले के
दिघलबैंक दुर्गा मंदिर के पुजारी गोपाल ठाकुर बतातें हैं कि इनकी उपासना का अलग ही महत्व है. कहते हैं दुष्टों और राक्षसों के दमन के लिए ही देवी मां ने यह संहारक अवतार लिया था.देवी का सातवां स्वरूप हैं मां कालरात्रि. ये त्रिनेत्रधारी हैं. मां कालरात्रि के गले में कड़कती बिजली की अद्भुत माला है. इनके हाथों में खड्ग और कांटा है और इनका का वाहन ””””गधा”””” है. मां कालरात्रि को शुभंकरी भी कहते हैं. संसार में व्याप्त दुष्टों और पापियों के हृदय में भय को जन्म देने वाली मां हैं मां कालरात्रि. मां काली शक्ति सम्प्रदाय की प्रमुख देवी हैं. इन्हें दुष्टों के संहार की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है.असुरों के संहार के लिए इस रुप का धारण किया था
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने कालरात्रि का अवतार लिया था. मां काली निरंतर संहार करती हुई विनाशलीला रच रही थीं. इनके भयंकर स्वरूप और उतपात से सृष्टि में हाहाकार मच गया था. ऐसे में मां काली को प्रत्यक्ष रूप में रोकने के लिए सभी देवताओं के अनुरोध पर महाकाली के क्रोध को शांत करने के लिए शिव ने उनकी राह में लेटने की युक्ति लगाई थी.ताकि चराचर ब्रह्माण्ड के स्वामी को अपने पांव के नीचे पाकर देवी शांत हों और अपने मूल रूप में वापस आएं. शक्ति का महानतम स्वरुप महाविद्याओं का होता है. दस महाविद्याओं के स्वरुपों में ””””मां काली”””” प्रथम स्थान पर हैं. शुम्भ-निशुम्भ के वध के समय मां काली का रंग काला पड़ गया. मां काली के शरीर से निकले तेज पुंज से उनका रंग काला हो गया. इनकी उपासना से शत्रु,भय, दुर्घटना और तंत्र-मंत्र के प्रभावों का समूल नाश हो जाता है. मां काली अपने भक्तों की रक्षा करते हुए उन्हें आरोग्य का वरदान देती हैं.पूजा के लिए लगा रहा तांता
इधर, विभिन्न देवी,दुर्गा मंदिरों,पूजा पंडालों में पूजा-अर्चना के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी.संध्या समय महिलाएं व युवतियां दीप जलाने पहुंची.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है