1990 में पूर्णिया से अलग होकर बना था किशनगंज जिला

किशनगंज को जिला बने 35 साल आज पूरे हो गए.इन 35सालों में इस शहर के अंदर बहुत कुछ बदल गया.किशनगंज को जिले का दर्जा पाने में दशकों लग गए.

By Prabhat Khabar News Desk | January 13, 2025 8:18 PM
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काफी कुछ बदल गया इन 35 सालों मेंकाफी समस्याएं आज भी जस की तस.

दो अनुमंडल और नये प्रखंड बनाये जाने की उठती रही है मांग

किशनगंज.किशनगंज को जिला बने 35 साल आज पूरे हो गए.इन 35सालों में इस शहर के अंदर बहुत कुछ बदल गया.किशनगंज को जिले का दर्जा पाने में दशकों लग गए.कालांतर में कभी कृष्ण कुंज के नाम से यह इलाका जाना जाता था.वहीं महाभारत काल के घटनाओं को जिले के कई हिस्से आज भी समेटे हुए है.चायपत्ती,धान,पाट, अदरक और मकई की खेती के लिए किशनगंज का पूरे सूबे में अपना महत्व है. मुख्यालय करीब सौ एकड़ से अधिक भूमि में फैला हुआ है.प्राकृतिक सौंदर्य और साफ सफाई,अधिक बारिश और खुशगवार मौसम किशनगंज को अन्य से अलग बनाती है. 14 जनवरी 1990 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा द्वारा किशनगंज को अलग जिला घोषित किये जाने के बाद आज किशनगंज जिला अपना स्थापना दिवस मना रहा है.आज 35 वसंत बीत जाने के बाद सूबे के उत्तर पूर्वी छोड़ पर स्थित और पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले किशनगंज जिला अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रहा.

किशनगंज का रहा है गौरवशाली इतिहास

तीनों ओर से पश्चिम बंगाल की सीमाओं के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल व बांग्लादेश की सीमाओं से सटे रहने से सामरिक दृष्टिकोण से भी किशनगंज का अपना अलग महत्व है.पूर्व में कृष्ण कुंज तथा आलमगंज के नाम से जाना जाने वाला किशनगंज पूर्णिया जिले का एक अनुमंडल मात्र था.परंतु इसके किशनगंज के रूप में जाने जाने का भी एक दिलचस्प इतिहास है.उस वक्त किशनगंज में खगड़ा नवाब मो फकीरूद्दीन का राज था.इसी दरम्यान एक साधु ने यहां प्रवेश किया. किशनंगज की हरी भरी वादियों को देख उन्होंने यहां कुछ क्षण विश्राम करने का निर्णय लिया था. परंतु शहर का नाम आलमगंज शहर के बीचो बीच बहने वाली नदी का नाम रमजान व शासक का नाम फकरूद्दीन देख उन्होंने अपनी मंशा बदल डाली थी.परंतु साधु के शहर से वापस लौटने की जानकारी मिलते ही खगड़ा नवाब ने शहर का नाम बदल कर कृष्णा कूंज कर दिया.जिसे आज किशनगंज के नाम से जाना जाता है. 1884 स्क्वायर किमी में फैले जिले की जनसंख्या 20 लाख से अधिक है.जिले में कुल 7 प्रखंड बहादुरगंज, दिघलबैंक, किशनगंज, कोचाधामन, पोठिया, ठाकुरगंज व टेढ़ागाछ है. जबकि एक मात्र अनुमंडल किशनगंज है. हालांकि जिले में 72 प्रतिशत आबादी मुस्लिम, 27 प्रतिशत हिंदु व मात्र 1 प्रतिशत अन्य होने के बावजूद भी यहां की आपसी भाईचारगी की मिसाल सिर्फ प्रदेश और देश ही नहीं विश्व के कोने-कोने तक पहुंच गयी है.परंतु साक्षरता के क्षेत्र में अब भी यह जिला सूबे के अन्य जिलों से काफी पिछड़ा है.नतीजतन जनसंख्या वृद्धि दर, लगातार बढ़ रहे स्त्री व पुरूष अनुपात भी चिंता का कारण बन रहे है.वहीं जिले में रोजगार के अवसर का अभाव होने के कारण बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में परदेशी बनें हुए हैंऐसा नहीं है कि सरकारी योजनाओं को जिले में धरातल पर नहीं उतारा गया है.इसके बावजूद भी कृषि प्रधान जिला होने के कारण बेरोजगारी यहां भी प्रमुख मुद्दा है.पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार होने के जिले में पयर्टन की भी अपार संभावनाएं है.रमजान नदी,ऐतिहासिक खगड़ा मेला जहां अपना अस्तित्व खोने की कगार पर पहुंच चुका है वहीं भीम वालिस, कच्चूदह झील, बड़ीजान, बेणुगढ़ आदि ऐतिहासिक स्थल पर सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नजर पड़ी,उन्होंने वेनुगढ़ और ठाकुरगंज का दौरा भी किया.जिसके बाद इन पौराणिक स्थलों के विकसित होने की संभावना बढ़ी है.

वो उम्मीदें जो नहीं हुई पूरी

जिले में एकमात्र अनुमंडल है जिसको लेकर बराबर चर्चा होती है कि बहादुरगंज और ठाकुरगंज को अनुमंडल का दर्जा मिलना चाहिए.महानंदा नदी पर नये पूल सहित जिले के दिघलबैंक में कस्टम कार्यालय खुले ताकि जिले के लोग आसानी से नेपाल आ और जा सके.कारोबार और आवागमन और अधिक एवं सुलभ हो सकें.इसके अलावे जिले से गुजरने वाली अररिया-गलगलिया नई रेलवे लाइन,बहादुरगंज-किशनगंज के बीच नई फोर लेन सड़क का निर्माण,दिघलबैंक बायसी स्टेट हाईवे 99 का कार्य प्रारंभ सहित मकई आधारित उद्योग की स्थापना की भी मांग लंबे समय से रही है.वहीं जाम से हलकान होती किशनगंज शहर एवं नाले में तब्दील होती जा रही रमजान नदी अपने उद्धारक की बाट जोह रही है.

शहर में जाम एक बड़ी समस्या

शहर के बीचोबीच गुजरने वाली रेलवे लाइन के कारण शहर में पूरा दिन जाम की समस्या लगी रहती है.धर्मगंज और रेलवे फाटक के हर तीन मिनट में बंद होने के कारण शहर में आवागमन के रफ्तार पर ब्रेक लगता है.लिहाजा यहां अंडरग्राउंड मार्ग या ओवरब्रिज का निर्माण जरूरी है.

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