शरद पूर्णिमा पर बांग्ला समाज के लोग मनाते हैं लखी पूजा बुधवार को आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है, इसे शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है पौआखाली. अश्विन माह का पूर्णिमा बुधवार को है. इसे ही लोग शरद पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं. शरद पूर्णिमा का दिन धार्मिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण दिन है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी की उत्पत्ति हुईं थी. शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी की पूजा उपासना करने से जातक को धन-धान्य, सुख-शांति यश और वैभव के आशीर्वाद का फल मिलता है. यही कारण है कि शरद पूर्णिमा के इस पावन दिन में खासकर बंगाली परिवारों के ठाकुरबाड़ी यानी पूजा घरों में कोजोगरी लक्ष्मी की धूमधाम से पूजा आरती संपन्न की जाती है. पूजा घरों की अच्छे से साफ सफाई कर उनकी आकर्षक रूप से सजावट कर शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी की प्रतिमा और घट स्थापित की जाएगी. इसके बाद लाल रंग की चुनरी, अलता, चूड़ी, सिंदूर, बिंदी, कुमकुम आदि श्रृंगार की सामग्री अर्पित कर वहीं एक पात्र में धान के साथ कुछ मात्रा में कौड़ी और पैसे रखकर घी का एक दीपक जलाया जायेगा. फिर फल फूल प्रसाद आदि पूजन सामग्री से वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पूजा आराधना संपन्न की जायेगी. माता लक्ष्मी को हलवा पुरी, मखना, खोई, नारियल का लड्डू, खीर सहित कई प्रकार के फल और मिष्ठान का भोग लगाया जायेगा. माता लक्ष्मी को खिचड़ी प्रसाद का भी भोग लगाया जाता है. खीर को एक पात्र में रखकर रात को खुले आसमान के नीचे रखा जाता है और सुबह उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करना काफी फलदायक होता है कारण है कि शरद पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है जो खीर में अपना प्रभाव छोड़ती है. उधर कोजोगरी लक्ष्मी पूजा को लेकर घरों में जहां उत्साह उमंग का माहौल है तो वहीं हाट बाजारों में पूजन सामग्रियों की दुकानों मिष्ठान भंडारों में खरीददारी को लेकर चहल पहल बनी हुई है.
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