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Lok Sabha Elections: किशनगंज कांग्रेस का गढ़, लेकिन त्रिकोणीय संघर्ष के आसार

Lok Sabha Elections: किशनगंज लोकसभा सीट वैसे तो कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. 2019 में भी कांग्रेस यहां जीत दर्ज की थी. इस बार कांग्रेस यहां मुकाबले में तो है लेकिन संघर्ष त्रिकोणीय बनता जा रहा है.

By Ashish Jha | April 22, 2024 4:35 AM

Lok Sabha Elections: अवधेश यादव. बिहार में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में जिन इलाकों में वोटिंग होनी है, उसमें सबसे महत्वपूर्ण सीमावर्ती किशनगंज लोकसभा की सीट भी शामिल है. किशनगंज में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है. पिछले कुछ सालों में हैदराबाद की पार्टी के नाम से मशहूर असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम इस इलाके में सक्रिय है. इसका नतीजा 2020 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला जब ओवैसी की पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में इस इलाके में पांच सीटों पर जीत हासिल की थी. बिहार में कोई स्थानीय मुस्लिम चेहरा या नेता नहीं होने का फायदा ओवैसी की पार्टी ने उठाया. पिछले तकरीबन 10 सालों से सीमांचल के पिछड़ेपन को बड़ा मुद्दा बनाते हुए ओवैसी लगातार यहां दौरा कर रहे हैं और इस बार के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने किशनगंज लोक सभा सीट पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान को मैदान में उतारा है.

किशनगंज का ओवैसी कनेक्शन

किशनगंज में मुस्लिम समुदाय की आबादी तकरीबन 68 फीसदी है. इस लोकसभा सीट के अंतर्गत किशनगंज और पूर्णिया जिले के कुछ हिस्से आते हैं. पिछले तीन लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जा सकता है. 2009 और 2014 में कांग्रेस उम्मीदवार दिवंगत मौलाना असरारउल हक चुनाव जीत कर सांसद बने. उनके निधन के बाद 2019 में कांग्रेस ने डा मोहम्मद जावेद को टिकट देकर मैदान में उतारा था. मो जावेद पूरे बिहार में एक मात्र किशनगंज सीट पर कांग्रेस को सफलता दिला कर संसद पहुंचे थे. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम ने जिन पांच सीटों पर जीत हासिल की, उनमें से चार विधानसभा सीट बहादुरगंज, कोचाधमन, आमौर और बायसी किशनगंज लोकसभा क्षेत्र के तहत आती हैं, जबकि अररिया की जोकीहाट विधानसभा सीट किशनगंज की सीमा पर है.

यहां तीन प्रत्याशियों के बीच टक्कर

इस बार के चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस ने मौजूदा सांसद डॉ जावेद को टिकट दिया है. वहीं एनडीए की तरफ से जदयू ने पूर्व विधायक मुजाहिद आलम को अपना उम्मीदवार बनाया है. एआइएमआइएम के टिकट पर अख्तरुल ईमान ताल ठोक रहे हैं. माना जा रहा है कि इन्हीं तीनों प्रत्याशियों के बीच इस बार टक्कर है. हालांकि निर्दलीय उम्मीदवार भी सियासी अखाड़े में पूरी ताकत से अपने को झोंके हुए हैं. सीमांचल क्षेत्र में ओवैसी के हस्तक्षेप को लेकर महागठबंधन में भी साफ तौर पर हलचल तेज है. 2020 में ओवैसी ने जिस तरीके से महागठबंधन का खेल इस इलाके में बिगाड़ दिया था, उसी बात का डर इस बार लोकसभा चुनाव में राजद और कांग्रेस को सता रहा है.

एक नजर किशनगंज संसदीय क्षेत्र पर

किशनगंज जिला पश्चिम बंगाल, नेपाल और बंग्लादेश के बॉर्डर से जुड़ा हुआ है. इस इलाके को सीमांचल या सीमांत क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. यहां पहली बार 1957 में लोकसभा के चुनाव हुए थे. तब से लेकर अब तक इस सीट पर केवल एक बार हिंदू सांसद ने जीत दर्ज की है. 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार लखन लाल कपूर चुनाव जीते थे. इसके बाद से मुस्लिम उम्मीदवार ही चुनाव जीतते आ रहे हैं. सियासी गलियारों में ऐसा भी कहा जाता है कि यह सीट ऐसा है, जहां मोदी लहर भी काम नहीं करती है. मुस्लिम बाहुल्य सीट होने की वजह से एआइएमआइएम प्रमुख असदुदीन ओवैसी भी यहां से अपना उम्मीदवार उतारते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की सीट शेयरिंग में किशनगंज लोकसभा क्षेत्र जेडीयू के खाते में गयी है.

1989 में चर्चित पत्रकार एमजे अकबर ने हासिल की थी जीत

इस सीट के इतिहास में नजर डाले तो पहली बार 1957 और 1962 में कांग्रेस के मोहम्मद ताहिर यहां से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. इसके बाद 1967 में यहां से पहली बार हिंदू उम्मीदवार लखन लाल कपूर ने चुनावी जीत दर्ज की थी. लखन लाल कपूर की पार्टी का नाम प्रजा सोशलिस्ट पार्टी थी. 1971 में कांग्रेस के जमीलुर रहमान सांसद बने. 1977 में जनता पार्टी से हलीमुद्दीन सांसद बने. 1980-1984 में कांग्रेस के टिकट पर हलीमुद्दीन रहमान फिर सांसद बने. 1989 में देश के चर्चित पत्रकार एमजे अकबर कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे. 1991 में जनता दल से सैयद शहाबुद्दीन सांसद बने. 1996 में जनता दल से मोहम्मद तस्लीमुद्दीन सांसद बने.1998 में लालू यादव की पार्टी राजद से मोहम्मद तस्लीमुद्दीन सांसद बने.1999 में भाजपा ने यहां जीत दर्ज की सैयद शाहनवाज हुसैन सांसद चुने गये. 2004 में दोबारा मो तस्लीमुद्दीन सांसद चुने गए. 2009 में कांग्रेस नेता मोहम्मद असरारुल हक सांसद बने. 2014 में भी मोहम्मद असरारुल हक कासमी ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से मोहम्मद जावेद ने जीत दर्ज की.

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