एचएलवी कोच लगे होते तो बच सकती थी कई जानें
न्यूजलपाईगुड़ी किशनगंज रेल खंड पर हुई कंचनजंघा एक्सप्रेस दुर्घटना के बाद यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है की यदि इस ट्रेन में एलएचबी कोच लगे होते तो नुकसान का आंकड़ा और कम होता.
ठाकुरगंज. न्यूजलपाईगुड़ी किशनगंज रेल खंड पर हुई कंचनजंघा एक्सप्रेस दुर्घटना के बाद यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है की यदि इस ट्रेन में एलएचबी कोच लगे होते तो नुकसान का आंकड़ा और कम होता. बताते चले सोमवार को हुई कंचनजंगा एक्सप्रेस की गिनती बड़ी रेल दुर्घटनाओं में की जा रही है. इस दर्दनाक हादसे में 9 लोगों की जान चली गई. इसके अलावा कई लोग घायल भी हुए हैं. बताया जा रहा है कि कंचनजंघा एक्सप्रेस में लगे कोच सभी आईसीएफ के थे जो कि काफी पुराने हैं.
एलएचबी कोच से दुर्घटना की आशंका कम
रेलवे की ओर से अब अधिकांश ट्रेनों में एलएचबी कोच लगाए जा रहे है. परंतु उक्त एक्सप्रेस में यह कोच नहीं होने की वजह से दुर्घटना भीषण हो गया. रेलवे का दावा है कि एलएचबी कोच से ट्रेनों की स्पीड बढ़ती है. एलएचबी में डिस्क ब्रेक का प्रयोग किया जाता है. ट्रेन ब्रेक लगाने पर कुछ ही दूरी पर रुक जाती है. इसी तरह एलएचबी कोच का सस्पेंशन आईसीएफ से काफी अच्छा होता है. एलएचबी कोच में 60 डेसीबल तक की आवाज होती है. कोच में डबल सस्पेंशन है. इसमें बीच वाले सस्पेंशन में हाइड्रोलिक होता है. साथ ही एक्स्ट्रा सस्पेंशन भी दिया गया है. नए एलएचबी कोच से ट्रेनों की स्पीड करीब 160 किमी प्रतिघंटे है.
आरसीएफ कोच के कारण हवा में अटका कोच
रेलवे लगातार एंटी कोलाइड एलएचबी सभी ट्रेनों में लगा रहा है. यह कोच किसी दुर्घटना के दौरान एक से दूसरे कोच पर नहीं चढ़ते हैं जबकि पुराने आरसीएफ कोच किसी भी दुर्घटना के दौरान एक दूसरे पर चढ़ जाते हैं और इसके कारण मौत का आंकड़ा बढ़ जाता है. इस दुर्घटना में गनीमत यह रही कि पीछे एक रैक मालगाड़ी के कोच का लगा था नहीं तो मौत का आंकड़ा बढ़ जाता है.
क्या है लिंक हाफमेन बुश
रिसर्च डिजाइन्स ऐंड स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइजेशन ने तकरीबन 10 साल पहले ऐसे कोच बनाये थे, जो आपस में टकरा न सकें. इन्हें लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) कोच नाम दिया गया. एलएचबी कोचों और सीबीसी कपलिंग होने से ट्रेन के कोचों के पलटने और एक दूसरे पर चढ़ने की गुंजाइश नहीं रहती है.
उच्च स्तरीक तकनीक
एलएचबी कोच पुराने कन्वेशनल कोच से काफी अलग होते हैं. ये उच्च स्तरीय तकनीक से लैस है. इन कोचों में बेहतर एक्जावर का उपयोग किया गया है. जिससे आवाज कम होती है. यानी कि पटरियों पर दौड़ते वक्त अंदर बैठे यात्रियों को ट्रेन के चलने की आवाज बहुत धीमी आती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है