टीबी रोग बचाव एवं रोकथाम पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित, 2025 तक टीबी को जड़ से मिटाने का लक्ष्य

केंद्र सरकार वर्ष 2025 तक पूरे देश से टीबी बीमारी का उन्मूलन का लक्ष्य रखा है. इसी मुहिम के तहत जिले में सघन अभियान चलाया जा रहा है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 31, 2024 8:32 PM
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टीबी बीमारी को जड़ से मिटाने के लिए गांव-गांव खोजे जा रहे मरीज

किशनगंज.केंद्र सरकार वर्ष 2025 तक पूरे देश से टीबी बीमारी का उन्मूलन का लक्ष्य रखा है. इसी मुहिम के तहत जिले में सघन अभियान चलाया जा रहा है. गांव-गांव जाकर टीबी के मरीज खोजे जा रहे हैं. आंगनबाड़ी केंद्रों व स्वास्थ्य केंद्रों पर स्वास्थ्य शिविर लगाकर संभावित रोगियों की जांच की जा रही है.टीबी एक गंभीर संक्रामक बीमारी है, जो म्यकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के कारण होती है. यह रोग मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है. लेकिन यह शरीर के अन्य अंगों को भी संक्रमित कर सकता है. तपेदिक को अगर समय रहते नहीं रोका गया, तो यह रोग जानलेवा साबित हो सकता है. टीबी जैसी जानलेवा बीमारी के प्रिवेंशन और उपचार के महत्व को समझाने के लिए सदर अस्पताल स्थित एएनएम स्कूल प्रांगन में सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार की अध्यक्षता में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई. इस कार्यक्रम में जिले के स्वास्थ्य विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य टीबी की भयावहता को उजागर करना और इसके प्रभावी उपचार के लिए ठोस कदम उठाने पर विचार-विमर्श करना था.

हाथ मिलाने, किसी को खानपान की सामग्री देने या लेने से नही फैलता टीबी

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया कि भारत में टीबी की स्थिति चिंताजनक है. वैश्विक टीबी मामलों का लगभग 27% हिस्सा भारत में पाया जाता है, जो इस रोग की व्यापकता और गंभीरता को दर्शाता है. हर साल लाखों लोग इस बीमारी का शिकार होते हैं, और उनमें से कई लोग समय पर इलाज न मिलने के कारण अपनी जान गंवा बैठते हैं. टीबी के मामलों में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधक क्षमता का बढ़ना भी एक गंभीर चुनौती है, जो इस रोग के इलाज को और अधिक जटिल बना देता है.उन्होंने बताया कि तपेदिक के बारे में व्याप्त मिथकों और भ्रांतियों को दूर करने की सख्त जरूरत है. कई लोग इस बीमारी को कलंक मानते हैं, जिसके कारण वे इसका इलाज करवाने से कतराते हैं. ऐसे में, लोगों को शिक्षित करना और उन्हें सही जानकारी प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है. उन्होंने बताया कि सीडीसी के मुताबिक टीबी संक्रमण को ले कुछ मिथ्याएं भी हैं . इन मिथ्याओं की वजह से लोग टीबी ग्रसित लोगों की उपेक्षा करने लगते हैं. टीबी ग्रसित लोगों के प्रति इस तरह से उपेक्षा किया जाना उसके इलाज में भी असुविधा ही पैदा करती है. आमलोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे टीबी संक्रमण होने के सही कारणों की जानकारी लें. सीडीसी के अनुसार यह रोग हाथ मिलाने, किसी को खानपान की सामग्री देने या लेने, बिस्तर पबैठने व एक ही शौचालय के इस्तेमाल करने से बिल्कुल भी नहीं फैलता है.

2025 तक टीबी को जड़ से हटाना है

जिला यक्षमा रोग पदाधिकारी डॉ मंजर आलम ने तपेदिक के प्रिवेंशन ट्रीटमेंट के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा की. उन्होंने बताया कि तपेदिक के इलाज में सबसे महत्वपूर्ण है रोग की जल्दी पहचान और प्रभावी उपचार. वही पुरे बहरत वर्ष में वर्ष 2025 तक टीबी को जड़ से ख़त्म करने का संकल्प लिया है |समय पर उपचार न मिलने से यह रोग घातक बन सकता है. उन्होंने जोर देकर कहा कि टीबी मरीजों के लिए समय पर और पूरा इलाज प्राप्त करना जरूरी है, ताकि इस बीमारी को जड़ से समाप्त किया जा सके. उन्होंने इस बात पर भी ध्यान आकर्षित किया कि तपेदिक का अधूरा इलाज रोग की पुनरावृत्ति और एंटीबायोटिक-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देता है, जिससे स्थिति और गंभीर हो जाती है. इसलिए, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मरीज अपनी दवा पूरी तरह से लें और इलाज को अधूरा न छोड़ें.

टीबी संक्रमित मरीज़ों के लिए निशुल्क दवा की व्यवस्था

जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ मंजर आलम ने बताया कि टीबी जैसी बीमारियों से लड़ने एवं बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न तरह के कार्यक्रमों का अहम योगदान है. अमीर हो या गरीब, हर तरह के रोगियों के लिए सरकार की ओर से निःशुल्क दवा तो मिलती ही है, साथ ही साथ पौष्टिक आहार खाने के लिए पैसा भी मिलता है. यह टीबी संक्रमित मरीज़ों के लिए वरदान साबित हो रहा है. इसीलिए लोगों को टीबी जैसे संक्रमण से डरने की नहीं बल्कि लड़ने की जरूरत है. सरकार की ओर से मरीज़ों को मिलने वाली योजनाओं का लाभ उठाकर टीबी जैसी बीमारी से पूरी तरह से ठीक हुआ जा सकता है.

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