पौआखाली नानकार काली मंदिर में 20 वीं से हो रही है पूजा-आराधना
नानकार स्थित बड़ी काली मंदिर, झपड़तल स्थित काली मंदिर और लोहारपट्टी स्थित काली मंदिर में धूमधाम से पूजा अर्चना की जाएगी.
पौआखाली.कार्तिक अमावस की रात होने वाली मां काली की पूजा आराधना को लेकर पौआखाली नगर में व्यापक तैयारियां चल रही है. यहां नानकार स्थित बड़ी काली मंदिर, झपड़तल स्थित काली मंदिर और लोहारपट्टी स्थित काली मंदिर में धूमधाम से पूजा अर्चना की जाएगी. सभी मंदिरों में आयोजन समितियों के द्वारा पूजा पंडाल, आकर्षक लाइटिंग आदि सजावट की तैयारियां शुरू कर दी गई है. नगर में प्लस टू हाईस्कूल रोड नानकार स्थित मां काली के मंदिर की तो मंदिर का इतिहास वर्षों पुराना है. बड़े बुजुर्गों का कहना है कि 20 वीं सदी के प्रारंभ में इस रियासत के राजा रहें पृथ्वी चंद्र लाल ने मां काली के मंदिर का स्थापना करवाया था. तबके समय में टीन का छत और ईंट की दीवारों पर मिट्टी का लेप चढ़ाया हुआ राजा पृथ्वी चंद्र लाल ने छोटा सा मंदिर का निर्माण कराकर मां काली की पूजा प्रारंभ करवाया था और तबसे ही इस मंदिर में कार्तिक अमावश की रात मां काली की पूरे विधि विधानपूर्वक भव्य तरीके से पूजा अर्चना संपन्न की जाती है. हालांकि समय काल जैसे जैसे बदलते गया वैसे वैसे मंदिर भी अपना भव्य रूप लेता गया. यहां काली पूजा में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है दूरदराज से भक्त माता के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. मान्यता है कि को भी भक्त सच्चे मन से मां के सम्मुख होकर मन्नत मांगता है उसकी मन्नत मां जल्द ही पूरी कर देती है. काली पूजा में पाठा बलिदान की भी परंपरा वर्षों पुरानी है जो आजतक जारी है. आस्था के इस मंदिर में माता के भक्तों के बीच हलवा पुरी खीर और खिचड़ी प्रसाद का वितरण किया जाता है. इस मंदिर में स्थानीय निवासी सत्यन लाल चौधरी के परिवार पर पूजा संपन्न कराने का संपूर्ण भार रहता है. वहीं लोहारपट्टी और झपड़तल काली मंदिरों में सुधीर यादव, राजू रावत, विशाल सिन्हा, ओमलाल शर्मा, पवन पाठक आदि अन्य युवकों का पूजा संपन्न कराने में भरपूर सहयोग रहता है इन जगहों पर भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है और मध्यरात्रि को पूजा अर्चना संपन्न कराकर खिचड़ी प्रसाद का वितरण किया जाता है. कार्तिक अमावस की रात होने वाली मां काली की पूजा आराधना को लेकर पौआखाली नगर में व्यापक तैयारियां चल रही है. यहां नानकार स्थित बड़ी काली मंदिर, झपड़तल स्थित काली मंदिर और लोहारपट्टी स्थित काली मंदिर में धूमधाम से पूजा अर्चना की जाएगी. सभी मंदिरों में आयोजन समितियों के द्वारा पूजा पंडाल, आकर्षक लाइटिंग आदि सजावट की तैयारियां शुरू कर दी गई है. बात की जाए नगर में प्लस टू हाईस्कूल रोड नानकार स्थित मां काली के मंदिर की तो मंदिर का इतिहास वर्षों पुराना है. बड़े बुजुर्गों का कहना है कि 20 वीं सदी के प्रारंभ में इस रियासत के राजा रहें पृथ्वी चंद्र लाल ने मां काली के मंदिर का स्थापना करवाया था. तबके समय में टीन का छत और ईंट की दीवारों पर मिट्टी का लेप चढ़ाया हुआ राजा पृथ्वी चंद्र लाल ने छोटा सा मंदिर का निर्माण कराकर मां काली की पूजा प्रारंभ करवाया था और तबसे ही इस मंदिर में कार्तिक अमावश की रात मां काली की पूरे विधि विधानपूर्वक भव्य तरीके से पूजा अर्चना संपन्न की जाती है. हालांकि समय काल जैसे जैसे बदलते गया वैसे वैसे मंदिर भी अपना भव्य रूप लेता गया. यहां काली पूजा में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है दूरदराज से भक्त माता के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. मान्यता है कि को भी भक्त सच्चे मन से मां के सम्मुख होकर मन्नत मांगता है उसकी मन्नत मां जल्द ही पूरी कर देती है. काली पूजा में पाठा बलिदान की भी परंपरा वर्षों पुरानी है जो आजतक जारी है. आस्था के इस मंदिर में माता के भक्तों के बीच हलवा पुरी खीर और खिचड़ी प्रसाद का वितरण किया जाता है. इस मंदिर में स्थानीय निवासी सत्यन लाल चौधरी के परिवार पर पूजा संपन्न कराने का संपूर्ण भार रहता है. वहीं लोहारपट्टी और झपड़तल काली मंदिरों में सुधीर यादव, राजू रावत, विशाल सिन्हा, ओमलाल शर्मा, पवन पाठक आदि अन्य युवकों का पूजा संपन्न कराने में भरपूर सहयोग रहता है इन जगहों पर भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है और मध्यरात्रि को पूजा अर्चना संपन्न कराकर खिचड़ी प्रसाद का वितरण किया जाता है.
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