ठाकुरगंज
किशनगंज के उत्पाद विभाग के अधिकारी प्राइवेट वाहनों से सवारी कर रहे हैं और तो और बिहार उत्पाद विभाग के अधिकारी बंगाल नंबर के वाहनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि उत्पाद विभाग के अधिकारी इसे गलत नहीं मानते हैं. जिला उत्पाद अधीक्षक की माने तो ऐसा कोई नियम नहीं है की हम जिस राज्य में कार्य कर रहे हैं उसी राज्य के रजिस्ट्रेशन वाली गाडियों का इस्तेमाल करे. जिला उत्पाद अधीक्षक का यह बयान कई सवाल खड़े करता है. दरअसल शहर व ग्रामीण क्षेत्र में सड़कों पर बिना परमिट के दौड़ने वाले वाहनों पर पुलिस प्रशासन व परिवहन विभाग के अफसर द्वारा कार्रवाई की जा रही है. लेकिन प्राइवेट पंजीयन के साथ वाहनों पर घूम रहे अफसर प्रतिदिन जिला से लेकर प्रखंड मुख्यालय की सड़कों पर दौड़ते नजर आ रहे हैं. इन दिनों जिला स्तर पर दर्जनों विभाग में अनुबंध पर लगे वाहन में अधिकांश वाहन का प्राइवेट पंजीयन है, लेकिन किसी पर कार्रवाई नहीं की जा रही है. जिला परिवहन विभाग द्वारा समय समय पर सड़क सुरक्षा के तहत यातायात नियमों के बारे में विस्तृत जानकारी देकर नियमों का पालन करने की अपील की जाती है . जगह-जगह नुक्कड़ नाटक के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाता है . बावजूद अधिकारी खुद यातायात के नियमों को ताक पर रखकर प्राइवेट पंजीयन के वाहनों पर सफर कर रहे हैं. दरअसल प्राइवेट वाहन को किराए पर चलाने के लिए उसका परमिट लेना जरूरी होता है.अधिकारियों के उपयोग के लिए ठेके पर मिल रही है गाड़ी
जिले में सरकारी एवं अर्द्ध सरकारी कार्यालय के विभिन्न विभागों में कार्यरत अधिकारी को ठेके पर गाड़ियां उपलब्ध हो रही है जो प्राइवेट पंजीयन के रहते हैं. जिससे विभाग की ओर से इस तरह की गाड़ियों को किराए पर लेकर चलाने का कोई निर्देश नहीं है. इसके बावजूद भी अधिकारी मनमाने तरीके से निजी पंजीयन के वाहन का प्रयोग कर रहे हैं. जिसके कारण परिवहन विभाग को राजस्व की हानि भी हो रही है. लेकिन अधिकारियों की उपेक्षा के चलते इन गाड़ियों के संचालकों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. ठेके पर उपलब्ध कराने वाले गाड़ी के संचालक भी बेफिक्र होकर घूम रहे हैं क्योंकि उनके वाहनों पर अफसर सवारी कर रहे हैं. जिसके कारण उनकी गाड़ी पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं होगी.यह है नियम
वाहन कमर्शियल या निजी उपयोग के लिए खरीदा जा रहा है, यह तय करने के बाद रजिस्ट्रेशन कराना होता है. वाहन के निजी उपयोग के लिए प्राइवेट रजिस्ट्रेशन कराना होता है. इसके लिए वन टाइम टैक्स जमा होता है. वाहन चाहे छोटा ही क्यों न हो, यदि उसका व्यावसायिक उपयोग हो रहा है, तो परिवहन विभाग से कमर्शियल रजिस्ट्रेशन होता है. इसके लिए हर तिमाही में टैक्स जमा करना होता है. यह गाड़ी की वैल्यू और सीटों की संख्या पर निर्भर करता है.ये है प्रावधान
मोटर व्हीकल एक्ट- 1986 के अनुसार प्राइवेट रजिस्ट्रेशन वाले वाहन के कमर्शियल उपयोग पर प्रतिबंध है. ऐसा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के साथ आर्थिकदंड भी लगाया जा सकता है. एमवीआइ एक्ट- 1986 की धारा 192 के अनुसार पहली बार गलती पाए जाने पर 5000 रुपये जुर्माना व तीन माह का कारावास तथा दूसरी बार गलती पाए जाने पर 10 हजार रुपए का जुर्माना और एक साल तक की सजा हो सकती है. वाहन को भी जब्त करने का प्रावधान है.क्या कहते है अधिकारी
उत्पाद अधीक्षक देवेन्द्र कुमार ने कहा मेरे पदस्थापना के पहले से ये गाडियां भाड़े पर ली गई है. उन्होंने बताया की ऐसी कोई जानकारी हमें नहीं है की प्राइवेट गाडी रखनी है या नहीं. वहीं जिला परिवहन पदाधिकारी अरुण कुमार ने बताया कि कोई भी विभाग ये गाड़ी किराए पर लेता है तो उसे कमर्शियल वाहन ही लेना चाहिए.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है