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डीएपी की किल्लत से रबी फसल की बुआई हो रही प्रभावित, किसान परेशान

न पैक्स और न ही बिस्कोमान और न ही खुदरा दुकानों में डीएपी मौजूद है

प्रतिनिधि, ठाकुरगंज

डीएपी खाद को लेकर किसान परेशान हैं. इलाके के किसानों को यह खाद इस समय आसानी से मुहैया नहीं हो पा रही है, इसकी वजह से रबी फसल की बुआई भी प्रभावित हो रही है. डीएपी खाद के सब्सीट्यूट इलाके में मौजूद हैं, लेकिन किसान उनकी तरफ रुख करना नहीं चाहते. यही वजह है कि डीएपी खाद की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. बताते चले अक्टूबर-नवंबर में इलाके में रबी फसलों की बुआई होती है, जिसमें सब्जियों के साथ मक्का और गेंहूं की खेती होती है. इस समय डीएपी यानी डाई अमोनियम फॉस्फेट की जरूरत होती है. लेकिन खाद की आपूर्ति नहीं हो पा रही है. बताते चले आलू की बुआई चल रही है. इसके बाद गेहूं और मक्के की बुआई भी शुरू होने वाली है. फसलों की बुआई के दौरान डीएपी, एनपीके की अधिक खपत होती है. इस कारण प्रतिवर्ष इस दौरान खाद की कमी होती है. इसके बावजूद प्रशासन समय रहते डीएपी और एनपीके खाद की व्यवस्था नहीं करता है. जिसका परिणाम अब सामने आ रहा है. किसानों का आरोप है कि न पैक्स और न ही बिस्कोमान और न ही खुदरा दुकानों में डीएपी मौजूद है.इस कारण फसलों की बुआई में दिक्कत आ रही है. एक महीने से जिलेभर में डीएपी की किल्लत है. लेकिन संबंधित अधिकारी इस मामले में उदासीन बने हुए है.

डीएपी के सब्सीट्यूट मौजूद, लेकिन किसानों की नहीं है रुचि

इलाके में डीएपी खाद के सब्सीट्यूट के रूप में सुपर खाद के साथ यूरिया का मिश्रण भी इसकी पूर्ति कर सकता है, लेकिन किसान इसमें रुचि नहीं रखता. विकल्प के रूप में एनपीके भी मौजूद है, लेकिन किसान इसकी तरफ भी रुख नहीं करता. यही वजह है कि उसकी मांग लगातार बनी रहती है. इन दोनों खादों की तुलना में डीएपी 50 से 55 रुपए तक महंगी पड़ती है, लेकिन किसान फिर भी उन्हें खरीदने के लिए दिलचस्पी नहीं दिखता. यही वजह है कि इसकी डिमांड लगातार न केवल लगातार बढ़ती है बल्कि डीएपी की कमी देश और प्रदेश में महसूस की जाती है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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