अप्रैल माह में ही नदियों की धारा सिमटी,लोगों की बढ़ी चिंता

अप्रैल माह में ही नदियों की धारा सिमटी,लोगों की बढ़ी चिंता

By Prabhat Khabar News Desk | April 28, 2024 11:27 PM

पौआखाली. जल ही जीवन है, जल के बिना जीवन की कल्पना बिलकुल भी संभव नहीं है. वैसे भी मानव सभ्यता के इतिहास में नदियों की अहम भूमिका रही है. लाखों लोग बुनियादी जरूरतें के लिए आज भी नदियों पर ही निर्भर हैं. किंतु वर्तमान समय में मानव जीवन जल ह्रास के संकट से जूझ रहा है जो चिंता का एक बड़ा कारण है. दरअसल, जून- जुलाई की गर्मी से पूर्व ही अप्रैल महीने की ताप से ही नदी, नहर और जलाशयों का जल गायब हो चुका है. नदी नहर और जलाशयों के सूख जाने से खेती किसानी पर संकट के बादल छा गए हैं. मवेशियों को भी इस तपती जलती गर्मी में पीने लायक जल नसीब नहीं हो पा रहा. वहीं भूगर्भीय जल स्तर में आई कमी के कारण चापाकल और वाटर पंप से जल निकासी की समस्या से आमजन की परेशानी बढ़ने लगी है. वक्त आ गया है अब कि सरकार जल जागरूकता अभियान चलाकर जल संचय पर जोर दें तथा आमजन से जल की महत्ता और इनके बचाव के तरीकों पर अमल लाने हेतु ठोस उपाय और पहल करें. इलाके में महानंदा, मेची, कनकई, बूढ़ी कनकई आदि नदियों में सुखार की स्थिति है. नदियों का आकार दिन प्रतिदिन सिमटने लगा है. इस चिंता से मुक्त बालू के अवैध कारोबारियों के द्वारा सुखी नदियों से बालू उत्खनन का कारोबार चरम पर है. जबकि इलाके में सिंचाई प्रभावित है, अधिकांशतः खेतों की सिंचाई इन्ही नदियों और जलाशयों के पानी से संभव हो पाता है किंतु जल के ह्रास से खेती किसानी प्रभावित है. ग्राम पंचायतों में मनरेगा योजना से खुदवाई गईं नहरें पूरी तरह से सूख चुकी हैं. इस भीषण गर्मी में खेतों में काम करने वाले मजदूर किसानों और मवेशियों को आज बगल के नदी नहर तालाबों से दो बूंद स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है जो कि घोर चिंता का विषय है. जलाशयों में पानी के ह्रास से मछली पालन पर भी संकट छाया है. मछली पालक बरसात के इंतजार में है जो कि अभी करीब दो महीने का वक्त बाकी है. पृथ्वी पर बढ़ते जल संकट से लोगों को जितनी चिंता होनी चाहिए उतनी है नहीं. सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में लगे नल से बहने वाले जल को बिना वजह लोग आज भी बर्बाद करते हैं. लोग आवश्यकता से अधिक जल बर्बाद करते हैं जिस कारण जल के ह्रास का संकट जनजीवन को प्रभावित कर रहा है.

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