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बिहार के स्कूलों में छुट्टियों को लेकर क्यों गंभीर हैं के के पाठक? जानिए किन 6 बड़ी वजहों का किया खुलासा…

बिहार के सरकारी स्कूलों में छुट्टियों को लेकर अपर मुख्य सचिव के के पाठक बेहद गंभीर हैं. एक के बाद एक सख्त फरमान जारी किए गए हैं. वहीं अब यह बताया गया है कि आखिर स्कूलों की समस्या क्या है. उन 6 कारणों को चिन्हित किया गया है. जानिए..

बिहार में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक इन दिनों अपने नये-नये फरमानों की वजह से सुर्खियों में हैं. हाल में ही रक्षाबंधन की स्वीकृत छुट्टी को जब रद्द कर दिया गया तो शिक्षकों ने इसका जोरशोर से विरोध किया. छुट्टियों में कटौती का विरोध शिक्षक संघों के द्वारा किया गया और आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी गयी. इस बीच शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों की छुट्टियों में कटौती का आदेश वापस ले लिया. लेकिन अभी भी के के पाठक ने नरमी नहीं बरतने के संकेत दिए हैं. स्कूलों में छुट्टी को लेकर हो रही समस्या के बारे में जिक्र करने वाला एक पत्र जारी हुआ है.

220 दिन क्लास चलाने की बात

शिक्षा विभाग की ओर से जारी एक पत्र में लिखा गया कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत प्राथमिक विद्यालयों में कम से मक 200 दिन और मध्य विद्यालयों में कम से कम 220 दिन की पढ़ाई कराने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है. ऐसे में शिक्षा विभाग भी प्रतिबद्ध है कि राज्य के इन स्कूलों में कम से कम 220 दिन क्लास चले. बताया गया कि 1 जुलाई 2023 से स्कूलों का सतत मॉनिटरिंग शिक्षा विभाग के द्वारा किया जा रहा है. ये काम पहले नहीं होता था. आज लगभग 40 हजार स्कूलों का निरीक्षण रोज हो रहा है. जिससे हम कहने की स्थिति में हैं कि वास्तविक रूप से स्कूल कितने दिन खुले रहे और कितने दिन बंद रहे. इससे पहले जब ये व्यवस्था नहीं थी तो जिला शिक्षा पदाधिकारी केवल घोषित/ आकस्मिक अवकाश के आधार पर यह गणना करते थे कि कुल कितने कार्यदिवस में स्कूल में पढ़ाई हुई.

मॉनिटरिंग के बाद ये पाया गया..

पत्र के माध्यम से बताया गया कि जब से मॉनिटरिंग करवायी जा रही है तो यह पता चला है कि कई अघोषित अवकाश भी स्थानीय प्रशासन के द्वारा स्थानीय कारणों की वजह से दे दिए गए. इतना ही नहीं, कई स्कूल बिना किसी अवकाश के ही स्थानीय कारणों से बंद रहा और वहां पढ़ाई नहीं हुई. के के पाठक ने शिक्षा विभाग की मुख्य समस्या घोषित अवकाश नहीं बल्कि अघोषित अवकाश को बताया है. बताया कि ऐसे अवकाश की जानकारी मुख्यालय ही नहीं बल्कि जिला शिक्षा पदाधिकारी को भी नहीं हो पाती थी. मॉनिटरिंग व्यवस्था मजबूत की गयी तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. बेवजह स्कूलों को बंद रखने की बात सामने आयी.

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कुल 6 कारणों को चिन्हित किया गया..

  • 1) बाढ़ की वजह से स्कूल में पानी लगना

  • 2) शीतलहर की वजह से स्कूल बंद करना

  • 3) स्वतंत्रता दिवस/ गणतंत्र दिवस या अन्य विधि व्यवस्था संबंधित पुलिस बल की प्रतिनियुक्ति के कारण स्कूलों में पुलिसकर्मियों के ठहरने की वजह से.

  • 4) लू के कारण स्कूल बंद रखना

  • 5) श्रावणी मेले में स्कूलों में कांवरियों को रूकने की व्यवस्था करके महीने भर पठन-पाठन बाधित करना.

  • 6) विभिन्न प्रकार की परीक्षा की वजह से स्कूल और शिक्षक दोनों का इस्तेमाल करना.

शिक्षा विभाग का सचिवालय खुला रहा

बताते चलें कि के के पाठक ने छह सितंबर को शिक्षा विभाग का सचिवालय खुला रखने का निर्देश दिया था. सभी डीइओ और बीइओ ऑफिस भी खुले रखे गए. जबकि स्कूलों को बंद रखा गया. अवकाश को लेकर के के पाठक सख्त दिखते रहे हैं. केके पाठक ने सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों से कहा कि वो दफ्तर आएं और अपना काम करें.

शिक्षा विभाग को वापस लेना पड़ा था फरमान

हाल में ही घोषित अवकाश तालिका को शिक्षा विभाग ने तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया था. जब इसका विरोध हुआ तो इसे एकबार फिर से प्रभावी किया गया और रद्द करने वाले आदेश को वापस ले लिया गया. बता दें कि रक्षाबंधन के ठीक पहले शिक्षा विभाग ने संशोधित तालिका जारी कर दिया था जिसमें राखी समेत परंपरागत अवकाशों में कटौती कर दी गयी थी. शिक्षक संघों ने इसके खिलाफ आपत्ति दर्ज करायी थी और आंदोलन की तैयारी में जुट गए थे. शिक्षा विभाग का तर्क प्राथमिक स्कूलों में कम से कम 200 दिन व कक्षा 6 से 8 तक कम से कम 220 कार्य दिवस अनिवार्य रूप से होना था. विभाग का कहना था कि इस हिसाब से स्कूल नहीं लग रहे हैं इसलिए अवकाश में कटौती करनी पड़ रही है.

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