केके पाठक का शिक्षकों को दो टूक, मजदूर का बेटा अगर मजदूर ही बनेगा तो आप पर करोड़ों खर्च करने का क्या फायदा

शुक्रवार को केके पाठक पश्चिम चंपारण के बेतिया पहुंचे, जहां उन्होंने कई स्कूलों का औचक निरीक्षण किया और शिक्षकों को खूब हड़काया. उन्होंने कहा कि शिक्षा में सुधार तभी संभव है जब शिक्षकों का सहयोग मिलेगा. स्कूल समय से चलेगा और कक्षाएं पूरी होंगी. हम सबको अनुशासित तरीके से काम करना होगा.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 22, 2023 4:56 PM

बेतिया. बिहार में धीरे-धीरे ही सही शिक्षा की तस्वीर बदल रही है. बिहार की शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने का बीड़ा उठा चुके शिक्षा विभाग के एसीएस केके पाठक लगातार राज्यभर के सरकारी स्कूलों और शिक्षक प्रशिक्षण केंद्रों का घूम घूमकर जायजा ले रहे हैं. शुक्रवार को केके पाठक पश्चिम चंपारण के बेतिया पहुंचे, जहां उन्होंने कई स्कूलों का औचक निरीक्षण किया और शिक्षकों को खूब हड़काया.

राज्यकर्मी का दर्जा के लिए 8 घंटे ड्यूटी देना होगा

उन्होंने कहा कि शिक्षा में सुधार तभी संभव है जब शिक्षकों का सहयोग मिलेगा. स्कूल समय से चलेगा और कक्षाएं पूरी होंगी. हम सबको अनुशासित तरीके से काम करना होगा. इस दौरान शिक्षक मदन मोहन तिवारी ने स्कूल का समय 5 बजे से घटाकर 4 बजे करने का प्रस्ताव रखा. इसपर केके पाठक ने कहा कि राज्यकर्मी का दर्जा के लिए 8 घंटे ड्यूटी देना होगा. अनुशासन में कोताही बर्दाश्त नहीं होगी.

समय से काम करना होगा

दल बल के साथ बेतिया पहुंचे शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने कुमारबाग डायट का भी निरीक्षण किया. केके पाठक ने कहा कि किसी भी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी. आप शिक्षक की नौकरी कर रहे हैं तो आपको समय से स्कूल आना होगा. आप वेतन ले रहे हैं तो आपको पढ़ाना होगा. उन्होंने कहा कि शिक्षक प्रशिक्षण में शत प्रतिशत उपस्थिति होनी चाहिए. इस दौरान उन्होंने डायट में प्रशिक्षण संबंधित सुविधाओं का जायजा लिया. शिक्षकों के लिए खाना बनाने वाले कैंटीन की बदहाल स्थिति पर पाठक ने चिंता जताई.

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बिहार में अब हालात बदल रहे हैं

डायट में प्रशिक्षण ले रहे 440 प्रधानाध्यापकों को संबोधित करते हुए केके पाठक काफी सख्त दिखे. अपने संबोधन के क्रम में उन्होंने कहा कि आठवीं का छात्र ठीक से किताब नहीं पढ़ पाता है . उसका पिता मजदूर है. आप उसे क्या पढ़ा रहे हैं. आप उसे क्या बनना चाह रहे हैं. ऐसी स्थिति रहेगी कि जब मजदूर का बेटा मजदूर ही बने, तो शिक्षा पर 50 हजार करोड़ खर्च करने का क्या फायदा? शिक्षकों के सहयोग से शिक्षा व्यवस्था में सुधार हुआ है. पहले 65 फीसदी स्कूलों में 50 फीसदी से भी कम बच्चों की उपस्थिति होती थी, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं.

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