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चार दशकों से खटाई में पड़ी है, कुरसेला-बिहारीगंज रेल परियोजना, जानें कितनी बची है आश

गुजरते चार दशकों के वक्तों के बीच यह रेल परियोजना चार कदम चलकर ठहर कर रुकती रही है. जिसने परियोजना से जुड़े सुदूर के जनमानस में हताशा देने के साथ उम्मीदों के विश्वास को मजबूत बनाये रखा है.

कुरसेला. मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार तीन जिलो के सुदूर क्षेत्रो को रेल सुविधा से जोड़ने की कुरसेला-बिहारीगंज महत्वाकांक्षी रेल परियोजना खटाई में पड़ी हुई है. तकरीबन चार दशकों से इस रेल परियोजना का कार्य अधर में पड़े रहने के बाद भी जनमानस की आस केंद्र की मोदी सरकार पर टिकी है. गुजरते चार दशकों के वक्तों के बीच यह रेल परियोजना चार कदम चलकर ठहर कर रुकती रही है. जिसने परियोजना से जुड़े सुदूर के जनमानस में हताशा देने के साथ उम्मीदों के विश्वास को मजबूत बनाये रखा है.

ललित बाबू ने देखा था सपना

कोसी के पिछड़े क्षेत्रों को रेल सुविधा से जोड़ने का सपना तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र ने संजोया था. इसके लिए उन्होंने कुरसेला-बिहारीगंज रेल परियोजना का प्रारुप तैयार कर योजना को पूरा करने की सोंच रखी थी. उनके निधन के पश्चात यह रेल परियोजना विभाग के फाइलों में गुम होकर रह गयी. सालों फाइलों में गुम रहने के बाद यह रेल परियोजना तत्कालीन रेल मंत्री राम विलास पासवान के नजर में आया. परियोजना के महत्वों को देखते हुए तत्कालीन रेल मंत्री पासवान ने इस पर सुधि लेकर कागजी प्रक्रिया के कार्यो को आगे बढ़ाते हुए कुरसेला-बिहारगंज रेल परियोजना के सर्वे कार्य का शिलान्यास किया.

रामविलास पासवान ने खोला फाइल

रामविलास पासवान के रेल मंत्री से हटने के बाद एक बार फिर इस रेल परियोजना का कार्य अधर में अटक कर रह गया. योजना कार्य के शिथिल पड़े रहने से बिहारीगंज से कुरसेला के जनमानस में असंतोष पनपने लगा. परिनिति में कुरसेला-बिहारीगंज रेल बनाओ संघर्ष समिति के गठन के साथ जन आन्दोलन के रुप में धरना प्रदर्शन प्रारंभ हो गया. सरकार का ध्यान खीचने के लिये रेलमंत्री को मांग के ज्ञापन भी सौंपे गये. उसके बाद तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने परियोजना को बजट में लाकर रेल निर्माण कार्य का पुर्णिया के रुपौली में 7 सितम्बर 2009 को शिलान्यास किया. इसके लिये कुरसेला-बिहारीगंज के बीच प्रस्तावित रेल स्टेशन व समपार ढाला के स्थानों पर लोहे के बोर्ड लगाये गये.

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यादवों की हिस्सेदारी

अब तक नहीं हुआ जमीन का अधिग्रहण

जनमानस के सपने साकार रूप लेने की उम्मीद बढ़ गयी थी. रेल लाइन बिछाने और स्टेशनों के निर्माण के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया प्रारम्भ होकर कार्य आगे बढ़ती. इसी बीच केंद्र की सरकार बदलने से परियोजना का कार्य जहां का तहां ठहर कर रह गया. नये पुराने सरकार के पचरे मे इस महत्वाकांक्षी रेल परियोजना का काम पिछले कई वर्षो से रुका पड़ा है. जिसके लिये परियोजना निर्माण कार्य को पुर्ण कराने के लिये केंद्र के नरेन्द्र मोदी सरकार की ओर तीन जिलों के जनमानस उम्मीद की टकटकी लगाये बैठे हैं. जन अपेक्षा है कि मोदी सरकार इस रेल परियोजना को पूरा कर कोसी और पूर्णिया प्रमंडल के जनमानस की उम्मीद को पुरा करने का कार्य करेगी.

क्या है प्रस्तावित रेल परियोजना का स्वरूप

कुरसेला से बिहारीगंज प्रस्तावित रेल परियोजना की लंबाई 57.35 किमी है. रेल स्टेशनों की संख्या 9 व छोटे बड़े पुल पुलियों की संख्या 74 और समपार फाटकों की संख्या 48 थी. उस समय परियोजना को पूरा करने के लिये अनुमानित लागत खर्च 192.56 करोड़ था. बिहारीगंज-कुरसेला का यह प्रस्तावित रेल परियोजना को वाया रुपौली, धमदाहा होकर गुजरना था. जिससे कटिहार, पूर्णिया, मधेपुरा के सुदूर क्षेत्र के लोगों को रेल सवारी का सुविधा प्राप्त होती.

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