लखीसराय : जिला मुख्यालय में अवस्थित 100 शैय्या वाला सदर अस्पताल प्राणघातक मामलों में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने में असमर्थ है. यहां ब्लड बैंक, सर्जन चिकित्सक की कमी के कारण घटना दुर्घटना में जख्मी मरीजों को सीधे पटना रेफर कर दिया जाता है. एंबुलेंस को लेकर भी मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ती है.
जिसके कारण चिकित्सकों व अस्पताल कर्मियों को परिजनों का कोपभाजन बनना पड़ता है. सदर अस्पताल का इमरजेंसी वार्ड जनरल वार्ड में तब्दील है. हाल में ही डीएम अमित कुमार द्वारा अस्पताल में व्यवस्था का जायजा लेकर सुविधा विस्तार को लेकर दिये निर्देशों का अनुपालन भी नगण्य है. यह अस्पताल पोस्टमार्टम, मृत्यु प्रमाण पत्र, इंज्यूरी रिपोर्ट प्राप्त करने का साधन मात्र है. लखीसराय सदर अस्पताल में डॉक्टर, ड्रेसर की कमी को लेकर जेनरल स्वास्थ्य सेवा भी नहीं मिल पाता है. चिकित्सकों की उपलब्धता की स्थिति यह है कि सृजित 35 पदों के विरुद्ध सदर अस्पताल उपाधीक्षक सहित मात्र 16 डॉक्टर पदस्थापित हैं.
ए ग्रेड नर्स की स्थिति है कि जिले भर में स्वीकृत 73 पदों के विरुद्ध 55 कार्यरत हैं. जिसमें 38 सदर अस्पताल में, 12 एसएनसीयू में एवं 4 रेफरल अस्पताल बड़हिया में कार्यरत हैं. तीन शिफ्ट में लगाये जाने पर कुल 12 नर्स के भरोसे 100 शैय्या का अस्पताल है. जबकि इन्ही नर्सो को बंध्याकरण, इमरजेंसी, ओपीडी के अलावे अन्य कार्यो में भी लगाया जाता है. एक मात्र संकीर्ण कमरे में सदर अस्पताल का ओपीडी चलता है. जिसमें सभी तरह के मरीज देखे जाते हैं. फलत: मरीजों की लंबी कतारें लग जाती है. महिला चिकित्सक के अभाव मे पुरुष डॉक्टर ही महिलाओं की बीमारी संबंधी सलाह, दवा लिखने का कार्य करते हैं. सदर अस्प्ताल गर्भवती महिलाओं के लिये जांच सुविधा में अवश्य सहायक सिद्ध हो रही है. अधिकांश महिला चिकित्सकों से एक्सरे, अल्ट्रासाउंड एवं मुफ्त की दवा लिखने की मांग करते रहते हैं. सोमवार का नजारा यह है कि एक गर्भवती महिला तीसरी बार टेटभेक की सूई लिखने का दबाव डॉ विभूषण पर बना रहे थे. मामला डीएस के समझाने पर शांत हुआ. इस संबंध में सदर अस्प्ताल के उपाधीक्षक डॉ मुकेश कुमार ने बताया कि संसाधनों की कमी को लेकर विभाग को पत्र लिखा जाता रहा है. अब तो एंबुलेंस की सुविधा भी अस्पताल प्रबंधन से छीन कर एनजीओ के हवाले कर दिया गया है. ब्लड बैंक वर्षों से बंद पड़ा है. ऐसे में आम लोगों द्वारा अस्पताल में तोड़फोड़, डॉक्टरों से दुर्व्यवहार आम बात हो गयी है. सुरक्षा के नाम पर निजी अंगरक्षक समय पर पीछे हट जाते हैं. एसपी से सुरक्षा की गुहार लगायी गयी थी, लेकिन संसाधन के अभाव में यह मामला भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. डीएम द्वारा ब्लड बैंक संचालन 30 अक्तूबर से करने के निर्देश पर कहा कि कोलकाता के टीम द्वारा सर्वे कर लाइसेंस निर्गत किये जाने पर निर्भर करता है.