धार्मिक-ऐतिहासिक धरोहर की राजधानी है लखीसराय

लखीसराय: कई धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व के अवशेषों को अपने गर्भ में समेटे लखीसराय जिले के कुछ रममीक स्थल सैलानियों को अपनी ओर आकृष्ट करते रहे हैं. 03 जुलाई 1994 को अविभाजित मुंगेर जिले के पुनर्गठन के बाद लखीसराय जिला अस्तित्व में आया. यह जिला ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व का अद्भुत संगम है. हर प्रखंड […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 12, 2015 9:44 AM
लखीसराय: कई धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व के अवशेषों को अपने गर्भ में समेटे लखीसराय जिले के कुछ रममीक स्थल सैलानियों को अपनी ओर आकृष्ट करते रहे हैं. 03 जुलाई 1994 को अविभाजित मुंगेर जिले के पुनर्गठन के बाद लखीसराय जिला अस्तित्व में आया. यह जिला ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व का अद्भुत संगम है.
हर प्रखंड में धरोहर
सदर प्रखंड का रजाैनाचौकी, बालगुदर, हसनपुर, जयनगर, सूर्यगढ़ा प्रखंड का मौलानगर व उरैन, बड़हिया का सदायबीघा, हलसी का सिलवे, रामगढ़ चौक प्रखंड का नोनगढ़ आदि ऐतिहासिक अवशेषों का केंद्र रहा है. बड़हिया में मां बाला त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ व सदर प्रखंड के रजाैनाचौकी में अशोक धाम पालकालीन इंद्रदेमनेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है. सूर्यगढ़ा प्रखंड के बुधौली बुनकर पंचायत अंतर्गत पर्वत की गोद में बसा रामायण कालीन महत्व वाला श्रृंगिऋषि धाम, सूर्यगढ़ा के कटेहर में प्रसिद्ध गौरीशंकर धाम, पीरीबाजार के कसबा पंचायत स्थित भगवती स्थान, चानन प्रखंड में सिद्धि देवी मां जलप्पा मंदिर, पोखरामा में पंचायतन सूर्य मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है.
किया था पुत्रेष्टि यज्ञ
मान्यताओं के मुताबिक अयोध्या के चक्रवर्ती राजा दशरथ ने श्रृंगि ऋषि की देखरेख में पुत्रेष्टि यज्ञ किया था. इसके फलाफल में भगवान राम सहित चार भाई धरती पर अवतरित हुए. जिले के पूर्वी भाग स्थित जलप्पा स्थान में आज भी महिलाएं आंचल फाड़ कर देवी पर चढ़ाती है और आंचल को वृक्ष में बांधती हैं. मान्यता है कि इससे मनोकामना पूर्ण होती है. बड़हिया जगदंबा स्थान श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है. रामगढ़ चौक प्रखंड के चतुभरुज स्थान में कई पौराणिक मूर्तियां प्राप्त हुई है.
साहित्य सृजन की धरती
धार्मिक ऐतिहासिक महत्व के साथ जिले का सांस्कृतिक महत्व भी रहा है. यहां राहुल सांस्कृत्यान, डॉ राजेंद्र प्रसाद, आचार्य नरेंद्र देव, पंडित जगन्नाथ चतुर्वेदी, आचार्य विनोबा भावे, डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी, बाबा नागाजरुन, रामधारी सिंह, दिनकर आदि का प्रभाव क्षेत्र रहा है.
पालशासकों की राजधानी थी सूर्यगढ़ा
ऐतिहासिक रूप से लखीसराय पाल शासकों की राजधानी रही है. आज भी नगर परिषद के काली पहाड़ी क्षेत्र में पाल वंश की गुफाएं एवं भगAावशेष हैं. कहा जाता है यहां राजा इंद्रदमन का महल हुआ करता था. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्र वृतांत में इस क्षेत्र में 10 बौद्ध मठ और 400 से अधिक बौद्ध रहने का उल्लेख किया है. रजाैना गांव पाल वंश के अंतिम राजा इंद्र दमन की राजधानी हुआ करती थी. इसी रजाैना चौकी में 7 अप्रैल 1977 को साढ़े सात फीट अर्ध व्यास वाले काले पत्थर का शिवलिंग टीले की खुदाई के बाद प्रकट हुआ. वर्तमान में यह अशोक धाम का भव्य मंदिर विराजमान है.
सूर्योपासना का केंद्र रहा है सूर्यगढ़ा
जिले का सूर्यगढ़ा क्षेत्र का भी काफी ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व रहा है. सूर्यगढ़ा प्राचीन काल में सूर्योपासना का केंद्र रहा है. यह गंगा के दाहिने भाग में अवस्थित था और प्रसिद्ध शिव तीर्थ था. प्राचीन काल में यहां सूरजमल नामक राजा का राज्य हुआ करता था. पहाड़ी क्षेत्र स्थित श्रृंगिऋषि धाम में श्रृंगिऋषि का आश्रम था. ऋषि प्रतिदिन पौ फटने के पूर्व ही पैदल चल कर कटेहर गौरीशंकर धाम स्थित मोक्षदायिनी गंगा में स्नान कर पूजा-अर्चना के बाद आश्रम लौटते थे. नंदपुर गांव स्थित बूढ़ा नाथ मंदिर आज भी शिव भक्तों की आस्था का केंद्र बना है.

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