नेत्र व पुत्र प्रदाता देवी के रूप में होती है मां नेतुला की पूजा-अर्चना
नेत्र व पुत्र प्रदाता देवी के रूप में होती है मां नेतुला की पूजा-अर्चना फोटो : 3(आस्था की प्रतीक प्रसिद्ध मां नेतुला मंदिर) प्रतिनिधि, सिकंदरा प्रखंड के कुमार गांव स्थित मां नेतुला मंदिर प्राचीन काल से ही हिंदू धर्मावलंबियों के लिए आस्था का केंद्र रही है. नेत्र व पुत्र प्रदाता देवी के रूप में विख्यात […]
नेत्र व पुत्र प्रदाता देवी के रूप में होती है मां नेतुला की पूजा-अर्चना फोटो : 3(आस्था की प्रतीक प्रसिद्ध मां नेतुला मंदिर) प्रतिनिधि, सिकंदरा प्रखंड के कुमार गांव स्थित मां नेतुला मंदिर प्राचीन काल से ही हिंदू धर्मावलंबियों के लिए आस्था का केंद्र रही है. नेत्र व पुत्र प्रदाता देवी के रूप में विख्यात मां की ख्याति दूर-दूर तक है. जैन धर्म की पुस्तक कल्पसूत्र के अनुसर जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर भगवान महावीर ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए घर का त्याग किया था तो कुंडलपुर से निकल कर उन्होंने पहला यात्रि विश्राम कुमार गांव में ही मां नेतुला मंदिर के समीप एक वट वृक्ष के नीचे किये थे. लगभग 2600 वर्ष पूर्व घटित इस घटना और कल्प सूत्र में वर्णित मां नेतुला की पूजा व बली प्रथा का वर्णन इस मंदिर के पौराणिक काल के होने की पुष्टि करती है. इस प्रकार हजारों वर्षों की गौरव गाथा को अपने में समेटे मां नेतुला आज भी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी कर रही है. आस्था की प्रतीक इस मंदिर में सालोभर प्रत्येक मंगलवार को श्रद्धालु यहां आकर पूजा अर्चना कर मन्नते मांगते हैं. लेकिन नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के दरबार में कष्टी देने आते है जो कि नवरात्रा के दौरान नौ दिनों तक पूर्णरूपेन फलाहार पर रह कर माता के दरबार की साफ-सफाई व पूजा अर्चना करती है. ऐसी मान्यता है कि मां नेतुला के दरबार में कष्टी देने से नेत्र व पुत्र से संबंधित समस्या दूर हो जाती है. इस कारण सालों भर माता के दरबार में महिला व पुरुष श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है. क्षेत्र के सिद्धपीठ के रूप में विख्यात मां नेतुला मंदिर में सती के पीठ की पूजा होती है. वहीं नवरात्रि के दौरान मां नेतुला की पूजा का विशेष महत्व होता है. धार्मिक पत्रिका कल्याण के वर्ष 1954 के तीर्थांकर विशेषांक में नेतुला मंदिर में मां दुर्गा के तृतीय स्वरूप चंद्रघंटा के विराजने व इनकी पूजा का वर्णन किया गया था. पूर्व में माता का मंदिर काफी जीर्ण शीर्ण अवस्था में था. जिसका गिद्धौर के चंदेल वंश के राजा रावणेश्वर सिंह ने जीर्णोंद्धार किया था. वहीं सन 2000 में काशी पीठ के शंकराचार्य विश्चलानंद सरस्वती ने नये मंदिर की आधारशिला रखी थी. जिस पर आज भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है. शारदीय नवरात्रा के दौरान महाअष्टमी की रात्रि में माता के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और माता के मंदिर के सामने हजारों की संख्या में पशुबली दी जाती है. लेकिन बिडंबना यह है कि क्षेत्र के लोग आस्था केंद्र यह मंदिर आज भी प्रशासनिक उदासीनता का शिकार है. नवरात्रि के दौरान प्रत्येक दिन हजारों लोगों की भीड़ उमड़ने के बावजूद भी प्रशासन की ओर से श्रद्धालुओं के लिए कोई व्यवस्था नहीं की जाती है.