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आदिवासियों के बीच शराबबंदी बन सकती है चुनौती
कजरा : एक अप्रैल से देसी शराब की पूर्ण अनापूर्ति व विदेशी शराब का नगर नगर निगम में आपूर्ति का असर दिखने लगा है. वहीं दूसरी तरफ नक्सल बाहुल्य पहाड़ी क्षेत्रों के निवासी महुआ शराब का सेवन करनेवाले आदिवासियों के बीच शराब पर पूर्णत: रोक लगाना सरकार के लिये चुनौती बन सकती है. जानकारी के […]
कजरा : एक अप्रैल से देसी शराब की पूर्ण अनापूर्ति व विदेशी शराब का नगर नगर निगम में आपूर्ति का असर दिखने लगा है. वहीं दूसरी तरफ नक्सल बाहुल्य पहाड़ी क्षेत्रों के निवासी महुआ शराब का सेवन करनेवाले आदिवासियों के बीच शराब पर पूर्णत: रोक लगाना सरकार के लिये चुनौती बन सकती है.
जानकारी के अनुसार आदिवासियों के पूर्व-त्योहार, करमा, साोहराय आदि में पूर्वजों की मान्यता के अनुसार ये अपने देवी-देवताओं व पित्तरों पर शराब प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं. जिसे मर्द व औरत श्रद्धा व पवित्रता के साथ ग्रहण करते हैं.
हालांकि नक्सल बाहुल्य कजरा थाना के थानाध्यक्ष रंजीत कुमार व पीरीबाजार थानाध्यक्ष विनोद राम के द्वाराअपने-अपने थाना क्षेत्र के आदिवासी गांवों में जाकर लोगों से मिल कर अवैध महुआ शराब के निर्माण नहीं करने व शराब के इस्तेमाल से सेहत व संपत्ति का नुकसान होने से बचाने का सलाह देकर जागरूकता फैलाने व नहीं मानने पर कार्रवाई करने की बात कही जा रही है.
जिसका माकूल असर भी देखा जा रहा है, परंतु यह कितना स्थायी रहेगा. यह यक्ष प्रश्न है, क्योंकि आदिवासियों की रोजी-रोटी के साधन में एक महुआ शराब का निर्माण व बिक्री भी है. क्या शराबबंदी भी दहेज व पॉलीथिन प्रयोग पर रोक के तरह जमीनी हकीकत नहीं बन पायेगी. जब तक आदिवासियों की रोजी-रोटी की वैकल्पिक व्यवस्था सरकार की ओर से नहीं की जाती है, तबतक शराब पर पूर्णत: पाबंदी चुनौती होगी.
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