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देसी चावल व गेहूं हो गये विलुप्त, लोगों की थाली में पहुंच रहीं हाइब्रिड सब्जियां

भाग-दौड़ भरी इस दुनिया में अनाज ने भी अपना रंग बदल दिया है. अनाज में देसी स्वाद खत्म हो चुका है.

लखीसराय. भाग-दौड़ भरी इस दुनिया में अनाज ने भी अपना रंग बदल दिया है. अनाज में देसी स्वाद खत्म हो चुका है. लोग अब अनाज एवं सब्जियों में देसी स्वाद के लिए तरसते हैं. पहले के चावल में मंसूरिया, लाल व उजला शीतबा के साथ-साथ बासमती की महक अब लोगों को नसीब नहीं है. यह सभी देसी चावल खेतों से अचानक इस तरह विलुप्त हुए कि दूर-दूर तक अब लोगों को कहीं दिखायी नहीं दे रहे हैं. इसका मुख्य कारण महंगाई एवं किसानों की जरूरतों पर ध्यान नहीं देना है. किसान अब इन देसी अनाज के बदले डंकल फसल की उपज करने में जुटे हैं. सेवानिवृत्त कृषि पदाधिकारी बिंदेश्वरी सिंह समेत अन्य बुजुर्ग किसानों ने बताया कि पहले के चावल में देसी स्वाद मिलता था, लोग बिना-दाल एवं सब्जी के ही चटनी-चोखा के साथ भरपेट खाना खाते थे, लेकिन अभी का चावल स्वास्थ्य का हानिकारक भी है. इसके साथ ही केमिकल से फूले गले हुए चावल को बोरी में बंद कर उस पर पॉलिस चढ़ाकर बेचा जा रहा है. चावल तैयार होने के बाद दिखने में अच्छा लगता है, लेकिन खाने में कोई स्वाद नहीं रहता है. इसका मुख्य कारण यह है कि पहले के किसानों के मुकाबले अब के किसान की जरूरतें अधिक हैं. उनकी आमदनी से ज्यादा खर्चा बढ़ गया है. यही कारण है कि लोग अपने खेतों में हाइब्रिड फसल की उपज कर उसे थोक भाव में बेचते हैं.

हाइब्रिड बीज से उगायी जा रहीं सब्जियां

धान के साथ-साथ सब्जियों की खेती में भी बदलाव आया है. सब्जी की खेती भी अब हाइब्रिड में होने लगी है. एक-दो सब्जियों छोड़कर में बाजार में हाइब्रिड सब्जियां ही बिक रही हैं. इससे सब्जियों में भी कोई स्वाद नहीं रह गया है. सदर प्रखंड के साबिकपुर, रेहुआ, दामोदरपुर, बड़हिया के पहाड़पुर, जैतपुर के अलावा जिले के अन्य जगहों पर टमाटर की खेती इस तरह होती है कि एक टमाटर के पौधे से कई किलो टमाटर निकलता है. बाजार में जब टमाटर का भाव कम हो जाता है, तो किसान खेत में ही टमाटर छोड़ देते हैं. टमाटर के अलावा हरी मिर्च भी अब हाइब्रिड आने लगी है. इसके अलावा कद्दू, फूलगोभी जैसी सब्जियां बाजार में हाइब्रिड वाली ही उपलब्ध हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी देसी बीज से कद्दू एवं सिजमन उगाते हैं, जो की ठंड के मौसम में ही मिल पाती है. इसके अलावा दियारा क्षेत्र के वैशाख के महीने में देसी कद्दू लोगों को मिल पाता है, जिसका स्वाद बेहतर होता है. लोग डंकल की फसल खा-खा कर बीमार भी पड़ रहे हैं.

जिले में जैविक खेती भी नहीं है सफल

जिले में जैविक खेती भी सफल नहीं हो रही है. जैविक खेती से फसल उगाने को लेकर किसानों की अलग-अलग टीमें भी बनायी गयी हैं. अभी तक 900 एकड़ में किसानों को जैविक खेती का प्रमाण पत्र मिल चुका है. जैविक विधि से उपजाई गयी फसल का स्वाद गैर जैविक विधि वाले अनाज के जैसा ही लग रहा है. जैविक विधि से खेती को लेकर सरकार द्वारा प्रत्येक साल लाखों रुपये खर्च भी किया जा रहा है, लेकिन अभी तक लोगों को जैविक विधि की फसल का स्वाद पता चल नहीं पाया है.

बोले अधिकारी

किसान अपने मन मुताबिक तरह-तरह की फसल की खेती कर रहे हैं. खेती से उन्हें अधिक से अधिक लाभ पहुंचे, इसके लिए नयी तकनीक एवं हाइब्रिड फसल का उपजा रहे हैं. जैविक विधि की खेती का बाजार प्रबंधन सही करने पर लोगों को देसी फसल के जैसा स्वाद जैविक विधि से उगायी गयी फसल से प्राप्त हो सकता है.

-रीमा कुमारी, पौधा संरक्षण सहायक निदेशक

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