मनुष्य अपने कर्मों से मौत को लाता है नजदीक: देवी श्री दीदी
मनुष्य अपने कर्मों से मौत को लाता है नजदीक: देवी श्री दीदी
बड़हिया. प्रखंड के पाली पंचायत के पाली गांव में बुधवार से आयोजित नौ दिवसीय श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में वृंदावन से पहुंची देवी श्री दीदी के द्वारा भागवत कथा सप्ताह ज्ञान तीसरे दिन भागवत ग्रंथ में वर्णित कई प्रसंगों का विश्लेषण किया. उन्होंने राजा परीक्षित की जन्म से लेकर मृत्यु तक की कथा सुनायी और कहा कि मनुष्य अपने कर्मों से मौत को नजदीक ले आते हैं. उन्होंने बताया कि राजा परीक्षित ने रास्ते में मिले मृत सर्प को एक ध्यानमग्न संत के गले में नहीं डाला होता, तो उन्हें सात दिनों के अंदर सर्प के डसने से मृत्यु का श्राप नहीं मिलता. दीदी ने कथा को विस्तार करते हुए कहा कि एक बार राजा परीक्षित शिकार के लिए वन में गये. वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने के कारण वे प्यास से व्याकुल हो गये व जलाशय की खोज में इधर-उधर घूमते-घूमते वे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंच गये. वहां पर शमीक ऋषि नेत्र बंद किये हुए व शांत भाव से एकासन पर बैठे हुए ब्रह्मध्यान में लीन थे. राजा परीक्षित ने उनसे जल मांगा किंतु ध्यान मग्न होने के कारण शमीक ऋषि ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया. सिर पर स्वर्ण मुकुट पर निवास करते हुए कलियुग के प्रभाव से राजा परीक्षित को प्रतीत हुआ कि यह ऋषि ध्यानस्थ होने का ढोंग कर उसका अपमान कर रहा है. उन्हें ऋषि पर बहुत क्रोध आया. उन्होंने अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से पास ही पड़े हुये एक मृत सर्प को अपने धनुष की नोक से उठा कर ऋषि के गले में डाल दिया और अपने नगर वापिस लौट आये. शमीक ऋषि तो ध्यान में लीन थे उन्हें ज्ञात ही नहीं हो पाया कि उनके साथ राजा ने क्या किया है, कितु उनके पुत्र ऋंगी ऋषि को जब इस बात का पता चला तो उन्हें राजा परीक्षित पर बहुत क्रोध आया. ऋंगी ऋषि ने सोचा कि यदि यह राजा जीवित रहेगा तो इसी प्रकार ब्राह्मणों का अपमान करता रहेगा. इस प्रकार विचार करके उस ऋषि कुमार ने कमंडल से अपनी अंजुल में जल लेकर तथा उसे मंत्रों से अभिमंत्रित करके राजा परीक्षित को यह श्राप दे दिया कि जा तुझे आज से सातवें दिन तक्षक सर्प डसेगा. देवी श्री दीदी ने कथा सुनाकर श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया.
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