बड़हिया. मां बाला त्रिपुर सुंदरी जगदंबा मंदिर के भक्त श्रीधर सेवाश्रम में रविवार को प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के तत्वावधान दो दिवसीय श्रीमद् भगवत् गीता महाभारत रामायण पर आधारित ज्ञानयज्ञ आयोजित किया गया. ज्ञानयज्ञ का शुभारंभ शुभारंभ अतिथि के रूप में रहे प्रो डॉ सत्येंद्र अरुण, शिक्षक मिथिलेश कुमार आदि ने दीप प्रज्वलित कर किया गया. ज्ञानयज्ञ में आये राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी नीलम दीदी ने कथा के पहले दिन धुंधकारी व गोकर्ण एवं राजा परीक्षित की कथा सुनायी. उन्होंने कहा कि कलयुग में भागवत भगवान की महिमा व संकीर्तन के महत्व का उल्लेख किया. धुंधकारी के गलत कार्यों में संलिप्त होने के कारण उसकी हत्या हो गयी और अकाल मृत्यु होने के कारण वह प्रेत योनि में चला गया. भाई गोकर्ण ने प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए सूर्य भगवान के बताये सूत्र पर श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया और भाई धुंधकारी को कथा सुनायी. जिसके श्रवण से धुंधकारी को प्रेत योनि से मुक्ति मिली. धुंधकारी व गोकर्ण की कथा का रसपान कराते हुए कहा कि तुंगभंगा नदी के किनारे के एक गांव था वहां पर आत्म देव नाम का एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी धुंधली रहती थी आत्म देव तो सज्जन था लेकिन उसकी पत्नी दुष्ट प्रवृत्ति की थी. आत्म देव बहुत उदास रहता था क्योंकि उसको कोई संतान नहीं हो रहा था और बहुत बार उसने आत्महत्या करने की भी कोशिश किया लेकिन सफल नहीं हो पाया, लेकिन एक दिन हताश होकर जंगल की तरफ आत्महत्या करने निकल गये आत्म देव, रास्ते में उन्हें में एक ऋषि जी मिले और फिर आत्म देव ऋषि को अपनी कहानी सुना कर रोने लगा और उपाय पूछने लगा ऋषि ने कहा मेरे पास अभी तो ऐसा कुछ नहीं की जिससे मैं तुम्हें कुछ दे पाऊं, लेकिन आत्म देव ने बताया कि उसकी पत्नी को कोई बच्चा नहीं हो रहा है और जब आत्म देव ऋषि को बार बार बोलने लगा तो ऋषि ने उसे एक फल दिया और उसको अपनी पत्नी को खिलाने को कहा और कहा की एक साल तक तुम्हारी पत्नी को सात्विक जीवन जीना पड़ेगा. आत्मदेव वह फल लेकर खुशी खुशी घर वापस आकर सारी बात धुंधली को बताता है और उसको वो फल खाने को देता है, लेकिन धुंधली सोचती है अगर बच्चा हुआ तो उसको बहुत कष्ट का सामना करना पड़ेगा यही सोच कर वह उस फल को नहीं खायी और जाकर सारी बात अपनी छोटी बहन को बताई तो उसकी बहन ने उसे एक रास्ता बताया और कहा की वह गर्भवती है और मुझे बालक होने वाला है. तू ही ले और उस फल को गाय को खिला दे. इससे उस ऋषि की शक्ति का भी पता चल जायेगा. धुंधली ने ऐसा ही किया और अपने पति आत्मदेव के सामने गर्भावस्था का नाटक करने लगी और कुछ दिन बाद जाकर अपनी बहन से बच्चा लेकर आ गयी. आत्मदेव बहुत खुश हुआ खुशियां मनायी और उस बच्चे का नाम ब्रह्मदेव रखना चाहा, लेकिन धुंधली ने फिर झगड़ कर उसका नाम धुंधकारी रखा और धुंधली ने जो फल गाय को खिलाये थे उसके भी गर्भ से मनुष्य का बालक हुआ. जिसके कान लंबे लंबे थे. इसलिए उसका नाम आत्म देव ने गोकर्ण रखा. दोनों बड़े हो गये जिसमें धुंधकारी दुष्ट व चांडाल प्रवृत्ति का था तो गोकर्ण सरल स्वभाव का था. धुंधकारी सारे गलत काम करता एक दिन तो उसने अपने पिता आत्म देव की ही पिटाई कर दी. आत्मदेव बहुत दुखी हुआ और अपने दुखी पिता को देख गोकर्ण उनके पास आया और उनको वैराग्य जीवन जीने के लिए कहा और कहा कि संसार में हम बस भागवत दृष्टि रखकर ही सुखी हो सकते है. गोकर्ण की बात मानकर आत्मदेव गंगा के किनारे आकर भागवत के दशम स्कंध का पाठ करने लगे थे और उसी जीवन में उन्हें भगवान श्री कृष्ण की प्राप्ति हो गयी थी. समय बीतता गया और एक दिन धुंधली भी धुंधकारी के अत्याचारों को देख दुखी होकर एक कुएं में कूद कर आत्महत्या कर ली. अब धुंधकारी एकदम ही अत्याचारी और दुष्कर्म वाला इंसान बन गया था. वह वैश्यों के मांगों के लिए चोरी करता और एक दिन तो उसने राजा के यहां ही डाका दाल दिया. सभी वेश्याएं सोची अगर ये जिंदा रहा तो एक दिन हमको भी मरवा देगा. यह सोच कर उन लोगों ने धुंधकारी को बांध कर उसको जलती हुई आग में उसका मुख डालकर तड़पा कर मार डाला. बुरे प्रवृति के होने की वजह से धुंधकारी प्रेत बन गया और वह अपने भाई गोकर्ण को डराने लगा. हालांकि गोकर्ण ने अपने भाई का श्राद्ध गया जाकर किया था, लेकिन धुंधकारी को फिर भी मुक्ति नहीं मिली. वह गोकर्ण को डराने के कोशिश करता, लेकिन गोकर्ण गायत्री मंत्र का जाप करता तो धुंधकारी उसके पास नहीं जा सकता था. गोकर्ण ने जब कहा कि मैंने तो तुम्हारा पिंडदान कर दिया, फिर भी तुम प्रेत बन घूम रहे हो तो धुंधकारी बोलता है की मैंने इतना पाप किया है, पिंडदान से मेरा मुक्ति नहीं होगा. मौके पर महिला पुरुष सहित कई श्रद्धालु मौजूद थे.
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