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बिहार: गाय-भैंसों को हो रहा लंपी रोग, दूध देने की क्षमता भी घटी, जानिए वजह-लक्षण और बचाव के उपाय…

पशुओं में इन दिनों लंपी रोग काफी तेजी से बढ़े हैं. बिहार में ऐसे मामले लगातार सामने आ रहे हैं. विषाणु जनित लंपी रोग तेजी से फैल रहा है तो पशुपालकों की मुसीबत अब बढ़ गयी है. इस रोग की वजह क्या है. इसके लक्षण क्या हैं और बचाव के उपाय, जानिए..

बिहार में इन दिनों गाय व भैंसों में तेजी से विषाणु जनित लंपी रोग फैल रहा है. गौपालक इस नयी मुसीबत की दस्तक से काफी परेशान हैं. इस रोग से ग्रसित पशुओं के शरीर में फोड़ा हो जाता है. लंपी स्किन डिजीज नामक बीमारी पशुओं में होने से इन दिनों क्षेत्र के विभिन्न जगहों पर गाय, भैंस, बकरी की मौत भी हो रही है. ढेलेदार त्वचा रोग (Lsd virus ) एक संक्रामक वायरल संक्रमण है, जो मवेशियों को प्रभावित करता है. इसमें बुखार, त्वचा पर गांठ का कारण बनता है. इससे मवेशियों की मृत्यु हो रही है. कई राज्य मवेशियों में ढेलेदार त्वचा रोग (Lsd virus ) से जूझ रहे हैं और यह बीमारी डेयरी क्षेत्र के लिए चिंता का विषय बनकर उभरी है. गुजरात, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा सहित आठ से अधिक राज्यों में एलएसडी की चपेट में बड़ी संख्या में मवेशी आ चुके हैं . अब बिहार के कई क्षेत्रों में यह बीमारी फैल रही है. इससे बचाव के जानिए उपाय..

क्या है लंपी रोग?

लंपी एक त्वचा रोग है जो वायरस से फैलता है और गाय-भैंसों में प्रमुखता से असर करता है. यह वीषाणु जनित संक्रामक रोग है, इसीलिए बेहद खतरनाक होने के साथ इलाज में भी देरी होती है. पशुओं में यह वायरस बहुत तेजी से फैलता है और इसके लिए वह खास माध्यम का सहारा लेता है. अगर कोई पशु लंपी वायरस से संक्रमित हो जाये, तो उसके शरीर पर परजीवी कीट, किलनी, मच्छर, मक्खियों से और दूषित जल, दूषित भोजन और लार के संपर्क में आने से यह रोग अन्य पशुओं में भी फैल सकता है. इस रोग से प्रभावित पशुओं में मृत्यु दर बहुत कम होती है और सामान्य तौर पर दो से तीन हफ्ते में पशु स्वस्थ हो जाते है. लंपी बीमारी जूनॉटिक नहीं है. इसलिए पशुओं का संक्रमण इंसानों में नहीं फैलता.

लंपी रोग के क्या हैं लक्षण?

  • लंपी वायरस से संक्रमित पशु को हल्का बुखार रहता है.

  • मुंह से लार अधिक निकलती है और आंख-नाक से पानी बहता है.

  • पशुओं के लिंफ नोड्स और पैरों में सूजन रहती है.

  • संक्रमित पशु में दूध देने की क्षमता घटती है.

  • गर्भित पशु में गर्भंपात का खतरा रहता है और कभी-कभी पशु की मौत भी हो जाती है.

  • पशु के शरीर पर त्वचा में बड़ी संख्या में 2 से 5 सेमी आकार की कठोर गांठें बन जाती हैं.

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रोकथाम व बचाव के उपाय:

  • लंपी रोग से पीड़ित संक्रमित पशु को स्वस्थ होने तक पशुओं के झुंड से अलग रखें, ताकि संक्रमण न फैले.

  • कीटनाशक और विषाणुनाशक से पशुओं के परजीवी कीट, किल्ली, मक्खी और मच्छर आदि को नष्ट कर दें.

  • पशुओं के रहने वाले बाड़े की साफ-सफाई रखें.

  • जिस क्षेत्र में लंपी वायरस का संक्रमण फैला है,उस क्षेत्र में स्वस्थ पशुओं की आवाजाही रोकी जानी चाहिए.

  • किसी पशु में लंपी वायरस के लक्षण दिखें, तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.

  • संक्रमित क्षेत्र में जब तक लंपी वायरस का खतरा खत्म न हो, तब तक पशुओं के बाजार मेले आयोजन और पशुओं की खरीद-बिक्री पर रोक लगनी चाहिए.

  • स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण कराना चाहिए ताकि अगली बार उन्हें किसी तरह का संक्रमण नहीं हो.

क्या कहते हैं पशु चिकित्सक?

पशु चिकित्सक बताते हैं कि लंपी रोग के विषय में फिलहाल सरकारी कोई गाइडलाइंस नहीं मिला है. हालांकि, लंपी रोग के शिकायत मिलने पर पशुओं का इलाज किया जा रहा है. इलाज के दौरान कुछ दवाएं अस्पताल में मौजूद हैं. वहीं कुछ दवाओं को बाहर से भी मंगवायी जा रही है. इलाज के दौरान बहुत सारे पशुओं को ठीक किया जा चुका है. सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर से पशुओं को जरूर दिखा लेना चाहिए.

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