बिहार में जमीन के दस्तावेज तो ऑनलाइन हुए, पर कम नहीं हो रहा जमीन का झगड़ा
संयुक्त परिवार की जमीन का बंटवारा हुए बिना रजिस्ट्री और दाखिल खारिज अवैध है. बंटवारे के बाद ही संयुक्त परिवार के प्रत्येक हिस्सेदार के हिस्से के जमीन की चौहद्दी निर्धारित होती है. इसके बाद ही जमीन की रजिस्ट्री और दाखिल खारिज होना चाहिए.
कृष्ण कुमार, पटना. बिहार सरकार के प्रयासों से जमीन के दस्तावेजों को डिजिटाइज किये जाने और अन्य गंभीर प्रयासों के बाद भी जमीन विवाद में कमी नहीं आ रही है. इसकी बड़ी वजह राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अंचल व जिला स्तर के कार्यालयों में काम की गति बेहद धीमी और दस्तावेजों में गलतियों की भरमार होना है. जमीन के दस्तावेजों की जांच-पड़ताल किये बिना जमीन की रजिस्ट्री, रैयत की मृत्यु के बाद वारिस के नाम पर जमाबंदी ट्रांसफर या दाखिल खारिज करने के लिए सरकारी कार्यप्रणाली नहीं होना भी इसका कारण है. इसके अलावा वैध कागजातों के बिना ही संयुक्त परिवार का जमाबंदी स्थानांतरण, बासडीह सहित नदियों से निकलने वाली जमीन के मालिक की पहचान नहीं होने और कानूनी विवाद वाली जमीन की बिक्री और दाखिल खारिज से भी विवाद हो रहा है. पुलिस विभाग का मानना है कि राज्य में अपराध और हत्या के कुल मामलों में से करीब 59 फीसदी भूमि विवाद से संबंधित हैं.
कागजातों की सभी जांच के बाद होनी चाहिए रजिस्ट्री
कानून के जानकारों का कहना है कि जमीन विवाद दूर करने का प्रभावी तरीका यही है कि जमीन के कागजातों की सभी जांच के बाद ही उसकी रजिस्ट्री होनी चाहिए. इससे सरकार को तो जो राजस्व मिलना है, वह मिलेगा ही, जमीन बेचने और खरीदने वाले विवाद मुक्त रहेंगे. सही रजिस्ट्री से दाखिल खारिज और दखल कब्जा में भी समस्या नहीं आयेगी. ऐसे में जमीन की रजिस्ट्री वाली व्यवस्था दुरुस्त होने से आधी से अधिक समस्या का निदान हो जायेगा.
अन्य प्रदेशों में है विशेष व्यवस्था
हैदराबाद में आम लोगों को जमीन का पासबुक बनवा दिया गया है. जमीन की रजिस्ट्री के समय यह पासबुक दिखाकर जमीन की पुष्टि अनिवार्य है. उत्तर प्रदेश में रैयत की मृत्यु के कुछ दिन के भीतर ही स्थानीय अमीन रैयत के घर जाकर उसके वारिसों की जानकारी जुटाते हैं. फिर जमाबंदी ट्रांसफर हो जाता है.
संयुक्त परिवारों का विवाद गहरा
संयुक्त परिवार की जमीन को लेकर कई तरह के विवाद सामने आते रहते हैं. इसमें जमीन का बंटवारा किये बिना ही रजिस्ट्री और दाखिल खारिज का मामला शामिल है. साथ ही ऐसी जमीन में एक हिस्सेदार का पूरा हिस्सा बिकने और खरीदार के नाम दाखिल खारिज होने के बाद बची जमीन की जमाबंदी में केवल अन्य हिस्सेदारों का नाम होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है. बची जमीन की जमाबंदी में भी विक्रेता हिस्सेदार का नाम दिखता रहता है. इससे विवाद होना स्वाभाविक है.
जमीन के बंटवारा के बगैर रजिस्ट्री व दाखिल खारिज अवैध : महाधिवक्ता
राज्य के महाधिवक्ता पीके शाही का कहना है कि संयुक्त परिवार की जमीन का बंटवारा हुए बिना रजिस्ट्री और दाखिल खारिज अवैध है. बंटवारे के बाद ही संयुक्त परिवार के प्रत्येक हिस्सेदार के हिस्से के जमीन की चौहद्दी निर्धारित होती है. इसके बाद ही जमीन की रजिस्ट्री और दाखिल खारिज होना चाहिए.
लंबित दाखिल खारिज का निबटारा तीन माह में : मंत्री
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री आलोक कुमार मेहता ने कहा कि उनके कार्यकाल में राज्य में भ्रष्टाचार के आरोपी करीब 26 अंचल अधिकारियों को निलंबित किया जा चुका है. दाखिल खारिज के सभी लंबित मामलों का निपटारा अगले तीन महीने में करने का सभी अधिकारियों को निर्देश दिया गया है. आने वाले समय में नक्शा से लेकर जमाबंदी तक सभी जमीन के कागजात ऑनलाइन ही देखे जा सकेंगे. इसके लिए इंटीग्रेटेड सॉफ्टवेयर विकसित करने की जिम्मेदारी आइआइटी रुड़की को दी गयी है.
हर पांचवीं हत्या संपत्ति या जमीन विवाद में
गृह विभाग के मुताबिक बिहार में हुए अपराध-हत्या के 58.74 प्रतिशत मामलों का संबंध भूमि विवाद से रहा है. एनसीआइबी के आंकड़ों के मुताबिक 2021 में राज्य में विभिन्न विवादों के कारण हुई 1,081 हत्याओं में से 635 हत्याएं संपत्ति या जमीन विवाद में हुईं. उस साल बिहार में हर पांचवीं हत्या संपत्ति या जमीन के विवाद के कारण हुई. गृह विभाग ने एनआइसी के सहयोग से भू-समाधान पोर्टल तैयार किया है. गृह विभाग के मुताबिक भू-समाधान पोर्टल पर 23 मई तक 21577 मामले दर्ज हैं, जिनमें 9831 मामले निबटाये जा चुके हैं.
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दाखिल खारिज के मामले
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कुल मामले : एक करोड़ सात लाख 54 हजार 48
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लंबित मामले : सात लाख 66 हजार 468
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समाधान : 58 लाख 95 हजार 916
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खारिज मामले : 40 लाख 91 हजार 664
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(आंकड़े 10 जून 2023 तक के)