Prabhat Khabar EXCLUSIVE: सीमांचल क्षेत्र के किशनगंज जिले के ठाकुरगंज में एक नया धंधा खूब परवान चढ़ा है. इस धंधे में कोई निवेश नहीं, बस थोडा सेटिंग और लोगों को मोहने की कला और कमाई करोड़ों में. बीते एक-डेढ़ दशक के दौरान ठाकुरगंज में जमीन की दलाली का धंधा परवान चढ़ा है. और देखते ही देखते जो जमीन 15 साल पहले 20 हजार रुपये डिसमिल बिकती थी वह आज दो लाख रुपये डिसमिल तक पहुंच गई है. भले ही रजिस्ट्री के दौरान यह रकम सामने नहीं आती है लेकिन वास्तविक कीमत ठाकुरगंज में आसमान छू रही है. दलालों ने जमीन की कीमत इस कदर आसमान चढ़ा दी कि साधारण लोग शहर में जमीन खरीदने का सपना देखना ही छोड़ चुके हैं.
बताते चले मुंबई, दिल्ली , पंजाब जैसे शहरों से कमा कर लौटने वाले लोग जमीन को मुंहमांगे दामों पर खरीदने को तैयार रहते हैं. इसलिए यहां जमीन के दलालों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. केवल ठाकुरगंज इलाके में एक दर्जन से अधिक लोग बिना रजिस्ट्रेशन अथवा पंजीयन के प्रापर्टी डीलिंग का कारोबार कर रहे हैं. रजिस्ट्री आफिस से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में बिकने वाली जमीनों की पूरी जानकारी इनके पास रहती है. ग्रामीणों से सस्ते रेट पर जमीन खरीदकर ये लोग मोटा मुनाफा कमा रहे हैं.
बिना किसी ख़ास इन्वेस्टमेंट से शुरू जमीन खरीद बिक्री के इस धंधे में हाल के दिनों में इलाके ने कई करोड़पति पैदा कर दिए है . ऐसे लोगों का लिविंग स्टेंडर्ड इतना बढ़ा की कल तक मोटरसाइकिल रखने वाले ऐसे लोगो के पास अब चार चक्के दिखने लगा है, सिलीगुड़ी जेसे शहरों में जमीन खरीद कर वहां आशियाना बनाने का सपना देखने लगे है.
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आप यदि मुसीबत में है और अपने जमीन को बेचकर फ्री होना चाहते हे तो यह बिना दलाल के मुमकिन नहीं , ठाकुरगंज में हाल यह हे की बिना दलाल के जमीन बिक ही नहीं सकती , यहां एक कहावत लोगों के बीच काफी प्रचलित है की इलाके में जमीन से ज्यादा बिचौलिया ही नजर आते हैं.
जमीन दलाल अपना पूरा काम नकद या फिर कच्चे में करते हैं. जमीन की खरीदी बिक्री के मामले में कागजी कार्रवाई के दौरान जमीन खरीदने वाले और बेचने वाले के बीच सीधा काम करवाते हैं. बीच में उनका सिर्फ बिचौलिए का काम रहता है. पेपर में जमीन खरीदने वाले और बेचने वाले का नाम होता है. इस वजह से जमीन दलाल बचकर निकल जाते हैं. उनके खिलाफ कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं होता. लेकिन निबंधन कार्यालय के सीसीटीवी फुटेज को खंगाला जाए तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.
पिछले दो दशक के दौरान गांव में रहनेवाले लोगों में शहर में बसने की चाहत बढ़ी है. वे किसी भी कीमत पर शहर में रहने लायक जमीन खरीद लेना चाहते हैं. इसे एक तरह से स्टेटस सिंबल के रूप में भी देखा जाने लगा है. गांव में किसी एक के पास शहर में जमीन होने के बाद दूसरे लोग भी एक छोटा-सा टुकड़ा खरीद लेना चाहते हैं. लोगों के अंदर बढ़ी इसी बेचैनी को जमीन के दलालों ने भांप लिया और जमकर इसका फायदा उठाया और उठा रहे हैं. नतीजा जमीन की कीमतें आसमान छूती गयी हैं और जमीन कारोबारियों के पौ-बारह हो रहे हैं.
हाल के दिनों में इलाके में विभिन्न योजनाओं के लिए हुए जमीन अधिग्रहण के बाद जमीनों के दाम बेहिसाब बढे है , पहले बोर्डर रोड , फिर गलगलिया – अररिया रेलखंड के लिए हुए भूअधिग्रहण के बाद इस अधिग्रहण से लाभान्वित लोगो ने भी नगर में बसने का सोच कर जमीने खरीदने में उत्सुकता दिखाई और इस कारण जमीन के दाम बढ़े.
Posted By: Thakur Shaktilochan