25 साल बाद बिहार से लोकसभा में गूंज सकती है वामदलों की आवाज, 1999 के चुनाव में अंतिम बार मिली थी जीत

आगामी लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में सभी दलें जुट गयी हैं. वहीं 25 साल के बाद बिहार से लोकसभा में वामदलों की आवाज फिर एकबार गूंज सकती है. वामदलें इसकी तैयारी में भी लगी हैं. 1999 के लोकसभा चुनाव में अंतिम बार माकपा के सुबोध राय चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे थे.

By Prabhat Khabar News Desk | July 28, 2023 12:43 PM
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मिथिलेश,पटना

विपक्ष के 26 दलों की इंडिया (I.N.D.I.A) की ओर से भाजपा के खिलाफ साझा उम्मीदवार उतारे जाने का फैसला जमीन पर उतरा तो अगले साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में वामदलों की भी बिहार से लोकसभा तक पहुंचने की उम्मीद जग सकती है. बिहार की चालीस लोकसभा सीटों में इंडिया के घटक दलों के बीच बटवारे में वामदलों के हिस्से दो से चार और अधिकतम पांच सीटें आने की गुंजाइश बनती दिख रही है. 

बिहार में 24 साल पहले सुबोध राय को मिली थी जीत

बिहार में मुख्य रूप से भाकपा माले, भाकपा और माकपा चुनाव मैदान में उतरती रही है. इंडिया के घटक दलों के बीच सहमति बनी तो समझौते में मिले सीटों पर तीनों वाम दलों का सीधा मुकाबला भाजपा से होने वाला है. इस चुनावी जंग में भाजपा को परास्त करने में वामदल सफल रहे तो पचीस साल बाद बिहार से लाल सलाम की आवाज लोकसभा तक गुंज सकेगी. करीब 24 साल पहले 1999 के लोकसभा चुनाव में भागलपुर से माकपा की टिकट पर चुनाव जीतने वाले सुबोध राय अंतिम वाम सांसद थे. इनके बाद अब तक लोकसभा के चार आम चुनाव 2004,2009,2014 और 2019 में हुए, किसी में भी किसी भी वामदल के उम्मीदवार के सिर पर जीत का सेहरा नहीं सज पाया. 

2019 के चुनाव में वामदलों के आधा दर्जन से अधिक उम्मीदवार उतरे

पिछली दफा 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बिहार से वामदलों की ओर से आधा दर्जन से अधिक उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे गये थे. लेकिन, प्रदेश में एनडीए की हवा में उन्हें जीत हासिल नहीं हो सकी.

दूसरे नंबर पर रहे थे बेगूसराय में सीपीआइ के कन्हैया और आरा में माले के उम्मीदवार

2019 के लोकसभा चुनाव में वामदलों ने सात सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारा था. इनमें से दो जगहों पर वे मुख्य मुकाबले में रहे. बेगूसराय की सीट पर सीपीआइ ने कन्हैया कुमार को मैदान में उतारा था. त्रिकोणात्मक मुकाबले में कन्हैया कुमार दो लाख 69 हजार से अधिक वोट लाकर दूसरे स्थान पर रहे. जीत का सेहरा भाजपा के गिरिराज सिंह के सिर सजा. श्री सिंह को छह लाख से अधिक वोट मिले. यहां राजद ने अपना उम्मीदवार तनवीर अहमद को बनाया था. इसी प्रकार भाकपा माले आरा लोकसभा सीट पर दूसरे नंबर पर रहा. आरा में भाजपा ने पूर्व नौकरशाह आरके सिंह पर दाव लगाया था. उनके मुकाबले भाकपा माले ने राजू यादव को अपना उम्मीदवार बनाया. आमने सामने की टक्कर में राजू यादव को चार लाख 19 हजार से अधिक वोट मिले. जबकि जीतने वाले भाजपा के आरके सिंह को पांच लाख 66 हजार से अधिक वोट प्राप्त हुए.

2019 के चुनाव में किसी भी वाम दल का नहीं खुला खाता

2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की चालीस सीटों में वामदलों का खाता नहीं खुल पाया. हालांकि बड़ी पार्टी राजद भी जीरो पर आउट हो गयी. माकपा ने उजियारपुर में अपने उम्मीदवार उतारे थे. जबकि भाकपा ने बेगूसराय के अलावा पूर्वी चंपारण में तथा भाकपा माले ने आरा के अलावा सीवान, काराकाट और जहानाबाद में अपने उम्मीदवार दिये थे.

1952 के पहले और 1957 के दूसरे चुनाव में भी वाम दल का नहीं खुला था खाता

बिहार में 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव और 1957 के दूसरे लोकसभा चुनाव में वामदल का खाता नहीं खुला था. इस समय भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी सीपीआइ ही मैदान में रही थी. सीपीआइ ने दोनों ही चुनावों में बिहार में एक भी उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं उतारे थे. हालांकि, दूसरे राज्यों में सीपीआइ के उम्मीदवार चुनाव मैदान में खड़े हुए थे.

1962 के चुनाव में पहली बार बिहार से सीपीआइ का खुला खाता

देश में तीसरा आम चुनाव 1962 में हुआ. 1962 का चुनाव बिहार से वामदल के लिए खुशखबरी भरा रहा. पहली बार अविभाजित बिहार की जमशेदपुर लोकसभा सीट से भाकपा के उदयकांत मिश्रा चुनाव जीत गये. यह वामदल की बिहार में लोकसभा चुनाव में पहली जीत रही. इस चुनाव में भाकपा ने बिहार से 16 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें जीत सिर्फ जमशेदपुर में ही हुई. छह सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हो गयी थी. सीपीआइ ने जमशेदपुर के अलावा केसरिया,सोनबरसा, जयनगर, कटिहार,गोड्डा,भागलपुर, जमुई, बेगूसराय, नालंदा,पटना,विक्रमगंज, जहानाबाद,नवादा, गिरिडीह और धनबाद में अपने उम्मीदवार उतारे थे. इनमें पटना, सोनबरसा,भागलपुर, जहानाबाद,नालंदा और बेगूसराय में सीपीआइ के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे.

बिहार से 1967 में पांच सीटें जीतने में कामयाब रही सीपीआइ

1967 के आम चुनाव में सीपीआइ बिहार में एक बड़ी ताकत बन कर उभरी. उसके पांच उम्मीदवार लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे. सीपीआइ के केसरिया में कमला मिश्र मधुकर, जयनगर में भागेंद्र झा , बेगूसराय में योगेंद्र शर्मा, जहानाबाद में चंद्रशेखर सिंह और पटना में रामावतार शास्त्री चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे. सीपीआइ इस बार बिहार की 17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. जिनमें चार पर जमानत जब्त हो गया. जिन सीटों पर सीपीआइ ने उम्मीदवार उतारे थे , उनमें मोतिहारी, महाराजगंज, कटिहार, दुमका, भागलपुर, जमुई, नालंदा, बक्सर, नवादा, गिरिडीह, हजारीबाग और जमशेदपुर की सीटें थीं. वहीं माकपा ने धनबाद और जमशेदपुर में अपने उम्मीदवार उतारे थे.

1996 में सीपीआइ के तीन सांसद चुने गये थे

1996 के लोकसभा चुनाव में मधुबनी से सीपीआइ के चतुरानन मिश्र,बलिया से सीपीआइ के ही शत्रुघ्न प्रसाद सिंह और जहानाबाद से रामाश्रय प्रसाद सिंह चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे थे.

1991 के चुनाव में वामदलों की ताकत नौ सांसदों की रही थी

इसके पहले 1991 के लोकसभा चुनाव में बिहार में वामदलों की ताकत नौ सासंदों की रही थी. इनमें आठ सीपीआइ से और एक नवादा से सीपीएम के प्रेमचंद्र राम को जीत मिली थी. यह अविभाजित बिहार का आलम था. इनमें हजारीबाग से सीपीआइ के भुवनेश्वर प्रसाद मेहता भी चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. उनके अलावा मोतिहारी से सीपीआइ के कमला मिश्र मधुकर, मधुबनी से भोगेंद्र झा, बलिया से सूर्यनारायण सिंह,मुंगेर से ब्रह्मांनद मंडल, बक्सर से तेज नारायण सिंह, नालंदा से विजय कुमार यादव, जहानाबाद से रामाश्रय प्रसाद सिंह और नवादा से माकपा के प्रेमचंद राम जीत कर लोकसभा पहुंचे.

1989 के चुनाव में पहली बार आइपीएफ के रामेश्वर प्रसाद आरा से जीत गये चुनाव

1980 के दशक के अंतिम समय में 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में वामदलों को छह जगहों पर जीत मिली थी. इनमें खास आरा लोकसभा चुनाव क्षेत्र से इंडियन पीपुल्स फ्रंट आइपीएफ के रामेश्वर प्रसाद का चुनाव जीतना था. इसके बाद आइपीएफ का नया रूप भाकपा माले के रूप में सामने आया. लेकिन, 1989 के बाद भाकपा माले के कोई उम्मीदवार लोकसभा का चुनाव जीत नहीं पाये. 1989 के चुनाव में मधुबनी से सीपीआइ के भोगेंद्र झा, बलिया से सूर्य नारायण सिंह, बक्सर से तेज नारायण सिंह, जहानाबाद से रामाश्रय प्रसाद सिंह और नवादा से सीपीएम के प्रेम प्रदीप को जीत मिली थी.

बिहार विधानसभा में वामदलों के हैं 16 विधायक

बिहार विधानसभा में वाम दलों के 16 विधायक चुनाव जीत कर सदन पहुंचे हैं. इनमें सबसे अधिक भाकपा माले के 12 विधायक हैं. माकपा और भाकपा के दो-दो विधायक हैं. तीनों वाम दल नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार को बाहर से अपना समर्थन दे रहा है.

माकपा 4 सीटों पर प्रत्याशी उतारने के मूड में

सीपीआइ के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय कहते हैं, हम तैयारी कर रहे हैं. हमलोग जहां बेहतर स्थिति में हैं, वहां चुनाव लड़ेंगे. निश्चित रूप से सीटों की संख्या दो से अधिक होगी. वहीं माकपा के राज्य सचिव ललन चौधरी की माने तो लोकसभा चुनाव को लेकर पार्टी ने चार सीटों पर तैयारी शुरू कर दिया है. महाराजगंज, समस्तीपुर, खगड़िया और उजियारपुर की सीट पर पूर्व से भी हमारी दावेदारी रही है.ऐसे में हम इन चारों सीटों पर उम्मीदवार तय करेंगे.  बाकी महागठबंधन की बैठक में निर्णय के बाद तय होगा. 

इन सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में भाकपा माले

भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल के मुताबिक आरा, काराकाट, जहानाबाद, पाटलिपुत्र, कटिहार, वाल्मीकीनगर, बक्सर, समस्तीपुर और सीवान की सीट पर भाकपा माले की तैयारी है.यह सभी सीटें पहले से तय है. वो बताते हैं, हम लोगों ने इन सीटों पर बहुत काम किया है .चुनाव में हम इन सब सीटों पर उम्मीदवार देंगे,लेकिन महागठबंधन की बैठक में यह देखा जायेगा कि किस तरह से सीटों का बंटवारा होता है. क्योंकि भाजपा को हराना हम लोगों का लक्ष्य है.

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