बिहार में पहले से सुस्त पड़े रियल एस्टेट के कारोबार पर लॉकडाउन ने दोहरी मार दी है. भले ही केंद्र की ओर से घोषित राहत पैकेज में रियल एस्टेट कारोबारियों को प्रोजेक्ट पूरा करने की समय सीमा में छह माह की अतिरिक्त छूट दी गयी हो, लेकिन इसका दूसरा पक्ष है कि फ्लैट के खरीदारों पर छह महीने के अतिरिक्त ब्याज का बोझ बढ़ गया है. रेरा के सदस्य आरबी सिन्हा ने बताया कि कई राज्यों के बायर्स एसोसिएशन ने पीएम या अन्य जिम्मेदार संस्थानों को पत्र लिख कर मांग की है कि फ्लैट खरीदने के लिए उन्होंने बैंक से जो लोन लिया था, उसका ब्याज जमा करने में छह महीने की छूट दी जाये, क्योंकि लॉकडाउन में प्रोजेक्टों को पूरा गया है. राज्य में ऐसे लगभग एक हजार से अधिक प्रोजेक्टों का मामला है.
जहां एक तरफ खरीदारों को अतिरिक्त ब्याज को लेकर समस्या हुई है. वहीं, बिल्डर या रियल एस्टेट कंपनी को भी लॉकडाउन से नुकसान ही हुआ है. बिल्डर एसोसिएशन के बिहार चैप्टर के अध्यक्ष भावेश कुमार बताते हैं कि जो छह महीने का अतिरिक्त समय दिया गया है, वह मुख्य रूप से बारिश का समय है. राज्य में 200 से अधिक प्रोजेक्ट चल रहे हैं. अन्य नये प्रोजेक्ट जो शुरू होने वाले हैं, वे बारिश के समय नहीं हो सकते. इसमें पहली समस्या जमीन के अंदर काम करने पर पानी भरने और दूसरी समस्या बारिश में बालू को लेकर होगी. इसलिए इस छूट का राज्य में बहुत फायदा नहीं मिलता दिख रहा है.
पटना. बैंक फ्लैट के खरीदारों या अन्य किसी तरह के गृह निर्माण संबंधी आगे का लोन जारी करने के लिए उनसे नयी वेतन स्लिप मांग रहे हैं. इससे परेशानी बढ़ गयी है. इसके दायरे में सबसे अधिक वैसे लोग हैं, जो प्राइवेट सेक्टर में काम करते हैं. बैंक के वरीय अधिकारियों की मानें, तो प्राइवेट कंपनियों में वेतन कटौती और बड़े स्तर पर छंटनी के का रण बैंक पहले ही यह सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि उनका लोन नहीं डूबे और उन्हें लोन की इएमआइ समय पर मिलती रहे. वहीं, दूसरी ओर रियल एस्टेट से जुड़े लोगों को कहना है कि उनके कई ग्राहकों ने यह शिकायत की है कि पिछले दो महीने से बैंक उन्हें लोन देने में आनाकानी कर रहे है. लॉकडाउन के बाद बाकी का लोन देना बंद कर दिया है. बैंक को यह डर सता रहा है कि कंपनियों में छंटनी व वेतन कटौती से इएमआइ का नियमित भुगतान खतरे में पड़ सकता है और ग्राहक डिफॉल्टर हो सकते हैं.
बैंक अधि कारियों की मानें, तो वेतन में हुई कटौती को देखते हुए बैंक ने फैसला लिया है कि लोन के डिस्बर्स मेंट के समय उनका नियम यह सुनिश्चित कर लेना चाहता है कि कर्ज लेने वाला व्यक्ति लोन चुकाने में सक्षम है या नहीं. उनके इएमआइ भुगतान की क्षमता प्रभावित होगी या नहीं. इस परिस्थिति में एक उपाय है कि लोन की किस्तों का पुनः निर्धारण करें, जिससे इएमआइ की राशि बचत के समतुल्य कर इएमआइ की संख्या के अनुसार बढ़ा दी जायेगी.
दूसरा अगर कर्ज स्वी कृत नहीं हुआ है या स्वी कृति के बाद बिल्कुल डिस्बर्स मेंट नहीं हुआ है, तो वर्तमान आय व भविष्य में आय की स्थिति का अच्छी तरह विचार कर कर्ज ले या डिस्बर्स मेंट कराएं. तीसरी स्थिति है नौकरी से छंटनी हो जाने पर क्या करें, तो इसके लिए आपको बैंक के साथ मंत्रणा कर उचित निर्णय समय से ले लेना चाहिए.