सदन की गिरती गरिमा पर लोस अध्यक्ष ने जतायी चिंता, ओम बिरला बोले- छोटे होते सत्र लोकतंत्र के लिए सही नहीं
सदन में सदस्यों की उपस्थिति भी कम होती है. विधायी कार्यों में प्रतिनिधियों की अधिक भागीदारी होनी चाहिए.
पटना. विधानमंडलों की गिरती गरिमा को लेकर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा कि विधानमंडल में बैठकों की कम होती संख्या चिंता का विषय बनी हुई है. सदन में सदस्यों की उपस्थिति भी कम होती है. विधायी कार्यों में प्रतिनिधियों की अधिक भागीदारी होनी चाहिए. उन्होंने बताया कि देश जब आजादी के अमृत महोत्सव मना रहा है तो इस पर मंथन करने की आवश्यकता है.
लोकतांत्रिक संस्थाओं को जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बनाया जाये
उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को किस प्रकार से जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बनाया जाये. लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों के आचरण से ही सदन की गरिमा और मर्यादा बनती है. अधिक चर्चा और संवाद कर सदन कार्यपालिका को अधिक जवाबदेह बना सकता हैं और सरकार में पारदर्शिता लायी जा सकती है. देश के बहुत से विधानसभा में कम बैठकें होती है और वह भी शोरगुल में समाप्त हो जाती है. विधानसभा में तथ्यों के आधार पर जनता की बातें रखने वाले सदस्यों को सर्वश्रेष्ठ विधायक सम्मान देकर स्वस्थ परंपरा की शुरुआत की जा सकती है.
लोकतंत्र का मंदिर वाद-विवाद और संवाद का केंद्र बने
लोकसभा अध्यक्ष गुरुवार को बिहार विधानमंडल के सदस्यों के लिए आयोजित प्रबोधन कार्यक्रम को संबोधित करत रहे थे. विधानसभा से सेंट्रल हॉल में आयोजित प्रबोधन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने बताया कि लगातार सदन में चर्चा और संवाद कम हो रहा है. सदस्यों की शालीनता ही लोकतंत्र का आभूषण है. चर्चा में प्रदेश का हित सर्वोच्च होनी चाहिए. सदस्य इस प्रकार के आचरण करें जिससे कि लोकतंत्र का मंदिर वाद-विवाद और संवाद का केंद्र बने.
कानून बनाते समय चर्चा और संवाद होना चाहिए
विधानमंडल में हर विषय और मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए. कानून बनाते समय चर्चा और संवाद होना चाहिए. पक्ष विपक्ष में मतभेद होना, सहमति व असहमति होना स्वाभाविक है. लोकतंत्र में यह भी जरूरी है. विरोध के बावजूद भी गतिरोध नहीं होना चाहिए. नियोजित गतिरोध तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिए. जिन देशों में लोकतंत्र नहीं है वे भी अब लोकतांत्रिक बनने की ओर बढ़ रहे हैं. भारत का लोकतंत्र तो दुनिया में सबसे बड़ा है. उन्होंने बताया कि शिमला में पीठासीन पदाधिकारियों के सम्मेलन में लोकतांत्रिक संस्थाओं को प्रभावी बनाने पर व्यापक चर्चा की गयी थी.
सदन में अनुशासन बना रहे यह सबका दायित्व
उसमें यह भी निर्णय लिया गया था कि देश के सभी विधानमंडल अपने कार्य संचालन नियम और प्रक्रियाओं में वांछित संशोधन करे जिससे सदन में अनुशासन बना रहे. उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा में 42 प्रतिशत सदस्य पहली बार चुनकर आये हैं. उनके लिए प्रबोधन कार्यक्रम अत्यंत उपयोगी है. सदन में अल्पकालिक चर्चा, शून्यकाल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव जैसे प्रक्रियागत साधन हैं जिनके माध्यम से सदस्य विभिन्न मुद्दों को सदन में उठा सकते हैं.