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भागलपुर सदर अस्पताल से हटाया गया लोकनायक जयप्रकाश नारायण का नाम ! भूल या साजिश ? चौतरफा विरोध शुरू

लोकनायक जयप्रकाश नारायण सदर अस्पताल का नाम बदलकर सदर अस्पताल, भागलपुर किये जाने का चौतरफा विरोध शुरू हो गया है. जेपी सेनानी संगठन ने अधिकारियों को पत्र लिखकर भूल का सुधारने की मांग की है.

भागलपुर: लोकनायक जयप्रकाश नारायण सदर अस्पताल का नाम बदलकर सदर अस्पताल, भागलपुर किये जाने का चौतरफा विरोध शुरू हो गया है. खासकर जेपी सेनानी, जदयू, ग्रामीण बैंक के राजभाषा अधिकारी ने जिलाधिकारी व प्रमंडलीय आयुक्त को पत्र लिखकर भूल सुधार करने का अनुरोध किया है. इतना ही नहीं आंदोलन की चेतावनी भी दी है.

2005 में हुई थी प्रतिमा स्थापित, 2008 में हुआ था नामकरण

जेपी सेनानी संगठन के चेयरमैन प्रकाशचंद्र गुप्ता ने बताया कि 2008 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने जेपी सेनानी के अनुरोध पर सदर अस्पताल का नाम लोकनायक जयप्रकाश नारायण सदर अस्पताल कर दिया, जबकि स्मारक का निर्माण 2005 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सुधा श्रीवास्तव के प्रयास से हुआ था.

उसी समय सदर अस्पताल के नाम का प्रस्ताव लोकनायक के नाम से करने के लिए पारित किया गया था. प्रदेश सरकार की ओर से इसे स्वीकृति मिली हुई है. मरीजों को मिलनेवाले प्रिस्क्रिप्सन में भी लोकनायक का नाम ही अंकित है. फिर अचानक यह नाम कैसे बदल गया. इससे सभी जेपी सेनानी हैरत में हैं. यह सरकार के आदेश का साफ उल्लंघन है.

जदयू नेता दीपक गुप्ता ने जिलाधिकारी, कमिश्नर व सिविल सर्जन को सौंपा ज्ञापन

जदयू नेता दीपक गुप्ता ने जिलाधिकारी, कमिश्नर व सिविल सर्जन को ज्ञापन सौंपा. ज्ञापन में बताया कि सदर अस्पताल, भागलपुर का नाम लोकनायक जयप्रकाश नारायण सदर अस्पताल, भागलपुर हुआ करता था. न जाने किन कारणों से साल के अंतिम सप्ताह में सदर अस्पताल, भागलपुर अस्पताल के मुख्य द्वार पर अंकित (लिखा) किया गया, जो प्रदेश की जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है.

जेपी का भागलपुर से था खास लगाव

सामाजिक कार्यकर्ता निरंजन दुबे ने बताया कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण का लगाव विशेष कर भागलपुर से रहा है और यहां की जनता ने भी उनके आंदोलन में सहयोग किया था. मुख्य द्वार पर नामकरण में भूल सुधार किया जाये.

ग्रामीण बैंक के राजभाषा अधिकारी सौरभ सुमन ने कहा कि बाह्य विभाग भवन में लगे बाह्य विभाग के बोर्ड पर अंग्रेजी को प्रधानता देते हुए सर्वप्रथम अंग्रेजी शब्द का प्रयोग किया गया है, जो राजभाषा हिंदी का अपमान है. राजभाषा नियम, 1976 के अनुसार कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह दायित्व है कि अधिनियम व आदेशों का पालन सुनिश्चित करें. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343(1) के अंतर्गत देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया है.

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