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लोकपर्व चौरचन: कलंकमुक्ति के लिए होती है चौठ के कलंकित चांद की पूजा, जानें क्या है मान्यता

मिथिला नरेश महाराजा हेमांगद ठाकुर के कलंक मुक्त होने के अवसर पर रानी हेमलता ने कलंकित चांद को पूजने की परंपरा शुरू की, जो बाद में मिथिला का लोकपर्व बन गया. मान्यता है कि चौरचन पर्व करने से मनुष्य का जीवन दोषमुक्त व कलंकमुक्त हो जाता है.

आशीष झा

आम तौर पर पूरे भारत में यह मान्यता है कि भादव माह की चतुर्थी तिथि को उदय होने वाला चन्द्रमा का दर्शन दोषयुक्त है, इस दिन लोग चंद्रामा का दर्शन से परहेज करते हैं, लेकिन मिथिला में इस दिन चन्द्रमा की विधिवाद पूजन की विशेष परंपरा रही है. कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी से मिथिला में यह लोक पर्व के रूप में मनाया जा रहा है. मिथिला नरेश महाराजा हेमांगद ठाकुर के कलंक मुक्त होने के अवसर पर रानी हेमलता ने कलंकित चांद को पूजने की परंपरा शुरू की, जो बाद में मिथिला का लोकपर्व बन गया. मान्यता है कि चौरचन पर्व करने से मनुष्य का जीवन दोषमुक्त व कलंकमुक्त हो जाता है.

पुरुष और महिला दोनों को चंद्र पूजा करने का अधिकार
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लोकपर्व चौरचन: कलंकमुक्ति के लिए होती है चौठ के कलंकित चांद की पूजा, जानें क्या है मान्यता 3

जैसे छठ सूचिता का और जूड़-शीतल शीतलता का लोकपर्व है, वैसे ही चौरचन कलंकमुक्ति का लोकपर्व है. मिथिला का यह लोकपर्व आज देश के विभिन्न हिस्सों भी मनाया जा रहा है. छठ में जहाँ हम सूर्य की पूजा करते हैं, वहीं इस दिन हम चन्द्रमा की पूजा करते हैं. मिथिला नरेश और प्रख्यात ज्योतिषी हेमाङ्गद ठाकुर ने इसे लोकपर्व का दर्जा दिया. इसके कारण छठ पर्व की तरह ही हर जाति हर वर्ग के लोग इस पर्व को हर्षोल्लाष पूर्वक मानते हैं. चौठ चन्द्र पूजा सन्ध्याकालिक चतुर्थी तिथि में की जाती है. यह पूजा पुरुष और महिला दोनों को करने का अधिकार है. पूरे दिन व्रत रखकर सन्ध्या में यह पूजा की जाती है.

“उगः चाँद लपकः पूरी”
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लोकपर्व चौरचन: कलंकमुक्ति के लिए होती है चौठ के कलंकित चांद की पूजा, जानें क्या है मान्यता 4

“उगः चाँद लपकः पूरी” मिथिला के प्रवासियों को आज भी उत्साह से भर देता है. इस पर्व में पकवान और दही का विशेष महत्व है. लोग हाथ में फल, पकवान या दही लेकर चन्द्रमा का दर्शन करते हैं. ज़ितने घर के सदस्य उतने ही कलश, उतने ही दही के खोर, उतनी ही फूलों पत्तों की डलिया, खाजा, टिकरी, बालूशाही, खजूर, पिडकिया, दालपुरी खीर आदि आदि पूड़ी पकवान… पूरे आँगन में सजा के रखा जाता, उतने ही पत्तल भी केला के लगे होते. चाँद उगने के साथ ही घर की सबसे बड़ी मिहला सदस्य मन्त्र के साथ एक एक सामग्री चाँद को दिखा रखती जाती थी, अंत में सारे मर्द पत्तों में खाते यानी ‘मडर भान्गते’. गरीब से गरीब लोगों के घरों में भी चौरचन के दिन पकवान पहुंचे इसकी व्यवस्था की जाती है. इसलिए इस पर्व के मौके पर पकवान बांटने की भी परंपरा है.

चौरचन की शुरुआत के पीछे की कहानी

चौरचन की शुरुआत के पीछे की कहानी यह है कि मुगल बादशाह अकबर ने तिरहुत की नेतृत्वहीनता और अराजकता को खत्म करने के लिए 1556 में महेश ठाकुर को मिथिला का राज सौंपा. बडे भाई गोपाल ठाकुर के राज गद्दी त्याग देने के बाद 1568 में हेमांगद ठाकुर मिथिला के राजा बने, लेकिन उन्हें राजकाज में कोई रुचि नहीं थी. उनके राजा बनने के बाद लगान वसूली में अनियमितता को लेकर दिल्ली तक शिकायत पहुंची. राजा हेमांगद ठाकुर को दिल्ली तलब किया गया. दिल्ली का बादशाह यह मानने को तैयार नहीं था कि कोई राजा पूरे दिन पूजा और अध्य‍यन में रमा रहेगा और लगान वसूली के लिए उसे समय ही नहीं मिलेगा. लगान छुपाने के आरोप में हेमानंद को जेल में डाल दिया गया.

कारावास में लिखा ग्रहणमाला

मुकुंद झा बख्शी अपनी किताब खंडवला राजवंश में लिखते हैं कि कारावास में हेमांगद पूरे दिन जमीन पर गणना करते रहते थे. पहरी पूछता था तो वो चंद्रमा की चाल समझने की बात कहते थे. धीरे-धीरे यह बात फैलने लगी कि हेमांगद ठाकुर की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और इन्हें इलाज की जरुरत है. यह सूचना पाकर बादशाह खुद हेमांगद को देखने कारावास पहुंचे. जमीन पर अंकों और ग्रहों के चित्र देख पूछा कि आप पूरे दिन यह क्या लिखते रहते हैं. हेमांगद ने कहा कि यहां दूसरा कोई काम था नहीं सो ग्रहों की चाल गिन रहा हूं. करीब 500 साल तक लगनेवाले ग्रहणों की गणना पूरी हो चुकी है.

भविष्यवाणी सही होने पर दी रिहाई, लौटाया राज

बादशाह ने तत्काल हेमांगद को ताम्रपत्र और कलम उपलब्ध कराने का आदेश दिया और कहा कि अगर आपकी भविष्यवाणी सही निकली, तो आपकी सजा माफ़ कर दी जाएगी. हेमांगद ने बादशाह को माह, तारीख और समय बताया. उन्होंने चंद्रग्रहण की भविष्यवाणी की थी. उनके गणना के अनुसार चंद्रग्रहण लगा और बादशाह ने न केवल उनकी सजा माफ़ कर दी, बल्कि आगे से उन्हें किसी प्रकार लगान देने से भी मुक्त कर दिया. अकर(टैक्स फ्री) राज लेकर हेमांगद ठाकुर जब मिथिला आये तो रानी हेमलता ने कहा कि मिथिला का चांद आज कलंकमुक्त हो गये हैं, हम उनका दर्शन और पूजन करेंगे.

रानी हेमलता ने पहली बार की कलंकित चांद की पूजा

रानी हेमलता के पूजन की बात जन जन तक पहुंची. लोगों ने भी चंद्र पूजा की इच्छा व्यक्त की. मिथिला के पंडितों से राय विचार के उपरांत राजा हेमांगद ठाकुर ने इसे लोकपर्व का दर्जा दे दिया. इस प्रकार मिथिला के लोगों ने कलंकमुक्ति की कामना को लेकर चतुर्थी चन्द्र की पूजा प्रारम्भ की. हर साल इस दिन मिथिला के लोग शाम को अपने सुविधानुसार घर के आँगन या छत पर चिकनी मिट्टी या गाय के गोबर से नीप कर पीठार से अरिपन देते हैं. पूरी-पकवान, फल, मिठाई, दही इत्यादि को अरिपन पर सजाया जाता है और हाथ में उठकर चंद्रमा का दर्शन कर उन्हें भोग लगाया जाता है.

पूजन के मंत्र

सिंह प्रसेन मवधीत्सिंहो जाम्बवताहत:!

सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तक:!!

इस मंत्र का जाप कर प्रणाम करते हैं-

नम: शुभ्रांशवे तुभ्यं द्विजराजाय ते नम।

रोहिणीपतये तुभ्यं लक्ष्मीभ्रात्रे नमोऽस्तु ते।।

दही को उठा ये मंत्र पढते हैं-

दिव्यशङ्ख तुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम्!

नमामि शशिनं भक्त्या शंभोर्मुकुट भूषणम्!!

फिर परिवार के सभी सदस्य हाथ में फल लेकर दर्शन कर उनसे निर्दोष व कलनमुक्त होने की कामना करते हैं.

प्रार्थना मंत्र- मृगाङ्क रोहिणीनाथ शम्भो: शिरसि भूषण।

व्रतं संपूर्णतां यातु सौभाग्यं च प्रयच्छ मे।।

रुपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवन् देहि मे।

पुत्रोन्देहि धनन्देहि सर्वान् कामान् प्रदेहि मे।।

अन्य इलाकों में यह देखने को नहीं मिलता है

महावीर मंदिर पटना के प्रकाशन विभाग के अध्यक्ष पंडित भवनाथ झा कहते हैं कि चौठचन्द्र मिथिला की विशिष्ट पर्व है. अन्य इलाकों में यह देखने को नहीं मिलता है. इस पर्व में पकवान बनाने से अधिक हर किसी को पकवान उपलब्ध हो इसकी व्यवस्था की जाती है. सन्तान की उन्नति और कलंक से बचाव की कामना से इस दिन चन्द्रमा की आराधना की जाती है. भवनाथ झा कहते हैं कि 16वीं सदी से पहले चंद्र पूजन की मिथिला में भी परंपरा नहीं दिखती है. चौठ चंद्र का सबसे पुराना उल्लेख ब्रह्मपुराणक में मिलता है. वहां उल्लेखित कथानुसार श्री कृष्णा को स्मयंतक मणि चोरी करने का कलंक लगा था, यह मणि प्रसेन ने चुराई थी. एक सिंह ने प्रसेन को मार दिया था फिर जामवंत ने उस सिंह का वध कर वह मणि हासिल किया था.

14वीं सदी में भी नहीं था प्रचलन

इसके बाद श्री कृष्णा ने जामवंत को युद्ध में पराजित कर इस मणि को हासिल कर कलंकमुक्त हुए थे. इस आधार पर यह मान्यता रही कि चौठ का चंद्र देखने के कारण जब स्वयं नारायण पर कलंक लग गया, तो मनुष्य कैसे कलंक से बच पायेगा. 14वीं शती में चण्डेश्वर उपाध्याय लिखिल ग्रन्थ “कृत्यरत्नाकर” में भी चौठचंद्र का उल्लेख मिलता है. उसमें भी वर्णित है कि भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चन्द्रमा का दर्शन करने से मिथ्या कलंक लगता है. उस दिन चन्द्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए. कमोवेश यही मान्यता आज भी पूरे भारत में है, लेकिन मिथिला में लोग चंद्र दर्शन और चंद्र पूजा करते हैं.

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