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Bihar Politics: अमित शाह से मिलने के बाद एनडीए में शामिल हुए मांझी, बिहार में कितना बदलेगा राजनीतिक समीकरण ?

Bihar Politics उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी को 'वाई' और 'जेड' श्रेणी की सुरक्षा प्रदान कर अपने साथ जोड़ा. इसके बाद आरसीपी सिंह को बीजेपी की सदस्यता दिला दी और अब जीतन राम मांझी को अपने साथ जोड़ लिया.

राजेश कुमार ओझा

नीतीश सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी बुधवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिले. करीब 45 मिनट तक दोनों नेताओं के बीच हुई बातचीत के तत्काल बाद जीतन राम मांझी ने एनडीए में शामिल होने की घोषणा कर दी. हालांकि,सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर उन्होंने कुछ भी नहीं बोला. लेकिन, इस गठबंधन के बाद बिहार में सियासी समीकरण बदल गए. मतलब महागठबंधन के कुनबे की एक पार्टी कम हो गई और एनडीए कुनबे में एक नई पार्टी जुड़ गई. अब गठबंधन के लिहाज से बिहार में दोनों घटक बराबरी पर हो गए. अभी तक गठबंधन के बंधन में बंधे राजनीतिक दल महागठबंधन में ज्याद थे. लेकिन, जीतन राम मांझी के गठबंधन से अलग होते ही दोनों बराबर हो गए.

दरअसल, नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ने पर वोटों के हिसाब से एनडीए को जो 15 प्रतिशत से अधिक वोटों का नुकसान हुआ था. बीजेपी छोटे – छोटे दलों को जोड़कर उसे अब पूरा करना चाह रही है. अपने इसी अभियान के तहत बीजेपी ने उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी को ‘वाई’ और ‘जेड’ श्रेणी की सुरक्षा प्रदान कर अपने साथ जोड़ा है. इसके बाद आरसीपी सिंह को और अब जीतन राम मांझी को अपने साथ जोड़ लिया. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस प्रकार नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ने पर बीजेपी को जो वोटों के हिसाब से 15 प्रतिशत से अधिक वोटों का नुकसान हुआ था. बीजेपी इन सभी को अपने साथ जोड़कर पूरा करने का प्रयास कर रही है. बताते चलें कि 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू को 15.39 प्रतिशत वोट मिले थे.

दलित और ओबीसी वोटर पर एनडीए की नजर

सीनियर पत्रकार राजीव मिश्रा कहते हैं कि मांझी को बीजेपी और बीजेपी को मांझी की जरूरत थी. इस लिहाज से दोनों का गठबंधन हुआ. प्रदेश में 16 फीसदी दलित वोटर हैं. इनमें पांच फीसदी वोटर पासवान हैं. इस वोट बैंक पर अब तक रामविलास पासवान का कब्जा हुआ करता था, लेकिन उनकी मौत के बाद उनके बेटे चिराग पासवान और भाई पशुपति पारस इसपर अपना दावा करते हैं. बहरहाल ये दोनों बीजेपी के साथ हैं. इसलिए यह मान कर चला जा रहा है कि बीजेपी को इसका लाभ मिलेगा.

बाकी बचे करीब 11 फीसदी वोट बैंक में महादलित जातियां (पासी, रविदास, धोबी, चमार, राजवंशी, मुसहर, डोम आदि) हैं. बीजेपी ने जीतन राम मांझी को अपने साथ जोड़कर इस वोटबैंक में भी सेंधमारी का प्रयास किया है. बिहार के 26 प्रतिशत ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए बीजेपी ने नीतीश कुमार के परंपरागत वोट बैंक कुर्मी और कुशवाहा को अपने साथ लाने की पहल की है. अपने तय प्लान के तहत सबसे पहले उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ मिलाया और फिर सम्राट चौधरी को अपने दल का प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी. प्रदेश में कुर्मी और कुशवाहा 8 फीसदी के आस पास हैं. वैसे ओबीसी में वोटबैंक के लिहाज से सबसे बड़ी हिस्सेदारी यादवों की हैं. ये करीब 14 फीसदी हैं. यह बोटबैंक फिलहाल लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी के साथ है.

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