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बिहार में मां सीता ने दी थी अग्निपरीक्षा, पिंडदान करने गया आए श्रीराम, इन जगहों से जानिए क्या है नाता..

माता सीता और प्रभु राम का बिहार से पौराणिक संबंध रहा है. 22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में रामलल्ला का प्राण प्रतिष्ठा होना है. पूरा हिंदुस्तान इन दिनों राममय है और बिहार में भी इसका रंग चढ़ा हुआ है. जानिए बिहार के किन जगहाें से रहा है प्रभु का नाता..

बिहार का इतिहास गौरवशाली रहा है. यहां कदम-कदम पर आपको धर्म, शिक्षा, स्मास्थ्य, गणित और विज्ञान से जुड़े ढेर सारे पौराणिक प्रमाण मिल जायेंगे. बिहार में प्रभु श्रीराम और जनक नंदिनी माता सीता के साथ पवन पुत्र हनुमान से जुड़ी कई जगहें हैं, जिनके बारे में आप कम हीं जानते होंगे. अयोध्या के भव्य राममंदिर में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरा देश उत्साहित है. जानिए श्रीराम और माता सीता का जुड़ाव बिहार से कैसे रहा है…

1. मुंगेर : माता सीता ने यहां दी थी अग्निपरीक्षा

बिहार के मुंगेर में जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर पूरब सीताकुंड है. माघ के महीने में बड़ी संख्या में यहां लोग इसी कुंड में डुबकी लगाने पहुंचते हैं. त्रेता युग से जुड़ी कथा के अनुसार माता सीता ने लंका से लौटकर आने के बाद इसी कुंड में अग्नि परीक्षा दी थी. माता सीता इस अग्निपरीक्षा में सफल रही थीं और उन्होंने यहां की अग्नि को शांत करने के लिए तीन बुंद पसीने का इस्तेमाल किया था. इस कुंड का जल सालों भर गर्म रहता है. साथ ही चार और कुंड हैं, जिसे राम कुंड, लक्ष्मण कुंड, भरत कुंड और सीता कुंड के नाम से लोग जानते हैं. इन कुंड़ों का जल एकदम शीतल रहता है. पौराणिक कथाओं की मानें तो सीता की अग्निपरीक्षा के बाद चारो भाइयों ने अपने बाण से इन कुंडों का निर्माण किया.

2. दरभंगा : श्री राम ने अपने चरण रज से देवी अहल्या का किया था उद्धार

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का मिथिला से गहरा संबंध है. पति के शाप से शिला (पत्थर) बनी अहल्या का चरण रज से उद्धार करने के कारण इस स्थान का विशेष महत्व है. मिथिला के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में शुमार जाले प्रखंड के अहियारी गांव अवस्थित अहल्यास्थान में देशभर के श्रद्धालु आते हैं. दूसरे देशों से भी सालों भर रामभक्तों का आगमन होता रहता है. शास्त्रों के अनुसार राक्षसी ताड़का का वध करने के बाद महर्षि विश्वामित्र के साथ जनकपुर जाने के क्रम में श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ अहल्यास्थान पहुंचे थे. वहां गुरु की आज्ञा से न्यायशास्त्र के प्रणेता महर्षि गौतम की कुटिया में पति के शाप से शिला बनी पतिव्रता नारी अहल्या का अपने चरण रज से उद्धार किया था. तीर्थ स्थल अहल्यास्थान में रामनवमी पर एक पखवाड़ा तक लगने वाले मेले में हजारों श्रद्धालु आते हैं. दर्शन-पूजन कर बैंगन का भार चढ़ाते हैं. मान्यता है कि बैंगन का भार चढ़ाने से मस्सा नामक रोग ठीक हो जाता है. न्यास समिति के अध्यक्ष बालेश्वर ठाकुर बताते हैं कि वैसे तो सालभर यहां श्रद्धालुओं का आगमन होता रहता है, लेकिन विवाहपंचमी पर सीता-राम विवाह की जीवंत प्रस्तुति देखने के लिए भी काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

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3. लखीसराय में श्रृंगी ऋृषि का आश्रम

श्रृंगी ऋषि का आश्रम बिहार प्रांत के लखीसराय जिले के सूर्यगढ़ा प्रखंड में स्थित है. जिला मुख्यालय से इस स्थान की दूरी लगभग 22 किलोमीटर है. बता दें कि श्रृंगी ऋषि ने राजा दशरथ के आग्रह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ कराया था. बता दें कि यहां श्रृंगी ऋषि आश्रम है, जहां संतान के इच्छुक दंपती यहां आकर मन्नत मांगते हैं. यहां जलकुंड भी है और जहां लोग स्नान करते हैं और यहां के वृक्षमूल पर दूध चढ़ाते हैं.

4. बक्सर: यहां राम और लक्ष्मण ने शिक्षा पायी थी

बिहार के बक्सर जिले में स्थित महर्षि विश्वामित्र के आश्रम में राम और लक्ष्मण ने विशेष शिक्षा ग्रहण की थी. यहीं उन्होंने ताड़का और सुबाहु समेत कई राक्षसों का वध भी किया था.

5. विवाह के बाद विदाई के दौरान पटना में सीता ने किया विश्राम

पटना के बक्सी मुहल्ला में माता सीता की अति प्राचीन मंदिर और जानकी घाट है. यहां माता सीता की अकेली मूर्ति है. देश में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां सीता जी की अकेली मूर्ति ही है. कहा जाता है कि यह वहीं स्थान है, जहां जनक नंदनी पुत्री सीता जी, श्री राम से विवाह के बाद महाराज दशरथ एवं अयोध्यावासियों के साथ ससुराल (अयोध्या) जाते वक्त इसी स्थान पर उतरी थीं और ऐसा माना जाता है कि माता सीता की पालकी (डोला) इसी स्थान पर रखा गया था. उन्होंने अयोध्या जाते वक्त कुछ देर के लिए विश्राम किया था.

6. मधेपुरा के सिंहेश्वर में राजा दशरथ ने किया था यज्ञ

वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब राजा दशरथ की रानियों को पुत्ररत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी और राजा दुखी रहने लगे थे, तब कुलगुरु वशिष्ठ ने उन्हें पुत्र कामेष्टि यज्ञ कराने की सलाह दी. जब रानियों ने उन्हें यज्ञ का आयोजन कराने को कहा. जिसपर गुरु वशिष्ठ ने उन्हें कहा कि यह यज्ञ अथर्ववेद के पूर्ण ज्ञाता ऋषि श्रृंगी मुनि के द्वारा ही करा सकते हैं. किंवदंती व धार्मिक ग्रंथों के आधार पर इतिहासकारों का मानना है कि ऋषि श्रृंगी कई हुए. इनमें से एक रामायण काल में दो दूसरे महाभारत काल में चर्चित हुए. एक ऋषि श्रृंगी बिहार के लखीसराय में भी रहे. वे तंत्र के महान ज्ञाता थे. रामायणकालीन ऋषि श्रृंगी ने इस यज्ञ के लिए मधेपुरा के सिंहेश्वर को ही चुना था. राजा दशरथ अयोध्या से नंगे पांव सिंहेश्वर स्थान आये थे. ऋंगी ऋषि द्वारा पूजित तब के ऋंगेश्वर मंदिर (सिंहेश्वर स्थान) से कुछ ही दूरी पर सतोखर नाम का यह स्थान आज भी विद्यमान है.

7. पिता का पिंडदान करने गया आए श्रीराम, लक्ष्मण व सीता

त्रेतायुग में वनवास से लौटने के बाद भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता व छोटे भाई लक्ष्मण के साथ अपने पिता दशरथ का पिंडदान करने गयाजी पहुंचे थे. पुराणों में वर्णित है कि राम पुष्पक विमान से फल्गु नदी के पूर्वी छोर पर नागकूट पर्वत पर उतरे थे. श्रीराम व उनके भाई लक्ष्मण ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया. राम ने यहां रामशिला वेदी पर पातालेश्वर महादेव की स्थापना भी की थी. पहाड़ के नीचे रामकुंड सरोवर में श्रीराम ने स्नान कर अपने पिता को जल तर्पण किया था.

8. सीतामढ़ी की धरती में राजा जनक को मिली थीं सीता 

मां जानकी की जन्मस्थली पुनौरा धाम (सीतामढ़ी) को माना जाता है. यहां मां जानकी की मंदिर भी है. सीतामढ़ी के पुनौरा गांव के इस जानकी मंदिर को अब और भव्य बनाया जाएगा. यहां अयोध्या राम मंदिर की तरह ही जानकी धाम बनाने की योजना है. ऐसा माना जाता है कि इसी जगह पर जमीन से सीता राजा जनक को मिली थीं. राजा जनक को हल चलाने की सलाह एक पुरोहित ने भीषण अकाल के दौरान दी थी. इसी क्रम में उन्हें जमीन के अंदर मिट्टी के एक पात्र में सीता मिली थीं. पुनौरा के आसपास माता सीता व राजा जनक से जुड़े कई तीर्थ स्थल भी हैं. जिस शिव मंदिर में राजा जनक ने पूजा की थी उस मंदिर को हलेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है.

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