Durga Puja: रामायण काल का है मधुबनी स्थित मां भुवनेश्वरी मंदिर, वैदिक नहीं तंत्र विधि से होती यहां पूजा

बेनीपट्टी प्रखंड कार्यालय से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अकौर गांव में अंकुरित भगवती मां भुवनेश्वरी तंत्र साधना की उपज मानी जाती है. बताया जा रहा है कि रामायण काल खंड में ही यहां भगवती अंकुरित होकर अवतरित हुई थी. जो अब सिद्धपीठ में तब्दील हो गया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 28, 2022 1:24 PM

मधुबनी. बेनीपट्टी प्रखंड कार्यालय से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अकौर गांव में अंकुरित भगवती मां भुवनेश्वरी तंत्र साधना की उपज मानी जाती है. बताया जा रहा है कि रामायण काल खंड में ही यहां भगवती अंकुरित होकर अवतरित हुई थी. जो अब सिद्धपीठ में तब्दील हो गया है.

सबको सिद्धि प्रदान करती हैं

लोग बताते हैं कि शारदीय नवरात्र में अब भी तंत्र साधना के लिए भारत और नेपाल सहित देश के अन्य राज्यों से श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है. अंकुरित भगवती सबको सिद्धि प्रदान करती है. श्रद्धालु मनोवांक्षित फल प्राप्त कर अपना जीवन धन्य करते हैं.

चार महादेव स्थान से है समान दूरी

इस मंदिर से जितनी दूरी पर कल्याणेश्वर स्थान है उतनी ही दूरी डोकहर महादेव मंदिर, कपिलेश्वर स्थान महादेव मंदिर और गिरिजास्थान मंदीर भी स्थित है. कुल मिलाकर चारों दिशाओं में महादेव मंदिर और बीच में भगवती भुवनेश्वरी मां विराजमान हैं.

सात पीढियों से कर रहे हैं भगवती की पूजा

नियमित रूप से पूजा अर्चना के लिये तीन पुजारी पंडित अशोक झा, उग्रेश झा और नरेश झा नियुक्त हैं. पंडित अशोक झा बताते हैं कि वे आठवें पुश्त के रुप में इस मंदिर में बतौर पुजारी नियुक्त हैं. इससे पहले इनकी सात पीढ़ी इसी मंदिर में भगवती की पूजा अर्चना करते थे.

यहां घना जंगल हुआ करता था

लोग बताते हैं कि पूर्व यहां घना जंगल हुआ करता था. इसी घने जंगल में ऋषि मुनि तंत्र साधना किया करते थे. तंत्र साधना से सिद्ध होने के कारण यहां भगवती का अवतरण हुआ. पहले मंदिर की जगह एक कुटिया थी, जिसे बाद में मिट्टी की दीवार से घेरकर मंदिर का आकार दिया गया.

90 के दशक में दुर्गा पूजा समिति बनी

वर्ष 2001 में मंदिर का निर्माण स्थानीय लोगों के सहयोग से किया गया था. 90 के दशक में दुर्गा पूजा समिति बनायी गयी. मंदिर परिसर में ही एक धर्मशाला भी है. बिजली, पंखा और चापाकल की भी व्यवस्था मंदिर परिसर में है. मंदिर परिसर में ही एक स्थायी मंच बनाया गया है. जिसपर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता है.

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