शिवेंद्र कुमार शर्मा, कमतौल (कमतौल). कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. बस, उस काम को करने की इच्छा शक्ति होनी चाहिए. इस बात का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं बेलबाड़ा निवासी अनिल राय. अनिल 1994 में पीजी करने के बाद अपना भविष्य संवारना चाहते थे. नौकरी पाकर अपने माता-पिता का नाम रोशन करना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया, बावजूद वे निराश नहीं हुए.
परिवार के पालन-पोषण के लिए दिल्ली जाकर बैग-सूटकेस का कारोबार शुरू कर दिया. इसके बाद होटल के कारोबार में भी खुद को आजमाया. लॉकडाउन में होटल का कारोबार मंदा होने पर वापस घर आ गये. गांव में ही पॉल्ट्री फॉर्म खोलकर अपना व्यवसाय शुरू कर दिया. फिलहाल ग्रामीणों के ताने को अनसुना कर आर्थिक समृद्धि की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. साथ ही, आत्मनिर्भर बनने की मिसाल पेश कर रहे हैं.
अनिल ने बताया कि लनामिविवि से पीजी की पढ़ाई करने के बाद वह नौकरी की तलाश में जुट गये. संघर्ष के बाद जब नौकरी नहीं मिली तो 31 अगस्त 1994 को दिल्ली चले आये. परिवार का पालन-पोषण व घर का किराया निकालने के लिए वहां बैग-सूटकेस का कारोबार करने लगा. करीब दस वर्षों तक इस कारोबार से जुड़ा रहा. बाद में होटल खोल लिया. इससे अच्छी आमदनी होने लगी तो पत्नी व बच्चों को वहीं साथ रखने लगा. बच्चों का नामांकन भी वहीं निजी स्कूल में करा दिया. कोरोना के कारण लॉकडाउन लग गया. होटल का व्यवसाय ठप हो गया. काफी दिनों तक कारोबार शुरू होने की प्रतीक्षा करने के पश्चात घर चले आये.
यहां कोई काम नहीं था. घर की जिम्मेदारियों को उठाने के लिए यहीं पर अपना कोई काम शुरू करने का विचार बनाया. काफी विचार के बाद मार्च 21 में पॉल्ट्री फॉर्म खोलने का मन बना इसके लिए आवश्यक तैयारी शुरू कर दी. मई में तैयारी पूरी कर जून महीने में विधिवत काम शुरू कर दिया. दिसंबर महीने तक तीन लॉट की बिक्री कर चुके हैं. इसमें अच्छी आमदनी हुई है. उन्होंने बताया कि पॉल्ट्री फॉर्म के साथ-साथ बकरी पालन करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है. पॉल्ट्री फॉर्म के समीप ही फिलहाल पांच ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरी का पालन शुरू किया है. इसे भी आगे बढ़ाने की योजना है.
अनिल ने बताया कि शाकाहारी होने के कारण पॉल्ट्री का व्यवसाय शुरू करने पर गांव में तरह-तरह की चर्चा होने लगी. कई लोगों ने ताने भी मारे, कई लोग कुछ दूसरा कारोबार करने की सलाह दी. उन सबकी बातों का परवाह नहीं करते हुए पॉल्ट्री फॉर्म खोल लिया. एक-डेढ़ महीने तक जान-पहचान के लोगों ने सामने आने पर भी नजर मिलाने से परहेज करने लगे. यहां तक कि दुआ-सलाम करना भी बंद कर दिया, परंतु अपने फैसले पर अडिग रहे और रहेंगे. उन्होंने बताया कि सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि बच्चों के साथ गांव में रहने पर उम्र दराज मां की देखभाल भी हो पाती है और खेतीबाड़ी भी कर लेते हैं.