सारण जिला के दिघवारा खंड के शक्तिपीठ स्थल मां अंबिका भवानी मंदिर आमी में शारदीय नवरात्र भर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है. राज्य के विभिन्न हिस्सों से मां अंबिका भवानी के दर्शन के लिए भक्त उनके दरबार में पहुंचते हैं और अपनी मुरादों के पूर्ण होने की कामना करते हैं. मां अंबिका भवानी मंदिर में मां पिंडी रूप में विराजमान है. राजा दक्ष कालीन इस मंदिर में मिट्टी की पिंडी के रूप में मां की आराधना होती है, लिहाजा इस पर जल अर्पण की मनाही है. गंगा तट पर स्थित इस मंदिर का अपना पौराणिक इतिहास है.
मन्नत पूरी होने पर मां के दरबार में आकर चुनरी चढ़ाते हैं श्रद्धालु
मां अंबिका की महिमा अपरंपार है एवं श्रद्धालुओं की इस मंदिर में गहरी आस्था है, लिहाजा श्रद्धालु अपनी मन्नतों के साथ मां अंबिका के दरबार में पहुंचते हैं और विधिवत तरीके से पूजा-अर्चना कर अपनी मन्नतों के पूर्ण होने की कामना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि जिन श्रद्धालुओं की मन्नत पूर्ण होती है, उन लोगों को एक बार फिर मां के दरबार में पहुंचकर चुनरी चढ़ाते हुए मां के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करनी होती है. कहते हैं कि इस दरबार में मांगी हर मुराद पूरी होती है, लिहाजा मंदिर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि होते जा रही है.
आभूषणों से सजी रहती है मां की पिंडी
आमी पहुंचने वाले बहुत कम श्रद्धालु यह जानते हैं कि नवरात्र में दिन की तरह रात में भी मां अंबिका का दरबार सजता है, जिसमें आस्थावान श्रद्धालु अपनी उपस्थिति दर्ज कर मां के श्रृंगार रूप का दर्शन कर भावविभोर होते हैं. रात्रि शृंगार के समय भक्तों द्वारा अब तक मां को अर्पित हर आभूषण पिंडी पर चढ़ाये जाते हैं. दिन में मां का पिंडी रूप सामान्य चुनरी से सजा होता है. वहीं नवरात्र में प्रतिदिन रात्रि में विशेष आरती होती है. इस आरती में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है. हर घर से युवतियां व महिलाएं अपने हाथों में आस्था का दीप लिए मंदिर पहुंचती है और पुरुष व महिलाएं आरती में हिस्सा लेने के बाद अपने घर को लौट जाते हैं. रात्रि शृंगार के समय शीशे की नक्काशी के बीच स्थित गर्भगृह के अंदर मां के पिंडी रूप की सुंदरता देखते ही बनती है. हर कोई मां के पिंडी के आकर्षक स्वरूप को देखकर आस्था व भक्ति में डूब जाता है.
विशेष आरती से होता है मां अंबिका का पूजन
नवरात्र के हर दिन शाम में मंदिर परिसर को धोने के बाद गर्भगृह के पट को बंद कर पुजारियों द्वारा आस्था भाव से विभिन्न सामग्रियों से मां का शृंगार किया जाता है. हर दिन मां का शृंगार रूप अलग-अलग होता है और विभिन्न रंगों की साड़ियों व चुनरियों के अलावा रंग बिरंगे फूलों से मां के पिंडी रूप को सजाया जाता है. पुजारियों की मानें तो दो से ढाई घंटे में मां का श्रृंगार संपन्न होता है फिर गर्भगृह का पट खुलने के बाद दर्जनों पुजारियों द्वारा मां अंबिका की विधिवत आरती होती है. जानकार बताते हैं कि नवरात्र के दौरान मंदिर के गर्भगृह के अंदर दर्जनों पुजारियों द्वारा एक विशेष आरती से मां अंबिका की स्तुति की जाती है. इसे आमी के पुजारियों के पूर्वजों द्वारा तैयार किया गया है. इस आरती का उद्घोष करना हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाता है. आरती का हर शब्द जटिल है जिस कारण हर कोई इस आरती को गाने में सफल नहीं हो पता है. लंबे अनुभव के बाद ही पुजारी आरती करने में सफल होते हैं. उम्रदराज पुजारियों ने ही मां की आरती गायन में दक्षता हासिल की है.
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आमी मंदिर दिघवारा प्रखंड के रामपुर आमी पंचायत में स्थित है. इस पंचायत की खासियत यह भी है कि यहां मां अंबिका पिंडी रूप में विराजमान हैं, लिहाजा इस पूरे पंचायत में दुर्गा पूजा के दौरान कहीं भी मां दुर्गा की मिट्टी की प्रतिमा स्थापित नहीं की जाती है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. लोगों का मानना है कि उनके पूर्वजों द्वारा ही ऐसा किया जा रहा है. जब मां साक्षात यहां विराजमान हैं, तो फिर मूर्ति पूजा का कोई विशेष महत्व नहीं रह जाता है.
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