मधेपुरा फिर बनेगा यादवों का बैटल ग्राउंड, सुपौल में अगड़ों और अररिया में पिछड़ों के हाथ है जीत की चाबी

बिहार में लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण की तीन सीटें राजद के लिए प्रतिष्ठापूर्ण है. जानिए कौन सी हैं ये सीटें और क्या हैं यहां समीकरण

By Anand Shekhar | April 28, 2024 6:15 AM

राजदेव पांडेय,पटना

Loksabha Election: तीसरा चरण महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राजद के लिए प्रतिष्ठापूर्ण है, क्योंकि मधेपुरा राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की सबसे पसंदीदा और चुनौतीपूर्ण राजनीतिक जमीन रही है. अररिया सीमांचल के गांधी के कहे वाले तस्लीमुद्दीन की बनायी सियासी जमीन है. उनकी नयी पीढ़ी तमाम विरोधाभाषों के बीच राजद के साथ है. वहीं सुपौल राजद के लिए इसलिए चुनौतीपूर्ण है क्योंकि यहां अभी तक राजद एक बार भी चुनाव नहीं जीता है.

तीसरे चरण की  पांच सीटों में तीन सुपौल, अररिया और मधेपुरा में महागठबंधन की ओर से राजद चुनाव मैदान में है. इन तीनों सीटों की सियासी तासीर अलग-अलग है, लेकिन यहां पार्टी को करीब-करीब एक जैसी अंदरूनी चुनौतियों मसलन भिरतघात से जूझना पड़ रहा  है. राजद ने अपने थिंक टैंक को आज से इन्हीं सीटों पर झोंक दिया है. जिसकी सीधी कमान राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव ने संभाल रखी है.

मधेपुरा : लालू प्रसाद की प्रतिष्ठा है दांव पर

इस संसदीय क्षेत्र में यादव वोट बैंक निर्णायक हैं. मतदाता के लिहाज से  इसी क्षेत्र में यादवों कई सर्वाधिक संख्या है. सियासी सूत्रों के मुताबिक यहां के राजद प्रत्याशी प्रो कुमार चंद्रदीप के सामने सबसे बड़ी चुनौती अंदरूनी है. पार्टी कार्यकर्ताओं को मैनेज करने पार्टी के रणनीतिकारों को लगाया गया है. राजद इस सीट पर किसी भी कीमत पर कब्जा करना चाहता है. यह देखते हुए कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की पसंदीदा संसदीय क्षेत्र रहा है. इस सीट पर अपने सियासी मित्र और पहले प्रतिस्पर्धी रहे दिवंगत शरद यादव से कई बार सियासी जंग लड़ी.

वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में  लालू प्रसाद ने जनता दल प्रत्याशी के रूप में उतरे शरद यादव को हराया था. इसके बाद शरद यादव ने 1999 के चुनाव में लालू प्रसाद को पटखनी दी. 2004 के लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद ने एक बार फिर शरद यादव को चुनाव हरा कर हिसाब चुकता किया. इसके बाद दिवंगत शरद यादव ने 2009 में  इसी सीट पर राजद प्रत्याशी प्रो रविंद्र चरण यादव को हराया था. 2014 में इसी सीट पर राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव राजद के सिंबल पर चुनाव जीत चुके हैं. यहां राजद प्रत्याशी चंद्रदीप के सामने एक अन्य सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे पहली बार कोई चुनाव लड़ रहे हैं.

अररिया में तस्लीमुद्दीन के बेटे हैं मैदान में

अररिया लोकसभा सीट सीमांचल के गांधी कहे जाने वाले तस्लीमुद्दीन की गढ़ी सीट है. उनके छोटे बेटे शाहनवाज आलम राजद की तरफ से चुनाव मैदान में हैं. सियासी सूत्र बताते हैं कि इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने बड़े भाई सरफराज आलम को मनाने की होगी. सरफराज भी इस सीट के लिए प्रबल दावेदार थे. यादवों की पसंद सरफराज  आलम बताये जाते हैं. हालांकि लालू प्रसाद यहां स्थिति संभालने में लगे हैं.

हिंदू हो या मुस्लिम वर्ग इनकी  अनुसूचित, पिछड़ा और अति पिछड़ा आबादी ही निर्णायक मानी जाती है. मुसलमानों  की आबादी में कुल्हैया और सैखड़ा की आबादी अररिया में अधिक है. इसी तरह हिंदुओं में पिछड़ा और अति पिछड़ा जाति ही निर्णायक मानी जाती हैं जो इनके समीकरण साध लेगा, वह बाजी मार ले जायेगा.

सुपौल : सामान्य बहुल सीट पर पिछड़ों के बीच है जंग

सुपौल लोकसभा की तासीर है कि अधिकतर वोटर सामान्य वर्ग हैं, लेकिन यहां के महागठबंधन प्रत्याशी राजद की तरफ से चंद्रहास चौपाल हैं. अनुसूचित जाति के हैं. इनके विरोधी प्रत्याशी भी अति पिछड़ा हैं. इस तरह सामान्य वर्ग के साथ जिस भी प्रत्याशी या दल ने समीकरण बिठा लिये, वह बाजी मार ले जायेगा. राजद को इस सीट पर अपनी जीत का इंतजार है.

खगड़िया : सीपीआइ (एम) और लोजपा (रा) के बीच मुकाबला

खगड़िया लोकसभा क्षेत्र देश की चुनावी राजनीति में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है. पिछले चुनाव में लोजपा के प्रत्याशी चौधरी महबूब अली कैसर ने 2,48,570 मतों के अंतर से जीत दर्ज की  थी. उन्होंने मुकेश सहनी को हराया था, जिन्हें 2,61,623 वोट मिले थे. इस बार का चुनाव भी काफी दिलचस्प होने वाला है. इस सीट से इस बार सीपीआइ (एम) से संजय कुमार और लोजपा (रा) से राजेश वर्मा प्रमुख उम्मीदवार हैं. खगड़िया लोकसभा क्षेत्र में यादव, मुस्लिम, निषाद, कुर्मी, कुशवाहा, सवर्ण मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. खगड़िया से वाम दल के उम्मीदवार पहले भी भाग्य आजमा चुके हैं, हालांकि उन्हें जीत कभी नहीं मिली.

यहां सीपीआइ (एम) का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 1984 के लोकसभा चुनाव में रहा. जब इसके उम्मीदवार प्रसिद्ध ट्रेड यूनियन नेता योगेश्वर गोप एक लाख 16 हजार 529 मत लाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. उन्हें कांग्रेस के चंद्रशेखर प्रसाद वर्मा ने हराया था. उधर, पिछले दो चुनावों (2019 और 2014) से यह सीट लोजपा के खाते में जा रही है. 2009 में यहां से जदयू के दिनेश चंद्र यादव जीते थे.

झंझारपुर में त्रिकोणीय लड़ाई

झंझारपुर लोकसभा सीट से इस बार जदयू ने अपने वर्तमान सांसद रामप्रीत मंडल पर ही विश्वास जताया है. महागठबंधन में यह सीट वीआइपी के खाते में गयी है. वीआइपी ने यहां से संजय महासेठ को उम्मीदवार बनाया है. इन दोनों के अलावा बसपा के टिकट पर मैदान में उतरे गुलाब यादव चुनाव को रोचक बन रहे हैं.

मालूम हो कि दिग्गज नेता व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र भी यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. हरियाणा के पूर्व राज्यपाल धनिक लाल मंडल, देवेंद्र प्रसाद यादव, गौरीशंकर राजहंस, मंगनी लाल मंडल सरीखे दिग्गज नेता भी यहां से जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं. पिछली बार जनता दल यूनाइटेड के रामप्रीत मंडल ने राजद के गुलाब यादव को हराया था. गुलाब यादव के मैदान में उतरने से मुकाबला अब त्रिकोणीय हो गया है.

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