महादलितों के लिए जमीन खरीद घोटाला में सीओ पर मुकदमा
हरैली में महादलित परिवार को उपलब्ध करानी थी जमीन वर्तमान अंचलाधिकारी की शिकायत पर उदाकिशुनगंज थाने में दर्ज हुई एफआइआर उदाकिशुनगंज : मधेपुरा जिले के उदाकिशुनगंज प्रखंड अंतर्गत हरैली में महादलित परिवार को उपलब्ध कराने के लिए विवादित जमीन पर ततकालीन सीओ सुरेश कुमार द्वारा सरकारी राशि के दुरुपयोग का मामला प्रकाश में आया है. […]
हरैली में महादलित परिवार को उपलब्ध करानी थी जमीन
वर्तमान अंचलाधिकारी की शिकायत पर उदाकिशुनगंज थाने में दर्ज हुई एफआइआर
उदाकिशुनगंज : मधेपुरा जिले के उदाकिशुनगंज प्रखंड अंतर्गत हरैली में महादलित परिवार को उपलब्ध कराने के लिए विवादित जमीन पर ततकालीन सीओ सुरेश कुमार द्वारा सरकारी राशि के दुरुपयोग का मामला प्रकाश में आया है. मामले में राजस्व व भूमि सुधार विभाग बिहार, पटना व समाहार, मधेपुरा के आदेश पर उदाकिशुनगंज के वर्तमान अंचलाधिकारी उत्पल हिमवान द्वारा उदाकिशुनगंज थाने में आवेदन देकर मामला दर्ज करवाया गया है. इसका कांड संख्या 96/16 दिनांक 22.07.16 है.
ज्ञात हो कि अंचलाधिकारी सुरेश कुमार की नियुक्ति 04 अप्रैल 2010 को उदाकिशुनगंज में हुई थी,
जो 08 सितंबर 2012 तक उदाकिशुनगंज में कार्यरत रहे. इस दौरान उदाकिशुनगंज, हरैली के भूधारी शंभू साहा की पत्नी कुमकुम देवी से 75 डिसमल जमीन महादलित परिवार को देने के लिए सरकारी राशि चार लाख पचास हजार रुपये में खरीद की गयी. इसका मौजा हरैली, खाता संख्या 34, खेसरा 753, रकवा 75 डिसमल है. उक्त वर्णित जमीन विवाद ग्रस्त होने के कारण क्रय की गई प्रश्नगत जमीन पर लाभार्थियों को दखल-कब्जा नहीं दिलाया गया. उक्त विवाद ग्रस्त जमीन का क्रय किये जाने के कारण उसे सरकारी राशि का दुरुपयोग माना गया.
सीओ सुरेश कुमार द्वारा महादलित जमीन क्रय नीति के तहत चार लाख पचास हजार रुपये जमीन मालिक को चेक के माध्यम से भुगतान किया गया था. मामले में प्रधान सचिव, राजस्व व भूमि सुधार विभाग, बिहार, पटना के आदेश ज्ञापांक 583 (निको) रा दिनांक 27 मई 2016 एवं समाहार मधेपुरा के आदेश पत्रांक 469-2 दिनांक 30 जून 2016 को सीओ पर कार्रवाई करने का आदेश जारी किया गया है. पत्रांक के अनुसार सुरेश कुमार तत्कालीन अंचल अधिकारी, उदाकिशुनगंज के विरुद्ध सरकार के वितीय छति पहुंचाने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश उदाकिशुनगंज के र्वामान सीओ उत्पल हिमवान को दिया गया था.
क्या है मामला
सराकर के आदेशानुसार महादलित परिवार को सरकारी राशि से जमीन की खरीदकर प्रति व्यक्ति तीन डीसमल जमीन उपलब्ध करायी जानी थी. जिसके आलोक में 2012 में तत्कालीन सीओ सुरेश कुमार द्वारा वास भूमि रहित भूधारी हरैली निवासी कुमकुम देवी से पच्चीस लाभूकों को बसाने के लिए 75 डिसमल जमीन की खरीद की गई थी. जिसके लिए सरकारी राशि चार लाख पचास हजार रुपये चेक के माध्यम से कुमकुम देवी को दिया गया था. सीओ सुरेश कुमार के अनुसार क्रय की गई भूमि पर दखल-कब्जा दिलाने के समय स्थल पर उमेश प्रसाद साहा द्वारा दाखिल-खारिज पुननिरीक्षण वाद संख्या 12/2001 उमेश साहा बनाम् कुमकुम देवी दायर किया गया था.
जो समाहर्ता मधेपुरा के डीवी नंबर 320 दिनांक 12 मार्च 2012 के द्वारा वाद में उमेश प्रसाद साहा का साक्ष्य संदेहात्मक बताते हुए सिविल न्यायालय ने अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया तथा वाद में आगे की कार्रवाई समाप्त कर दी गई. जबकि उपस्थापना पदाधिकारी अपने पत्रांक 1568-2 दिनांक 28 मई 2015 के द्वारा प्रतिवेदित किया है कि र्वामान में कोई भी लाभुक क्रय की गयी जमीन पर नहीं बसे हुए हैं. विवादित जमीन पर व्यवहार न्यायालय मधेपुरा में स्वतव वाद संख्या 323/2010 लंबित दिखाया गया.
कैसे हुई कार्रवाई
अपर समाहर्ता मधेपुरा के ज्ञापांक 352-2/रा0 दिनांक 25 जुलाई 2011 द्वारा सुरेश कुमार को आदेश दिया गया कि वास भूमि रहित महादलित परिवारों को उक्त क्रय की गई भूमि पर दखल दिलाने की कार्रवाई कराने को कहा गया था. क्रय की गयी जमीन पर पूरे व्यय की गई राशि को एक मुस्त वसूली करने का आदेश दिया गया था. फिर उसी विक्रेता से अन्य विवाद रहित जमीन का निबंधन कराने की बात कही गई थी.
आदेश का सीओ द्वारा अनुपालन नहीं किया गया. जिसके बाद समाहर्ता मधेपुरा द्वारा गठित आरोप प्रपत्र (क) में प्रतिवेदित आरोप के आलोक में विभागीय प्रत्रांक 777 (निको) दिनांक 13 नवंबर 2014 द्वारा सीओ से स्पष्टीकरण की मांग भी की गयी थी. लेकिन सीओ द्वारा ससमय स्पष्टीकरण उपलब्ध नहीं कराया गया. जिसके आलोक में विभाग द्वारा निर्णय लेकर विभागीय आदेश संख्या 92 (नि0को0) दिनांक 27 जनवरी 2015 के द्वारा बिहार सरकारी सेवक नियमवाली 2005 के नियम नौ(क) में अंर्तनिहीत प्रावधानों के तहत सीओ को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया.
निलंबन अवधि में इनका मुख्यालय आयुक्त कोसी प्रमंडल सहरसा का कार्यालय निर्धारित किया गया. इधर 10 मार्च 2015 को विभाग के आरोप प्रपत्र (क) के आलोक में सीओ द्वारा अपना स्पष्टीकरण समर्पित किया गया. जिसमें सीओ द्वारा निलंबन से मुक्त करने का अनुरोध किया गया था.