सदैव छले जानेवाला टैंगराहा भौकराहा को मिली राहत

मधेपुरा : बिहार देश का पहला सूबा है जहां प्रत्यर्पण करने वाले अपराधियों के पूनर्वास के लिए सरकारी नीति घोषित की गयी है. यह कार्य मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल में 2006 में हुआ हैं. लेकिन इससे पहले भी मधेपुरा जिले के अपराधियों ने सबसे पहले 19 जनवरी 1989 को तत्कालिन डीजीपी मो. शफी कुरैशी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 16, 2016 5:02 AM

मधेपुरा : बिहार देश का पहला सूबा है जहां प्रत्यर्पण करने वाले अपराधियों के पूनर्वास के लिए सरकारी नीति घोषित की गयी है. यह कार्य मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल में 2006 में हुआ हैं. लेकिन इससे पहले भी मधेपुरा जिले के अपराधियों ने सबसे पहले 19 जनवरी 1989 को तत्कालिन डीजीपी मो. शफी कुरैशी तथा 27 फरवरी 1997 को आईजी जेबी महापात्रा के समक्ष आत्मसमर्पण किया था

. तीसरी दफा 21 मार्च 2006 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष सिंहेश्वर, मधेपुरा तथा त्रिवेणीगंज, सुपौल में आत्मसमर्पण किया. लेकिन सरकार की वादा खिलाफी के कारण ये लोग हरबार छले गये हैं. अपराधियों के लिए घोषित प्रत्यर्पण नीति के बाद दिनांक-21 मार्च 2006 को बिहार में पहली बार अपराधियों ने आत्म समर्पण किया. सुपौल जिला के त्रिवेणीगंज में 131 तथा मधेपुरा जिलाके सिंहेश्वर में 60 अपराधियों ने पुलिस के वरीय अधिकारियों की उपस्थिति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष हथियार सहित आत्मसमर्पण के बहुप्रचारित और प्रसारित इस प्रत्यर्पण कार्यक्रम में राज्य के आला अफसर के अलावा नीतीश सरकार के कई काबिना मंत्री भी शामिल हुए थे.

लेकिन विडंबना है कि आत्मसमर्पणकारी परिवारों को अभी तक समुचित लाभ नहीं मिल पाया है. हालांकि आत्मसमर्पणकारियों के भोकराहा गांव में एक करोड़ पंन्द्रह लाख रूपये की लागत से एक सौ शय्या का कल्याण छात्रावास बनाया गया है.

लोक शिकायत अधिकार अधिनियम ने बदली तसवीर. लेकिन लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम लागु होने के बाद तसवीर बदलनी शुरू हुई है. परिवादी रमेश झा ने कई परिवाद दायर कर तसवीर बदलने में अपनी भूमिका निभाई. उन्हीं के परिवार पर 30 नवंबर को फैसला दिया गया कि अनुसूचित जाति जनजाति कल्याण छात्रावास भौकराहा का रख रखाव बेहतर तरीके से हो. इस बाबत सरकार से आवंटन प्राप्त कर कार्यपालक अभियंता भवन निर्माण प्राथमिकता के आधार पर कार्य करें.
रमेश झा कहते है कि लोक शिकायत निवारण अधिनियम के पहले वे पिछले 17 वर्ष से आवेदन लेकर इस कार्यालय से उस कार्यालय तक चक्कर काटते फिरते थे. लेकिन इस अधिनियम के बाद महज एक परिवाद दायर कर व्यवस्था बदलवाने में सफल हुए है. छात्रों को आत्मसर्पण करने वाले परिवारों को बेहद खुशी है. आठ वर्ष बाद बिजली लग गयी. अब छात्रावास की मरम्मत होगी.

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