मधेपुरा : जिले में नौ हजार 250 हेक्टेयर क्षेत्र में हरी खाद गरमा 2017 योजना के अंतर्गत ढैंचा का अच्छादन करना ही इस बाबत तत्काल सभी प्रखंडों में 831.44 क्विंटल बीज उपलब्ध करा दिया गया है. किसानों को ढैंचा के बीच में 90 प्रतिशत सब्सीडी दी जा रही है. महज 18 रूपये में उन्हें चार […]
मधेपुरा : जिले में नौ हजार 250 हेक्टेयर क्षेत्र में हरी खाद गरमा 2017 योजना के अंतर्गत ढैंचा का अच्छादन करना ही इस बाबत तत्काल सभी प्रखंडों में 831.44 क्विंटल बीज उपलब्ध करा दिया गया है. किसानों को ढैंचा के बीच में 90 प्रतिशत सब्सीडी दी जा रही है. महज 18 रूपये में उन्हें चार किलो बीज उपलब्ध कराया जायेगा.
जबकि बीज का वास्तविक मूल्य लगभग 44 प्रतिकिलो है. इस बाबत बुधवार को जिला कृषि पदाधिकारी यदुनंदन प्रसाद यादव ने बताया कि सभी किसान सलाहकार एवं समन्वयक को यह निर्देश दिया गया है कि अपने – अपने क्षेत्र में लक्ष्य के अनुरूप शत प्रतिशत ढैंचा का आच्छादन करावें. उन्होंने ढैंचा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि लगातार धान –
गेहूं व ज्वार – गेहूं जैसे अधिक खुराक लेने वाली फसलों एवं सघन फसल चक्र अपनाने तथा रासायनिक खादों का असंतुलित इस्तेमाल करने से भूमि की उपजाउ शक्ति में भारी गिरावट आई है. ऐसे में भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए जीवांशु खादों के साथ-साथ हरी खाद का इस्तेमाल करना बेहद जरूरी है. गेहूं की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में किसान ढैंचा फसल को हरी खाद के उगाकर भूमि की उपजाउ शक्ति को बढ़ा सकते हैं.
क्या है हरी खाद : ढैंचा फसल कम लागत में अच्छी हरी खाद का काम करती है. इससे 22-30 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ मिल जाती है. हरी खाद से भूमि में कार्बनिक पदार्थ बढ़ने से भूमि व जल संरक्षण तथा संतुलित मात्रा में पोषक तत्व मिलने से भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ जाती है. मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने के लिए हरी खाद एक सस्ता विकल्प है. सही समय पर फलीदार पौधे की खड़ी फसल को मिट्टी में ट्रेक्टर से हल चला कर दबा देने से जो खाद बनती है उसको हरी खाद कहते हैं.
खेरी के लिए बोने का समय : ढैंचा को हरी खाद के लिए मध्य अप्रैल से मई माह के मध्य तक ढैंचा फसल की बिजाई कर लें. खरीफ में खेत खाली रखना हो तो मानसून आने पर भी ढैंचा की बिजाई कर सकते हैं. बीज को ज्यादा व जल्दी जमाव के लिए रातभर पानी में भिगोकर बोना चाहिए. बीज कृषि विभाग के द्वारा 90 प्रतिशत अनुदान पर दिया जा रहा है.
ढैंचा को भूमि में मिलाना : 45 – 50 दिन अधिक फैलाव व नरम अवस्था में जुताई करके खेत में मिला देना चाहिए. फसल पलटते समय नमी कम हो तो खेत में पानी लगाएं. इससे फसल जल्दी गल – सड़कर खाद में बदल जाती है और दीमक से भी बचाव हो जाता है. धान की रोपाई अगले दिन भी कर सकते हैं, परंतु अन्य फसलों की बिजाई हरी खाद दबाने के 20 – 25 दिन बाद करें.
हरी खाद के लाभ : हरी खाद को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की भौतिक शारीरिक स्थिति में सुधार होता है, हरी खाद से मृदा उर्वरता की भरपाई होती है. सूक्ष्म जीवाणुओं की गतिविधियों को बढ़ाता है, मिट्टी की संरचना में सुधार होने के कारण फसल की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है, हरी खाद के लिए उपयोग किये गये फलीदार पौधे वातावरण से नाइट्रोजन व्यवस्थित करके नोडयूल्ज में जमा करते हैं जिससे भूमि की नाइट्रोजन शक्ति बढ़ती है, हरी खाद के लिये उपयोग किये गये पौधो को जब जमीन में हल चला कर दबाया जाता है तो उनके गलने सड़ने से नोडयूल्ज में जमा की गई नाइट्रोजन जैविक रूप में मिट्टी में वापिस आ कर उसकी उर्वरक शक्ति को बढ़ाती है. पौधो के मिट्टी में गलने सड़ने से मिट्टी की नमी को जल धारण की क्षमता में बढ़ोतरी होती है.
हरी खाद के गलने सड़ने से कार्बनडाइआक्साइड गैस निकलती है जो कि मिट्टी से आवश्यक तत्व को मुक्त करवा कर मुख्य फसल के पौधो को आसानी से उपलब्ध करवाती है. हरी खाद दबाने के बाद बोई गई धान की फसल में ऐकिनोक्लोआ जातियों के खरपतवार न के बराबर होते है जो हरी खाद के ऐलेलोकेमिकल प्रभाव को दर्शाते है.