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भूपेंद्र बाबू की 122वीं जयंती : समाजवाद के अमिट हस्ताक्षर के रूप में स्थापित हैं भूपेंद्र बाबू

भूपेंद्र बाबू की 122वीं जयंती : समाजवाद के अमिट हस्ताक्षर के रूप में स्थापित हैं भूपेंद्र बाबू

प्रतिनिधि, मधेपुरा समाज व राष्ट्र में अलग-अलग स्तरों पर कुछ ऐसी प्रतिभाएं सृजित होती है, जिसकी उपमा देते ही आदर बरबस उत्पन हो जाता है. साथ ही उसकी पहचान सफलता के उस शिखर पर होती है कि वह हर दौर के लिए अमर हो जाते हैं. समाजवाद के अमिट स्याही भूपेंद्र नारायण मंडल इस कड़ी में अग्रिम पंक्ति के नाम हैं. एक फरवरी 1904 को अपने मातृकुल साहुगढ़ में जन्में भूपेंद्र नारायण मंडल, जयनारायण मंडल व दानावती देवी के सदैव लाडले रहे. आगे चलकर समाजवाद के बड़े ध्वजवाहक के रूप में अपनी अलग पहचान स्थापित की. जमींदारी वातावरण की उपज होकर भी समाजवाद के बने सारथी भूपेंद्र नारायण मंडल नामचीन जमींदार विरासत के बाद भी समाजसेवा बाल्यकाल से जीवन का हिस्सा रहे. छात्रवस्था में महात्मा गांधी, डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रभाव व आह्वान पर वर्ष 1921 में विद्यालय बहिष्कार का नेतृत्व किया. जिसके बाद सीरीज इंस्टीट्यूशन ने निष्कासित कर दिया. वर्षों 1930 में अनुमंडलीय न्यायालय मधेपुरा में वकालत आरंभ किया. वर्ष 1937 में डॉ भीमराव आंबेडकर के नेतृत्व वाली जस्टिस पार्टी से जुड़े. वर्ष 1942 में वकालत छोड़ भारत छोड़ो आंदोलन को प्राथमिकता दी. 13 अगस्त 1942 को मधेपुरा कोर्ट स्थित कोषागार में तालाबंदी कर राष्ट्रीय ध्वज फहराया. वर्ष 1945 में तत्कालीन भागलपुर जिला कांग्रेस पार्टी के स्थापना में सक्रिय भागीदारी दी. वर्ष 1950 में सुपौल के भूमि सुधार आंदोलन में भागीदारी व सोशलिस्ट पार्टी गठन के आधार स्तंभ रहे. सोशलिस्ट पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व विधायक बने भूपेंद्र नारायण मंडल वर्ष 1954 आते-आते बिहार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रांतीय सचिव बने भूपेंद्र नारायण मंडल धीरे-धीरे आजाद मुल्क में बिहार की राजनीतिक मानचित्र पर स्थापित हो चुके थे. वर्ष 1955 में पार्टी विघटन के उपरांत सोशलिस्ट पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व इसी पार्टी तले 1957 में मधेपुरा से विधायक बने. धीरे-धीरे राष्ट्रीय फलक पर स्थापित हो चुके भूपेंद्र नारायण मंडल, डॉ लोहिया से गहरे लगाव के सूचक बन चुके थे. वर्ष 1959 में अखिल भारतीय सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष, वर्ष 1962 में मधेपुरा से लोकसभा सदस्य निर्वाचित, वर्ष 1967 में संसदीय समिति संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष बने. वर्ष 1966 व वर्ष 1972 में राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुये. समाजवाद को समझने के लिए आधे दर्जन देशों का किया भ्रमण भूपेंद्र नारायण मंडल के समाजवाद के प्रति विस्तृत चिंतन मनन में बर्लिन, वियना, लंदन, पेरिस, फ्रैंकफर्ट, ज्यूरिख, रोम जैसे देशों के विदेश भ्रमण में वैचारिक व व्यवहारिक आदान प्रदान से प्राप्त अनुभव व समाज का भी अहम योगदान माना जाता है. समाज सृजन व राजनीतिक सफर जब निरंतर नई पटकथा लिख रहा था, इसी दौरान डॉ लोहिया की के विचारों के सारथी भूपेंद्र नारायण मंडल ने 29 मई 1975 को एक स्थानीय ग्रामीण यात्रा के दौरान टेंगरहा में आखिरी सांस ली. रोगग्रस्त समाजवाद के घात-प्रतिघात के अंदर वर्तमान सभ्यता में सड़न आमजन के हित में लगातार संघर्ष के कारण भूपेंद्र नारायण मंडल को आधे दर्जन दफा जेल जाना पड़ा. जिसमें गुलाम भारत में दो व आजाद भारत में चार दफा शामिल है. समाज सृजन, पुस्तकों के अध्ययन की जहां लत थी, वहीं बैलगाड़ी उनके जन संवाद का सबसे बड़ा संवाहक. सोशलिस्ट पार्टी के चौथे राष्ट्रीय सम्मेलन में अध्यक्षीय संबोधन में उनके कहे गये वाक्य “अधमरा सामंतवाद, बूढ़ा पूंजीवाद, युवा कम्युनिज्म और अपंग व रोगग्रस्त समाजवाद के घात-प्रतिघात के अंदर वर्तमान सभ्यता में सड़न पैदा हो गई है ” जो उनके समाजवादी चिंतन व मनन के बीच की छटपटाहट का दर्पण प्रतीत होता है. जनता को केंद्र में रखने वाले नेता के रूप में याद किए जाते हैं भूपेंद्र नारायण मंडल भारत के वरीय पत्रकार उर्मिलेश लिखते हैं कि 20वीं शताब्दी के छठें-सातवें दशक में भूपेंद्र नारायण मंडल का समाजवादी व राजनीति आंदोलन न सिर्फ शीर्ष नेताओं में शुमार होते रहा, बल्कि पूरब के सबसे बड़े सोशलिस्ट माने जाते थे. दूसरी ओर पत्रकार रवीश कुमार, भूपेंद्र नारायण मंडल को अपनी भाषणों में हमेशा जनता को केंद्र में रखने वाले नेता के रूप में याद करते हुए कहते हैं कि आज के दौर में भूपेंद्र नारायण मंडल को समझने के लिए साठ के दशक में राज्य सभा में उनके द्वारा दिए उस भाषण को याद करना ज़रूरी है, जब उन्होंने कहा था कि जनतंत्र में कोई पार्टी या व्यक्ति यह समझे कि वही जब तक शासन में रहेगा, तब तक संसार में उजाला रहेगा, वह गया तो सारे संसार में अंधेरा हो जायेगा, इस ढंग की मनोवृति रखने वाला, चाहे वह व्यक्ति हो या पार्टी, वह देश को रसातल में पहुंचायेगा. भूपेंद्र नारायण मंडल समाजवाद के ज्ञाता ही नहीं बल्कि समाजवाद को जीने वाले नेता वरीय साहित्यकार प्रो सिद्धेश्वर काश्यप की मानें तो भूपेंद्र नारायण मंडल समाजवाद के ज्ञाता ही नहीं बल्कि समाजवाद को जीने वाले नेता थे. भूपेंद्र नारायण मंडल के नाम पर स्थापित विश्वविद्यालय भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति डॉ रमेंद्र कुमार यादव रवि, भूपेंद्र नारायण मंडल के समाजवाद की चर्चा करते हुए लिखते हैं कि समाजवाद सूरज होगा, चांद होगा, हवा बनकर हर एक घर आंगन में जायेगा, स्पर्श करेगा, जीवन को सहलायेगा, हमारा सुख-दुख एक होगा. हम एक दूसरे का सहारा व भरोसा बनकर इस जग का, जीवन का, जीवन नियंता का सही उद्देश्य पूरा कर सकेंगे. ऐसा हुआ तो यकीनन यही भूपेंद्र नारायण मंडल के सपने व संघर्ष का मुकाम समाजवाद होगा. समाजवाद के पर्याय रहे भूपेंद्र नारायण मंडल बने सबके भूपेंद्र बाबू इस दुनिया से जाने के पांच दशक बाद भी जब लोग उनकी चर्चा व विचारों पर मंथन कर रहे हैं, तो यह जीवंत प्रमाण है कि उनका जीवन, समाज की सेवा, दबे कुचले लोगों के उत्थान में अर्पित रहा होगा. छोटे से छोटा आदमी भी उनके संपर्क में आकर हर बात से परे समान हो जाता होगा. शायद यही तो सच्चा समाजवाद है, जो हर दौर में समाजवाद के सूचक बन स्थापित रहेगा व उनके नाम पर बना भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, भूपेंद्र नारायण मंडल वाणिज्य महाविद्यालय साहूगढ़ मधेपुरा, बीएन मंडल स्टेडियम, बीएन मंडल कला भवन व कॉलेज चौक स्थित उनकी प्रतिमा उनके प्रति समाज व सरकार के सम्मान व दिवानगी का दर्पण प्रतीत होगा. भूपेंद्र नारायण मंडल का कृतित्व व व्यक्तित्व शब्दों की परिधि से परे है.

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