मधेपुरा का यह सातों पंचायत बाढ़ में डूबा, लेकिन नहीं बना बाढ़ग्रस्त क्षेत्र

एक तरफ कोरोना का कहर तो दूसरी तरफ बाढ़ की मार ने जनजीवन को पूरी तरह प्रभावित कर दिया है. क्षेत्र में किसान के 2000 हेक्टेयर से अधिक धान एंव अन्य फसल बाढ़ के पानी से चौपट हो गया है. लेकिन अब तक बनमा ईटहरी को बाढ़ग्रस्त घोषित नहीं किया गया है. कभी जलस्तर में वृद्धि तो कभी कमी से लोग आजिज हो गये हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | August 13, 2020 11:18 AM

मधेपुरा : बनमा ईटहरी में हर तरफ बाढ़ ही बाढ़ है. बाढ़ से जनजीवन प्रभावित है तो सड़क, पुल, पुलिया टूटने के कगार पर है. बहारे वाले बिहार की तस्वीर को बदलने के लिए 15 साल से बांध, डैम, पुल, पुलिया सड़क के निर्माण के लिए करोड़ों खर्च किये गये. लेकिन प्रशासन और ठेकेदार के द्वारा ठीक ढ़ंग से काम नहीं होने की वजह से क्षेत्र में लगातार हो रही बारिश और बाढ़ से तकरीबन सभी सड़कें जर्जर व रेनकट युक्त हो गयी हैं. पुल ध्वस्त होने के कगार पर हैं. प्रशासन के द्वारा मदद नहीं मिलने पर आम जनजीवन प्रभावित है.

जानकारी हो कि विगत एक माह से अब तक क्षेत्र में बाढ़ से फंसे लोगों के लिए जिला प्रशासन ने नाव की व्यवस्था नहीं की और न ही किसी तरह की कोई राहत सामग्री बाढ़ में फंसे लोगों के लिए पहुंचायी गयी. एक तरफ कोरोना का कहर तो दूसरी तरफ बाढ़ की मार ने जनजीवन को पूरी तरह प्रभावित कर दिया है. क्षेत्र में किसान के 2000 हेक्टेयर से अधिक धान एंव अन्य फसल बाढ़ के पानी से चौपट हो गया है. लेकिन अब तक बनमा ईटहरी को बाढ़ग्रस्त घोषित नहीं किया गया है. कभी जलस्तर में वृद्धि तो कभी कमी से लोग आजिज हो गये हैं.

घरों में पानी, चूल्हे में पानी, सड़कों पर पानी, खेत खलिहान में पानी यानी हर तरफ पानी ही पानी नजर आता है. क्षेत्र के सरबैला, घोड़दौर, ईटहरी, जमालनगर, महारस, रसलपुर एवं सहुरिया के दर्जनों वार्ड बाढ़ के पानी से प्रभावित हैं. लोग पलायन को मजबूर हैं. घर के छप्पर से बारिश का पानी टपक रहा है. लेकिन आलम यह है कि बाढ़ में फंसे लोग अंचल कार्यालय में प्रदर्शन कर उन्हें अंचल प्रशासन से छप्पर पर देने के लिए प्लास्टिक मांगनी पड़ती है.

पशुचारे की अब भी आफत है. स्थानीय जनप्रतिनिधि भी उदासीन दिख रहे हैं. आधा अगस्त बीतने को चला है. लेकिन बाढ़ से फंसे लोगों के लिए सामुदायिक किचन की शुरुआत नहीं की गयी है. जिलाधिकारी ने बांध के अंदर के गांव के लिए सामुदायिक किचन की बात कहीं है. बाढ़ और कोरोना की मार के कारण मजदूरी करने वाले लोग गांव से रोज दिल्ली, हरियाणा एवं अन्य प्रदेश को पलायन कर रहे हैं.

posted by ashish jha

Next Article

Exit mobile version