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कुमार आशीष
मधेपुरा. कहते हैं जीवन का लक्ष्य तय हो, प्रतिभा हो और सच्ची लगन हो तो सफलता कदम चूम ही लेती है. सहरसा के जय कुमार ने जी टीवी के लोकप्रिय व चर्चित शो सारेगामापा के मंच पर प्रस्तुति दे संपूर्ण मिथिला क्षेत्र को गौरवान्वित किया है. बनारस में शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पाने के दौरान जय ने पहली बार सा रे ग म प के लिए ऑनलाइन ऑडिशन दिया. यहां पास होने के बाद अन्य राउंड में जय ने देश के संगीत मर्मज्ञों के सामने प्रस्तुति देकर संगीत की दुनिया में अपना कदम जमा लिया. जय अब मेगा राउंड की तैयारी में है.
आदित्य विजय भंडारी से भी ली शिक्षा
जय कुमार का जन्म सहरसा जिला स्थित सोनवर्षा कचहरी के पास एक छोटे से गांव रहुआ में 15 जनवरी 2005 को हुआ था. गांव के मध्य विद्यालय से आठवीं तक की पढ़ाई करने के बाद सिमरी बख्तियारपुर स्थित प्लस टू स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई की. फिर सर्वनारायण सिंह रामकुमार सिंह महाविद्यालय से संगीत में स्नातक की डिग्री पायी. इस दौरान जय ने प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद के अधीनस्थ स्थानीय मीरा मिलन संगीत महाविद्यालय से संगीत में प्रथम वर्ष से लेकर षष्ठम वर्ष (प्रभाकर) तक की शिक्षा पायी. जय ने पंचगछिया के सोहन झा, रामपुर के रजनीकांत झा व बनारस के प्रसिद्ध आदित्य विजय भंडारी से भी शास्त्रीय संगीत सीखा और अपने सभी गुरुओं के प्रिय पात्र बने रहे.
संयुक्त परिवार में रहता है जय
जय कुमार का परिवार प्रारंभ से ही मुफलिसी में रहा है. इसके दादा शिक्षक थे. दादा ने अपनी कमाई से गांव में चार कमरों का घर बनाया था. जिसमें से दो कमरे के ऊपर खपड़ा तो दो कमरे के ऊपर एस्बेटस चढ़ा हुआ है. संयुक्त परिवार में दादा-दादी, चाचा-चाचा सहित नौ लोगों का परिवार रहता है. कुछ दिनों पूर्व तक पिता जटेश झा प्राइवेट ट्यूटर थे. इसी वर्ष पिता बीपीएससी की परीक्षा पासकर मधेपुरा जिले के चौसा स्थित जनता उच्च विद्यालय में संगीत विषय के शिक्षक बने हैं. जय की मां देवता देवी मध्य विद्यालय पास और कुशल गृहिणी है. जय के बड़े चाचा अभी भी प्राइवेट ट्यूशन से परिवार चला रहे हैं, जबकि छोटे चाचा नौकरी की तैयारी कर रहे हैं. जय दो भाइयों में छोटा है. बड़ा भाई ओम कुमार नीट की तैयारी कर रहा है.
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दस साल की उम्र से कर रहा है कार्यक्रम
सा रे ग म प के सातवें राउंड में टेलीविजन पर शो होने के बाद गांव आए जय ने बताया कि उसने इंटर तक की पढ़ाई भले ही विज्ञान विषय से की है. अभावग्रस्त लेकिन शिक्षित परिवार में जन्म लेने का उसे फायदा मिला. उसने अपने पिता से संगीत में रूचि होने की बात बतायी तो वे उसी दिशा में आगे बढ़ाने को तैयार हो गए. जय ने बताया कि उसके पिता उसके संगीत शिक्षक के पास साइकिल से 40-40 किलोमीटर दूर ले जाते थे. पंचगछिया, रामपुर व बनारस तक साथ लेकर गए. उसने बताया कि दस साल की उम्र में उसने बड़गांव में पहला स्टेज शो किया था. फिर सहरसा में होने वाले राजकीय महोत्सवों में प्रस्तुति देने के लिए बुलावा आने लगा. उसकी अभिलाषा संगीत की दुनिया में शीर्ष तक पहुंचने की है और उस दिशा में वह निरंतर प्रयासरत है.