प्रतिनिधि, मधेपुरा रविवार को पूरे राज्य समेत मधेपुरा में भी राज्य सरकार व जिला प्रशासन द्वारा मंडल आयोग के प्रणेता बीपी मंडल की 107वीं राजकीय जयंती समारोह मनायी जायेगी. जिले में बीपी मंडल चौक व सदर प्रखंड के मुरहो गांव स्थिति बीपी मंडल के समाधि स्थल समेत अन्य जगहों पर बीपी मंडल की जयंती मनायी जायेगी. राष्ट्र के पिछड़े वर्ग को समस्त अधिकार दिलाने को संकल्पित, प्रखर वक्ता, पिछड़े वर्ग के मसीहा, स्वाभिमानी समेत अन्य कई सारी उपमायें भी मधेपुरा रत्न व मंडल आयोग के प्रणेता बीपी मंडल के लिए कम पड़ सकती है. 25 अगस्त 1918 को वाराणसी में हुआ था बीपी मंडल का जन्म एक ओर बीपी मंडल जितने ही निडर व स्वाभिमानी थे दूसरी ओर उतने ही सरल भी थे. उनका जन्म 25 अगस्त 1918 को वाराणसी में हुआ था. उनके जीवन के प्रारंभ का दुर्भाग्य भी रहा की जन्म के अगले ही दिन 26 अगस्त को रोग शय्या पर उनके पिता का निधन हो गया, जिससे उनका जीवन पिता के लाड प्यार से ताउम्र अधूरा रहा. उनकी प्रारंभिक शिक्षा मुरहो से प्रारंभ हुई. वर्ष 1927 में मधेपुरा में सीरीज इंस्टीट्यूट में दाखिला लेकर अपने अग्रज कमलेश्वरी प्रसाद मंडल के संरक्षण में शिक्षा प्राप्त की. बाढ़ की विभीषिका के कारण उनका नामांकन दरभंगा राज उच्च विद्यालय में कराया गया. विधानसभा, विधान परिषद व लोकसभा के सदस्य रहे बीपी मंडल छात्र जीवन से ही स्वाभिमानी रहे बीपी मंडल ने इसका परिचय विद्यालय में व्याप्त जातीय भेदभाव का प्रतिकार करते हुए दिया. पटना कॉलेज में अंग्रेजी ऑनर्स में नामांकन लेकर आगे की पढ़ाई शुरू की. इसी बीच बड़े भाई केपी मंडल के निधन के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़, उन्हें अपने कर्म भूमि मुरहो आना पड़ा. 1937 में सीता मंडल के संग विवाह बंधन में बंधे. धीरे-धीरे उनका झुकाव राजनीति के ओर होने लगा. 1952 में पहली दफा विधानसभा के लिए चुने गये बीपी मंडल तीन बार विधान सभा, एक बार विधान परिषद व दो बार लोकसभा के सदस्य रहे. मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर बीपी मंडल ने पिछड़े वर्ग को किया गौरवान्वित सत्य के प्रति बीपी मंडल का रुझान अद्भुत था, तभी तो पामा कांड में सत्ताधारी दल में होते हुए भी विधानसभा में चर्चा के दौरान सरकार का विरोध किया. सहयोगियों द्वारा मना करने व समझाने पर विपक्ष की ओर जाकर बैठ गये, जिसका परिणाम हुआ की कांग्रेस के साथ 13 वर्षों का अटूट संबंध एकाएक खत्म हो गया. विषम दौर में एक फरवरी 1968 को सूबे के सातवें व पहले यादव मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर उन्होंने पिछड़े वर्ग को गौरवान्वित किया. 47 दिन के अल्पावधि में ही कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के कारण उनकी सरकार गिर गयी, लेकिन अल्प अवधि में ही उन्होंने राजनीति के अखाड़े में सरकार के बिचौलियों की नींद हराम कर, अपने नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया. आयोग की सिफारिशों का शुरू हुआ विरोध, मामला पहुंच गया सुप्रीम कोर्ट 1979 में जब समता पार्टी की केंद्र सरकार द्वारा दूसरे पिछड़ा आयोग का गठन किया गया, तो बीपी मंडल आयोग के अध्यक्ष बनें व यह मंडल आयोग कहलाया. अल्पावधि में ही कांग्रेस के सरकार में आ जाने के कारण इस आयोग पर काले बादल मंडराने लगे. ऐसे गंभीर हालात में बीपी मंडल ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए कांग्रेस की पुनः सदस्यता ग्रहण करते हुए देश के कोने-कोने का भ्रमण कर 3743 जातियों की पहचान अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में कर अनसूचित जाति-जन जाति की तरह आरक्षण की अनुशंसा की. 31 दिसंबर 1980 को रिपोर्ट तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को सौंपकर, उन्होंने एक नये क्रांतिकारी अध्याय की आधारशिला रखी, लेकिन दुखद पहलू ही रहा की इस आयोग की सिफारिशों का विरोध शुरू हुआ और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. जहां देश के चर्चित अधिवक्ता राम जेठ मलानी के प्रयास से कोर्ट ने अपना फैसला मंडल आयोग के पक्ष में दिया. लगभग एक दशक उपरांत 13 अगस्त 1990 को लागू हुआ मंडल आयोग मंडल आयोग रिपोर्ट जमा करने के लगभग एक दशक उपरांत 13 अगस्त 1990 को यह लागू हुआ. आयोग की रिपोर्ट सौंपना शायद बीपी मंडल का आखिरी लक्ष्य था तभी तो रिपोर्ट जमा करने के बाद उन्होंने अपने द्वारा किये महान पुण्य के सुखद अनुभव को प्राप्त किये बिना ही 64 वसंत का दीदार करने वाले बीपी मंडल 13 अप्रैल 1982 को आखिरी सांस ली. आज बीपी मंडल निसंदेह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन आजादी के बाद भारत में हुए बड़े बदलावों के पन्ने जब भी पलटे जायेंगे तब 21 मार्च 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी के उद्घाटन भाषण से लेकर 12 दिसंबर 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समापन भाषण के बीच अथक प्रयास से संपन्न मंडल आयोग की सिफारिशों के साथ बीपी मंडल मानस पटल पर उपस्थित होंगे.
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