जीवन शैली में सुधार नहीं करते हैं तो जलवायु परिवर्तन में सुधार की अपेक्षा करना व्यर्थ
जीवन शैली में सुधार नहीं करते हैं तो जलवायु परिवर्तन में सुधार की अपेक्षा करना व्यर्थ
प्रतिनिधि, मधेपुरा पार्वती विज्ञान महाविद्यालय मधेपुरा में बुधवार से दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू हुआ, जिसका शुभारंभ कुलपति प्रो विमलेंदु शेखर झा ने किया.
कुलपति ने कहा कि जब तक मानव स्वयं सशक्त रूप से जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए जागरूक नहीं होगा, तब तक जलवायु परिवर्तन में सुधार होना असंभव है. उन्होंने कहा कि बढ़ती हुई जनसंख्या व लोगों की सुविधा, जलवायु परिवर्तन का कारण है. उन्होंने कहा कि आधुनिक जीवनशैली हमें अधिक से अधिक सुख-सुविधा की ओर जीने के लिए प्रेरित करती है, जो जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका निभाती है.कुलपति ने कहा कि वृक्षों की कटाई, कागजों व प्लास्टिक का आधिकाधिक प्रयोग व वाहनों का प्रयोग कर हम जलवायु को पूर्ण रूप से प्रदूषित कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अधिक से अधिक रासायनिक खादों का प्रयोग कर हम अपनी मिट्टी को अस्वस्थ बना रहे हैं. जिससे कैंसर जैसी बीमारियां जन्म ले रही है और मानव का निरंतर विनाश हो रहा है. जब तक हम अपनी जीवन शैली में सुधार नहीं करते तब तक जलवायु परिवर्तन में सुधार की अपेक्षा करना व्यर्थ है.
महाविद्यालय प्राचार्य प्रो अशोक कुमार ने जलवायु परिवर्तन को विश्व की सबसे गंभीर समस्या बताते हुए कहा कि वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन गंभीर समस्या बनी हुई है. लगातार मौसम में परिवर्तन, बढ़ती हुई गर्मी, बाढ़ व सुनामी जैसी समस्या मानव के लिए चुनौती बनकर उभरी है. इन चुनौतियों के लिए वैश्विक स्तर पर पूंजीवादी व विकसित राष्ट्र योजनाएं बनाते हैं, सैद्धांतिक रूप से सहमति भी प्रकट करते हैं, लेकिन अमल करने की स्थिति आने पर वह विपरीत आचरण प्रकट करते हैं. ऐसे में हम विकासशील राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या, जो प्रकृति निर्मित कम व मानव निर्मित अधिक है, उस पर विचार करें एवं समाधान के लिए अपना बौद्धिक एवं शारीरिक सहयोग प्रदान करें, तभी जाकर के इस समस्या का निदान संभव है.
प्रकृति प्रदत्त कम मानव निर्मित ज्यादा है जलवायु परिवर्तन
अंतर्राष्ट्रीय महात्मा गांधी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र के आचार्य प्रो ओमप्रकाश भारती ने जलवायु परिवर्तन को प्रकृति व मानव निर्मित बताते हुए इसके संदर्भ में विशेष रूप से नदियों के प्रति संवेदनशील होने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने कहा जो नदियां हमारे लिए वरदान है, उन्हें हमने अभिशाप बनाकर रख दिया और समय के साथ सामाजिक दायित्व बोध नदियों के प्रति घटता गया और जीवन देने वाली नदियों को उपेक्षित बना दिया गया. भिन्न-भिन्न प्रकार की सरकारी योजनाओं के माध्यम से नदियों पर इस प्रकार आघात किया गया कि आज भारत की चार सौ से अधिक नदियां विलुप्त होने के कगार पर हैं. जलवायु परिवर्तन प्रकृति प्रदत्त कम मानव निर्मित ज्यादा है. कुलपति ने किया स्मारिका का विमोचनजलवायु परिवर्तन : अतीत वर्तमान और भविष्य विषय पर आधारित स्मारिका का विमोचन कुलपति ने किया. मौके पर आयोजन समिति के संयोजक डॉ राजेश कुमार सिंह, सचिव डॉ सुधांशु शेखर, कार्यकारी सचिव डॉ सुमेध आनंद, डॉ संतोष कुमार आदि उपस्थित थे. मंच संचालन समिति के कार्यकारी सचिव डाॅ मो सरफराज आलम ने किया.
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