चारे के अभाव में औने-पौने दाम पर मवेशी बेच रहे बाढ़ पीड़ित पशुपालक
चारे के अभाव में औने-पौने दाम पर मवेशी बेच रहे बाढ़ पीड़ित पशुपालक
बिहारीगंज. बीते 28 सितंबर को कोसी बैराज से अत्यधिक मात्रा में पानी डिस्चार्ज किये जाने के बाद जिले के चौसा, उदाकिशुनगंज, ग्वालपाड़ा, पुरैनी प्रखंडों के कई गांवों में पानी घुस गया. लोगों को घर को छोड़ ऊंचे जगहों पर शरण लेना पड़ा. पशुपालक अपने साथ माल-मवेशियों को भी लेकर तटबंध या सड़कों के किनारे आ गये,लेकिन अगले ही दिन से उनके मवेशियों खिलाने की हो गयी. सरकार ने बाढ़ पीड़ितों के लिए तो दो वक्त के पके-पकाये भोजन की व्यवस्था कर दी है. सरकार के अलावा विभिन्न सामाजिक संगठन उन्हें सूखे अनाज के रूप में राहत किट भी उपलब्ध करा रहे हैं. सरकार कई बार मवेशियों के लिए भी चारा उपलब्ध कराने की बात कही है, लेकिन उन बेजुबान मवेशियों की फिक्र न तो सरकार कर रही है और न ही कोई संगठन. लिहाजा उनके पास पशुओं को बेचने के अलावे दूसरा कोई चारा नहीं बचा. अब मवेशी पालना हो गया क्षमता से बाहर. चारों ओर बाढ़ का पानी फैल जाने से खेत-खलिहानों में हरा चारा डूब गया. पशुपालक अपने घर में मवेशी का चारा रखे थे, लेकिन बाढ़ आने के बाद आनन-फानन में वे उसे नहीं निकाल सके. धीरे-धीरे जलस्तर बढ़ता गया और पूरा चारा डूब गया. वे अपने माल-मवेशियों के साथ तटबंध या सड़कों पर तो आ गए, लेकिन उनके भोजन (चारे) की व्यवस्था करना भारी पड़ने लगा. शुरुआत के एक-दो दिनों तक तो वे अपने पशुओं को जैसे-तैसे आधा पेट खिला काम चलाया. फिर जलस्तर में थोड़ी कमी आने के बाद किराये पर नाव लेकर पांच से दस किलोमीटर दूर जाकर हरा चारा लाकर खिलाए. सूखे चारे के लिए उन्हें बाजार का रूख करना पड़ा, जहां सामान्य से दोगुनी कीमत में मिल रही है. ऐसे में मवेशियों को पालना अब उनकी क्षमता से बाहर हो गई है. आंखों के सामने दम तोड़ते नहीं देख सकते. बीते रविवार को बिहारीगंज के मवेशी हाट में दुधारू पशुओं की संख्या बहुत थी. अधिकतर पशु बाढ़ प्रभावित चौसा, पुरैनी, उदाकिशुनगंज व ग्वालपाड़ा प्रखंड के कोसी दियारा क्षेत्र से लाये गये थे. मवेशियों को बेचने आये पशुपालकों के चेहरे मुरझाये हुए थे. पुरैनी से आये राम पदारथ यादव ने बताया कि पशुओं का चारा नहीं मिल रहा है. सरकार ने घोषणा की थी, लेकिन अब तक एक छटांक भी नहीं मिला है. अपनी आंखों के सामने इस बेजुबान को मरते नहीं देख सकता, इसीलिए बेचने आया हूं. चौसा के धनेशपुर से पशु बेचने आये शिवेश्वर शर्मा ने बताया कि जिस सूखे चारे की कीमत 600 से 700 रुपये प्रति मन थी, वह अभी बाजार में 1200 से 1500 रुपये में मिल रही है. अधिक कीमत पर खरीदकर चारा खिलाने की क्षमता नहीं है, इसीलिए बेचने आया हूं. मुरौत के पशुपालक दीपक यादव ने कहा कि आठ दिनों में चारे के अभाव में मवेशी का शरीर आधा हो गया है. जो भैंस एक शाम में पांच किलो तक दूध देती थी, अब बमुश्किल एक से डेढ़ किलो पर आ गयी है. भोजन-पानी के बिना यह दम तोड़ देगी, इससे अच्छा है कि दूसरे पशुपालक के हाथों इसे बेच दें. नहीं मिल रही है सही कीमत मवेशी हाट में बाढ़ पीड़ितों के मवेशियों की सही कीमत नहीं मिलना इन पशुपालकों के लिए दोहरी मार है. पशुपालक सदानंद पासवान ने उदास स्वर ने बताया कि मवेशी देखने और खरीदने तो बहुत सारे लोग आ रहे हैं, लेकिन कोई सही कीमत देने को तैयार नहीं है. इस गाय की कीमत 12 हजार रुपये होनी चाहिए, उसकी कीमत चार हजार रुपये लगा रहे हैं. चंद्रनारायण यादव ने भी कहा कि जिस भैंस की कीमत 55 हजार रुपये है, उसकी बोली 25 से 28 हजार लगायी जा रही है. प्रकृति की मार और सरकार की उपेक्षाओं के कारण उन्हें औने-पौने दाम में मवेशी बेचना पड़ रहा है. हर कोई उनकी मजबूरी का फायदा उठाना चाह रहा है. यह भी तय है कि स्थिति सामान्य होने के बाद वे फिर मवेशी नहीं खरीद सकेंगे.
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